Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
ए शुद्ध चिद्रूप ए ज सम्यग् ज्ञान दर्शन चरण छे,
तप सौख्य शकित परम पुरुष स्वगुणथी परिपूर्ण छे;
नहि त्याज्य पण सुग्राıा, पर विण धयेयरुप प्रपूज्य ए,
उत्कृष्ट एनाथी अवर ना प्रति समय स्मरुं स्वरुप ए. ९.
अर्थ :अहीं शुद्ध चिद्रूप सिवाय बीजुं दर्शन नथी, ज्ञान नथी,
चारित्र नथी, तप नथी, सुख नथी, शक्ति नथी, अदोष नथी, एनाथी
बीजो गुणी नथी, परम पुरुष नथी, उपादेय नथी, अहेय छे, परथी
रहित नथी, ध्येयरूप नथी, पूज्य नथी अने बीजुं उत्तम नथी. तेथी दरेक
समये हुं ते स्वरूपने संभारुं छुं. ९.
ज्ञेयो दृश्योऽपि चिद्रूपो ज्ञाता दृष्टा स्वभावतः
न तथाऽन्यानि द्रव्याणि तस्माद् द्रव्योत्तमोऽस्ति सः ।।१०।।
ए ज्ञेय द्रश्य छतां स्वभावे स्वपरने जाणे जुवे,
जM अन्य द्रव्य न तुल्य तेनी, तेथी द्रव्योत्तम हुवे. १०.
अर्थ :चैतन्यस्वरूप आत्मा जेम ज्ञेय अने द्रश्य होवा छतां
स्वभावथी ज्ञाता अने द्रष्टा छे. तेवी रीते अन्य द्रव्यो नथी, माटे ते
(आत्मा) द्रव्योमां उत्तम छे. १०.
स्मृतेः पर्यायाणामवनिजलभृतामिंद्रियार्थागसां च
त्रिकालानां स्वान्योदितवचनततेः शब्दशास्त्रादिकानां
सुतीर्थानामस्त्रप्रमुखकृतरुजां क्ष्मारुहाणां गुणानां
विनिश्चेयः स्वात्मा सुविमलमतिभिर्दृष्टबोधस्वरूपः
।।११।।
पर्याय बहुविधा, जलधिागिरिने, £न्द्रियार्थ प्रमुखने,
त्रण काळने, निज पर वचनने, शब्द शास्त्रादिकने;
सुतीर्थ, शस्त्रप्रहार दुःख, तरु, दोष गुणने जे स्मरे,
ते ज्ञानद्रग रुप स्वात्मनो निश्चय यथार्थ सुधाी करे. ११.
अर्थ
:पर्यायोनी, पर्वतो अने समुद्रोनी, इन्द्रियना विषयो