Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 13 of 153
PDF/HTML Page 21 of 161

 

background image
अध्याय-२ ][ १३
अने उत्तर उत्तम गुणोनो समूह, पापनुं छूटवुं, बाह्य अने अभ्यंतर
सर्व संगनो त्याग, अंतरनी विशुद्धि अने उपसर्गना तरंगो सहन
करवानी शक्ति (प्रगट) थाय छे. ६.
तीर्थेषूत्कृष्टतीर्थं श्रुतिजलधिभवं रत्नमादेयमुच्चैः
सौख्यानां वा निधानं शिवपदगमने वाहनं शीघ्रगामि
वात्यां कर्मोधरणो भववनदहने पावकं विद्धि शुद्ध
चिद्रूपोहं विचारादिति वरमतिमन्नक्षराणां हि षटकं ।।।।
‘हुं शुद्ध चिद्रूप’ वर्ण षट्, हे ! बुद्धिमान विचारजो,
उत्कृष्ट तीरथ, रत्न उत्तम, श्रुतसमुद्रनुं धाारजो;
ए सर्वसौख्यनिधाान वाहन शिवगमननुं शीघा्र हा !
सौ कर्मरजने पवन सम, भव-वन-दहन अग्नि महा. ७
अर्थ :हे उत्तम मतिमान्! ‘हुं शुद्ध चिद्रूप छुं’ ए छ
अक्षरोना विचारथी तुं जाण के ते ज तीर्थोमां उत्कृष्ट तीर्थ छे, श्रुत
सागरमांथी नीकळेलुं उत्तम ग्रहवा योग्य रत्न छे, सौख्योनुं निधान छे,
मोक्षपदमां लई जनार त्वरित गतिवाळुं वाहन छे, कर्मसमूहरूप धूळने
उडाडी मूकवा माटे वायुनो वंटोळ छे, संसारवनने बाळवा माटे अग्नि
छे. ७.
क्व यांति कार्याणि शुभाशुभानि क्व यांति संगाश्चिदचित्स्वरूपाः
क्व यांति रागादय एव शुद्ध चिद्रूपकोहंस्मरणे न विद्मः ।।।।
चेतन अचेतन संग सौ, कार्यो शुभाशुभ जाय काां ?
न जणाय चिद्रूपस्मरणथी रागादि भागी जाय काां ?
अर्थ :‘हुं चिद्रूप छुं’ एम स्मरण करतां शुभ अने अशुभ
कर्मो, चेतन अने अचेतन संगो (परिग्रहो), अने रागादि क्यां जता
रहे छे, ते अमे जाणता नथी. ८.