Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
अर्थ :चिद्रूपना ध्यानथी एवो कोई परमानंद (प्रगट) थाय
छे के तेनो अंश पण त्रण जगतना स्वामीओने य उपजतो नथी. ४.
सौख्यं मोहजयोऽशुभास्त्रवहतिर्नाशोऽतिदुष्कर्मणा
मत्यंतं च विशुद्धता नरि भवेदाराधना तात्त्विकी
रत्नानां त्रितयं नृजन्मसफलं संसारभीनाशनं
चिद्रूपोहमितिस्मृतेश्च समता सद्भ्यो यशःकीर्त्तनं
।।।।
‘चिद्रूप हुं’ ए स्मरणथी समता वधो यशविस्तृति,
सुख प्राप्ति मोहविजय अने दुष्कर्म आuावनी क्षति;
अत्यंत अंतरशुद्ध ने तात्त्विक आराधान बने,
त्रण रत्न प्राप्ति, सफळ नर भव, भवतणो भय सौ हणे. ५
अर्थ :‘हुं चैतन्यस्वरूप छुं’ एम स्मरण करवाथी मनुष्यने
सुख, मोहनो जय, अशुभ आस्त्रवनो नाश, दुष्कर्मोनो नाश अने अत्यंत
विशुद्धि, तत्त्वनी आराधना, सम्यग्दर्शन
ज्ञानचारित्र ए त्रण रत्नोनी
प्राप्ति, मनुष्यजन्मनी सफळता, संसारना भयनो नाश, समता तथा
सज्जनो द्वारा यशोगान प्राप्त थाय छे. ५.
वृतं शीलं श्रुतं चाखिलखजयतपोदृष्टिसद्भावनाश्च
धर्मो मूलोत्तराख्या वरगुणनिकरा आगसां मोचनं च
बाह्यांतः सर्वसंगत्यजनमपि विशुद्धांतरगं तदानी
मूर्मीणां चोपसर्गस्य सहनमभवच्छुद्धचित्संस्थितस्य ।।।।
जे शुद्ध चिद्रूप स्थित ते व्रत शील श्रुत तप गुणधारा,
£न्द्रियविजय सद्धर्म दशर्न भावना अघाक्षय करा;
सौ बाıा अंतर संग त्यागी, अंतरंग विशुद्धिथी,
उपसर्ग ©र्मि सहन करता धाीर निजबळ वृद्धिथी. ६.
अर्थ :शुद्ध चैतन्यमां स्थिति करनार जीवने ते समये चारित्र,
शील, ज्ञान, समस्त इन्द्रियोनो जय, तप, दर्शन, भावना, धर्म, मूळ