Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
मेरुः कल्पतरुः सुवर्णममृतं चिंतामणिः केवलं
साम्यं तीर्थंकरो यथा सुरगवी चक्री सुरेन्द्रो महान्
भूभृद्भूरुहधातुपेयमणिधीवृत्ताप्तगोमानवा
मर्त्येष्वेव तथा च चिंतनमिह ध्यानेषु शुद्धात्मनः ।।।।
तरु, धाातु, पेय, गिरि, अमर, नर, चरण, मणि गौ, ज्ञानमां;
सुरतरु, कनक, अमृत, मेरु, शक, चक्री, साम्यता;
चिंतामणि, सुरधोनु, केवल, आप्तमां तीर्थंकरो,
उत्कृष्ट ज्यम, त्यम धयानमां शुद्धात्मचिंतन आदरो.
अर्थ :जेम पर्वतोमां मेरु ज, वृक्षोमां कल्पवृक्ष ज, धातुओमां
सुवर्ण ज, पीवा योग्य पदार्थोमां अमृत ज, रत्नोमां चिंतामणिरत्न ज,
ज्ञानोमां केवळज्ञान ज, चारित्रोमां समताभाव, आप्तोमां तीर्थंकर ज,
गायोमां कामधेनु ज, मनुष्योमां चक्रवर्ती ज अने देवोमां इन्द्र ज उत्तम
छे. तेवी रीते आ लोकमां ध्यानोमां शुद्ध आत्मानुं चिंतन उत्तम छे. ९.
निधानानां प्राप्तिर्न च सुरकुरुरुहां कामधेनोः सुधा
याश्चिंतारत्नानामसुरसुरनराकाशगेर्शे दिराणां
खभोगानां भोगावनिभवनभुवां चाहमिंद्रादिलक्ष्म्या
न संतोषं कुर्यादिह जगति यथा शुद्धचिद्रूपलब्धिः
।।१०।।
जे कल्पद्रुम के कामधोनु निधाानप्राप्ति के सुधाा,
चिंतामणि सुर असुर नर विद्याधारेश सुखो बधाां;
ऐश्वर्य अहमिन्द्रादिनां, सौ भोग भोगभूमि तणा,
संतोष आपे शुद्धचिद्रूपलब्धिा जेवो अन्य ना. १०.
अर्थ :आ जगतमां शुद्ध चिद्रूपनी प्राप्तिथी जेवो संतोष थाय
छे तेवो संतोष धनना भंडारो, कल्पवृक्ष, कामधेनु, अमृत, चिंतामणि
रत्न, सुर-असुर विद्याधरोना इन्द्रोनी लक्ष्मी, भोगभूमिमां प्राप्त थता
अने स्वर्गभूमिमां प्राप्त थता भोगो तथा अहमिन्द्रादिनी लक्ष्मीनी
प्राप्तिथी पण संतोष थतो नथी. १०.