Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१६ ][ १३३
संगत्यागो निर्जनस्थानकं च तत्त्वज्ञानं सर्वचिंताविमुक्तिः
निर्बाधत्वं योगरोधो मुनीनां मुक्त्यै ध्याने हेतवोऽमी निरुक्ताः ।।।।
संग त्याग निर्जन स्थळ तत्त्वज्ञान सर्व चिंता दूर थाय;
निर्बाधात्व योगरोधा ए धयान हेतुथी मुनि शिव जाय. ८.
अर्थ :संगनो त्याग, एकांतस्थान, तत्त्वज्ञान, सर्व (प्रकारनी)
चिंतानो त्याग, उपद्रवनो अभाव, मन, वचन, कायारूप योगनो संयम
मुनिओने माटे ध्यानमां आ हेतुओ कह्या छे. ८.
विकल्पपरिहाराय संगं मुंचंति धीधनाः
संगतिं च जनैः सार्द्धं कार्यं किंचित् स्मरंति न ।।।।
विकल्पने तजवाने माटे संग तजे सौ मतिसमृद्ध,
जन संगति के कार्य कांइ पण तेनां स्मरे नह{ ते बुद्ध. ९.
अर्थ :ज्ञान जेमनुं धन छे एवा ज्ञानीओ विकल्पना त्याग
माटे संगने छोडे छे, माणसोनी साथे तेमना मार्गोने तथा कोई पण
कार्यने याद करता नथी. ९.
वृश्चिका युगपत्स्पृष्टाः पीडयंति यथांगिनः
विकल्पाश्च तथात्मानं तेषु सत्सु कथं सुखं ।।१०।।
बाह्यसंगतिसंगस्य त्यागे चेन्मे परं सुखं
अंतः संगतिसंगस्य भवेत् किं न ततोऽधिकं ।।११।।
एक साथ व{छी बहु Mंखे प्राणी पीMा लहे अपार,
तेम विकल्पो पीMे प्राणीने ते होतां सुख काांथी लगार?
बाıासंगति संग त्यागथी मुजने यदि परम सुख थाय,
अंतरसंगति संग त्यागथी तेथी अधिाक सुख शुं न पमाय? १०-११.
अर्थ :जेम एक साथे डंख मारता वींछीओ प्राणीओने पीडा
आपे छे, तेम विकल्पो आत्माने पीडे छे तथा ते विद्यमान होतां सुख
केवी रीते थाय? १०.