Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२६ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
शास्त्राद् गुरोः सधर्मादेर्ज्ञानमुत्पाद्य चात्मनः
तस्यावलंबनं कृत्वा तिष्ठ मुंचान्यसंगतिं ।।१०।।
अवश्यं च परद्रव्यं नश्यत्येव न संशयः
तद्विनाशे विधातव्यो न शोको धीमता क्वचित् ।।११।।
प्रगटाव आतमज्ञान सद्गुरु, शास्त्र धार्मी सुसंगथी,
तेनुं ज अवलंबन करी स्थिर था छूटी परसंगथी;
परद्रव्य नाश अवश्य पामे त्यां शुं संशय छे खरो?
तेना विनाशे शोक तेथी सुज्ञ कदीये ना धारो. १०-११.
अर्थ :शास्त्रथी, गुरुथी, साधर्मीजनो आदिथी आत्मज्ञान
प्रगट करीने तेनो आश्रय लईने तुं स्थिर था, बीजो संग छोडी दे. १०.
तथा परद्रव्य अवश्य नाश पामे छे ज, एमां संशय नथी,
तेना विनाशमां ज्ञानीजने क्यांय शोक कर्तव्य नथी. ११.
त्यक्त्वा मां चिदचित्संगा यास्यंत्येव न संशयः
तानहं वा च यास्मामि तत्प्रीतिरिति मे वृथा ।।१२।।
पुस्तकैर्यत्परिज्ञानं परद्रव्यस्य मे भवेत्
तद्धेयं किं न हेयानि तानि तत्त्वावलंबिनः ।।१३।।
नúी जशे मुजने तजी सौ संग जM चेतन कदी,
के सर्व तजी मारे जवुं त्यां प्रीति मुज शी दुःखदा?
जे ज्ञान पुस्तकथी थतुं परद्रव्यनुं ते त्याज्य ज्यां,
तो त्याज्य शुं परद्रव्य नहि, तत्त्वावलंबी हुं थतां. १२-१३.
अर्थ :चेतन अने जड संग मने तजीने जशे ज, एमां संशय
नथी अथवा हुं ते संगोने तजीने जईश, तेथी मारे (माटे) तेमनी प्रीति
(करवी) नकामी छे. जेणे तत्त्वनुं अवलंबन लीधुं छे, एवा मने जे
परद्रव्यनुं परिज्ञान पुस्तकोथी थाय (छे) ते (पण) त्याज्य छे, तो पछी
शुं ते परद्रव्यो हेय न होय? (होय ज). १२-१३.