Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१ ][
ते अनेक रूपवाळो होवा छतां पण स्वभावथी एकरूपवाळो छे.
ते मोही जीवोने जणाय तेवो नथी अने निर्मोही ज्ञानीओने तरत ज
जणावा
अनुभववा योग्य छे. १६.
चिद्रूपोऽयमनाद्यंतः स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः
कर्मणाऽस्ति युतोऽशुद्धः शुद्धः कर्मविमोचनात् ।।१७।।
आदि के अंत विण नित्य चिद्रूप ए,
स्थिति उत्पत्ति व्यय त्रण स्वरुपी;
कर्मथी युकत ते शुद्ध नहि, शुद्ध जो,
कर्मथी मुकत सहजात्मरुपी. १७.
अर्थ :आ चिद्रूप आदि अने अंत रहित छे, स्थिति, उत्पत्ति
अने नाशवाळो छे, कर्मथी युक्त अशुद्ध छे, कर्म छूटी जवाथी (ते) शुद्ध
छे. १७.
शून्याशून्यस्थूलसूक्ष्मोस्तिनास्तिनित्याऽनित्याऽमूर्तिमूर्तित्वमुख्यैः
धर्मैर्युक्तोऽप्यन्यद्रव्यैर्विमुक्तः चिद्रूपोयं मानसे मे सदास्तु ।।१८।।
शून्य, नहि शून्य, स्थूल सूक्ष्म, अरुपी रुपी,
अस्ति नास्ति, क्षणिक सर्वदा जो;
मुख्य निज धार्मयुत, मुकत परधार्मथी,
शुद्ध चिद्रूप मुज मन विराजो. १८.
अर्थ :शून्य, अशून्य, स्थूळ, सूक्ष्म, अस्ति, नास्ति, नित्य,
अनित्य, अमूर्त, मूर्त आदि धर्मोथी युक्त छे छतां पण जे अन्य द्रव्योथी
विमुक्त छे; ए चिद्रूप मारा मनमां सदा रहे
बिराजो. १८.
ज्ञेयं दृश्यं न गम्यं मम जगति किमप्यस्ति कार्यं न वाच्यं
ध्येयं श्रव्यं न लभ्यं न च विशदमतेः श्रेयमादेयमन्यत्
श्रीमत्सर्वज्ञवाणीजलनिधिमथनात् शुद्धचिद्रूपरत्नं
यस्माल्लब्धं मयाहो कथमपि विधिनाऽप्राप्तपूर्वंप्रियं च
।।१९।।