Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
शुद्धमति हुं, मने ज्ञेय नहि, द्रश्य नहि,
गम्य नहि, कार्य नहि, वाच्य नांही;
धयेय नहि, श्रव्य नहि, लभ्य नहि, श्रेय नहि,
नहि उपादेय कंइ जगत मांही;
केम के भाग्यथी मx अपूरव अहो,
शुद्ध चिद्रूप प्रिय रत्न लाधयुं;
श्रीमद् सर्वज्ञनी वाणी अर्णव मयी
`यत्नथी रत्न लही सर्व साधयुं. १९.
अर्थ :निर्मळ बुद्धिवाळा एवा मने (आ) जगतमां कांई पण
बीजुं जोवा जेवुं, जाणवा जेवुं, समजवा जेवुं, करवा जेवुं, वाणीथी
कहेवा जेवुं, ध्यान करवा जेवुं, सांभळवा योग्य, प्राप्त करवा योग्य,
हितरूप, ग्रहण करवा जेवुं छे नहि, कारण के श्री सर्वज्ञदेवनी वाणीरूप
समुद्रना मंथनथी खरेखर, कोई पण रीते भाग्यथी पूर्वे नहि मेळवेलुं
एवुं अने प्रिय, शुद्धचैतन्यस्वरूप रत्न मने मळी गयुं छे. १९.
शुद्धचिद्रूपरूपोहमिति मम दधे मंक्षु चिद्रूपरूपं
चिद्रूपेणैव नित्यं सकलमलमिदा तेनचिद्रूपकाय
चिद्रूपाद् भूरिसौख्यात् जगति वरतरात्तस्य चिद्रूपकस्य
माहात्म्यं वैति नान्यो विमलगुणगणे जातु चिद्रूपकेऽज्ञात्
।।२०।।
कर्म दूरकरण ए शुद्ध चिद्रूप वMे,
शुद्ध चिद्रूप हुं स्वरुप सारुं,
शुद्ध चिद्रूप जगश्रेÌ सुखधाामथी,
शुद्ध चिद्रूपने चित्त धाारुं;
विमल गुणना निधिा शुद्ध चिद्रूपमां,
ज्ञान जेनुं नथी अज्ञ एवा,
शुद्ध चिद्रूपनुं महात्म्य जाणे नह{,
तो उरे धाारवा शका केवा? २०