Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१३ ][ १११
अहो! विशुद्धि परमधार्म छे, ए ज जीवोने सौख्यनिधाान,
परम आचरण पण ए जाणो, मुकितमार्ग पण ए ज प्रधाान. १९.
अर्थ :विशुद्धिथी आत्मस्वरूपमां स्थिर थाय छे अने तेनाथी
(आत्मस्थिरताथी) विशुद्धता थाय छे. आम ते बन्ने एक बीजानुं
कारणपणुं अनुभव करीने श्रद्धो. १८.
विशुद्धि परमधर्म छे, ते ज मनुष्यने सुखनी खाण छे, ते ज
सर्वोत्तम आचरण छे अने ते ज मोक्षनो मार्ग छे. १९.
तस्मात् सैव विधातव्या प्रयत्नेन मनीषिणा
प्रतिक्षणं मुनीशेन शुद्धचिद्रूपचिंतनात् ।।२०।।
तेथी मुनिवर अति मतिवंता, सेवो ए ज करी पुरुषार्थ,
क्षण क्षण चिंतन निर्मळ चिद्रूपनुं करीने साधाो परमार्थ. २०.
अर्थ :तेथी विद्वान मुनिवरे दरेक क्षणे शुद्ध आत्माना
चिंतनथी प्रयत्नपूर्वक ते विशुद्धता ज करवायोग्य छे. २०.
यावद्बाह्यांतरान् संगान् न मुंचंति मुनीश्वराः
तावदायाति नो तेषां चित्स्वरूपे विशुद्धता ।।२१।।
मुनीश्वरो त्यागे नहि ज्यां सुधाी बाıा अने अंतर सौ संग,
त्यां सुधाी पामे नहि तेओ, चिद्रूपमां विशुद्धि प्रसंग. २१.
अर्थ :ज्यां सुधी मुनीश्वरो बाह्य अने अंतर संग
(परिग्रह)नो त्याग करता नथी, त्यां सुधी तेमने आत्मस्वरूपमां विशुद्धता
आवती नथी. २१.
विशुद्धिनावमेवात्र श्रयंतु भवसागरे
मज्जंतो निखिला भव्या बहुना भाषितेन किं ।।२२।।
भवसागरमां Mूबकां खाता सर्व भव्य, आ बचवा दाव,
घाणुं कıाãं शुं? भजो निरंतर सत्वर आ विशुद्धि नाव. २२.