Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-२ ][ ११
छे कर्मभीतने दुर्ग, वायु विकल्प रज उMाMवा,
ए दोष रोके, मोह जीते, अगद अशुभ निवारवा.
अर्थ :चिद्रूपनुं स्मरण मनुष्योने मोक्षरूपी वृक्षनुं बीज,
संसाररूप समुद्रमां नौका, दुःखरूपी वनने बाळनार अग्नि, कर्मथी भय
पामेलाओने (आश्रय स्थान समान) किल्लो, विकल्परूप धूळने उडाडी
मूकवा पावन, पापोने रोकनार, मोहनो जय करवामां शस्त्र, नरक, तिर्यंच
आदि अशुभ पर्यायरूप रोगने टाळनारुं औषध अने तप, विद्या तथा
अनेक गुणोनुं घर समीचीन रीते छे. २.
क्षुत्तृट्रुग्वातशीतातपजलवचसः शस्त्रराजादिभीभ्यो
भार्यापुत्रारिनैः स्वानलनिगडगवाद्यश्वररैकंटकेभ्यः
संयोगायोगदंशिप्रपतनरजसो मानभंगादिकेभ्यो
जातं दुःखं न विद्मः क्व च पटति नृणांशुद्धचिद्रूपभाजां
।।।।
भूख, तरस, रोग, कLोर वाणी, वात LंMी, उष्णता,
जल, शस्त्र, नृप भय, नारी, अंगज, अग्नि, अरि, धान हीनता;
धान, बेMी, कंटक, Mांस मच्छर, मानभंग वियोगनां,
जाणुं न, दुःख सौ जाय काां हा ! शुद्ध चिद्रूप भकतनां. ३
अर्थ :शुद्ध चिद्रूपने भजनार मुष्योना क्षुधा, तृषा, रोग, ठंडी,
गरमी, वा पाणी अने कठोर वाणी, राजादिना भय, शस्त्रना भय, स्त्री,
पुत्र, शत्रु, निर्धनता, अग्नि, बेडी, गाय, अश्वादि, धन कंटक, संयोग-
वियोग, डांस, पतन, धूळ, मानभंगादिथी उपजतुं दुःख क्यां जतुं रहे
छे ते अमे जाणता नथी. ३ .
स कोपि परमानन्दश्चिद्रूपध्यानतो भवेत्
तदंशोपि न जायेत त्रिजगत्स्वामिनामपि ।।।।
अद्भुत परमानंद एवो, शुद्ध चिद्रूप धयानथी,
प्रगटे अहा! ना अंश तेनो, त्रण जगत साम्राज्यथी. ४.