Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
द्रष्ट श्रुत ज्ञात अनुभूत निंदित रुMा,
होय संस्कृत, विकृत पदार्थो,
हो भले नष्ट उत्पन्न स्थूल सूक्ष्म के,
चेतनायुकत के जM कदा जो;
हो भले प्रिय अप्रिय £न्द्रियने,
अन्य ए, श्रेय मारुं शुं सारे ?
हुं चिदानंदरुप आत्म शाश्वत अहो!
काम शुं अन्य द्रव्योनुं मारे ? १४.
अर्थ :जोयेला, जाणेला, सांभळेला, अनुभवेला, निंद्य के
स्तुत्य, संस्कार पामेला के विकृत थयेला, नाश पामेला के उत्पन्न थयेला,
स्थूळ के सूक्ष्म, जड के चेतन, इन्द्रियोने प्रिय के अप्रिय एवा ते अन्य
द्रव्योथी चिदानंदरूप एवां मने सदाय कांई पण प्रयोजन नथी. १४.
विक्रियाभिरशेषाभिरंगकर्मप्रसूतिभिः
मुक्तो योऽसौ चिदानन्दो युक्तोऽनंतदृगादिभिः ।।१५।।
असौ अनेकरूपोऽपि स्वभावादेकरूपभाग्
अगम्यो मोहिनां शीघ्रगम्यो निर्मोहिनां विदां ।।१६।।
अंग के कर्मकृत सर्व जM विकृति,
तेथी जे मुकत ते सौख्यधाामी;
युकत ज्ञानादि निज गुण अनंते सदा,
`ते चिदानंद चैतन्यस्वामी;
स्वगुणगणथी अनेकस्वरुपी छतां,
एकरुपी सदा निज स्वभावे;
गम्य नहि मोहीने, शीघा्र निर्मोही हा !
तत्त्वज्ञानी अनुभूति पावे. १५-१६.
अर्थ :जे शरीर अने कर्मथी थती समस्त विक्रियाओथी रहित
छे, ते चिदानंदस्वरूप अनंत दर्शनादि वडे सहित छे. १५.