Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-२ ][ १५
ना दुर्वणों विकर्णो गतनयनयुगो वामनः कुब्जको वा
छिन्नघ्राणः कुशब्दो विकलकरयुतो वाग्विहीनोऽपि पंगुः
खंजो निःस्वोऽनधीतश्रुत इह बधिरः कुष्ठरोगादियुक्तः
श्लाध्यः चिद्रूपचिंतापरः इतरजनो नैव सुज्ञानवद्भिः
।।११।।
नर होय काळो, कर्णहीन, कद्रूप, नकटो, कुब्ज वा,
कुशब्द, वामन, पंगु, LंMो, अंधा, मूंगो, खंज वा;
निर्धान, अभण, बहेरो, भले हो कोढ, व्याधिाग्रस्त वा,
चिद्रूपचिंतन लीन तो ते श्लाधय प्राज्ञे अन्य ना. ११
अर्थ :आ लोकमां काळो, कान वगरनो, आंधळो, ठींगणो,
खूंधो, नकटो, कर्कश वाणीवाळो, ठुंठो, मूंगो, लंगडो, पांगळो, निर्धन,
अभण, बहेरो के कोढादि रोगवाळो मनुष्य पण जो चिद्रूपना चिंतनमां
तत्पर होय तो सम्यग्ज्ञानीओ वडे ते प्रशंसा पामे छे, बीजो कोई
मनुष्य प्रशंसापात्र थतो नथी. ११.
रेणूनां कर्मणः संख्या प्राणिनो वेत्ति केवली
न वेद्मीति क्व यांत्येते शुद्धचिद्रूपचिंतने ।।१२।।
(झूलणा)
जीव कर्मो घाणां क्षण क्षणे संग्रहे,
सर्व सर्वज्ञ-ज्ञाने जणाये;
शुद्ध चिद्रूपनुं स्मरण क्षण क्षण कर्ये,
स्मरणथी कर्म तो काांय जाये. १२.
अर्थ :जीवना कर्मना परमाणुओनी संख्या केवळज्ञानी जाणे
छे. ए कर्म शुद्ध आत्मस्वरूपनुं चिंतन करतां, क्यां जतां रहे छे, ए
हुं जाणतो नथी. १२.
तं चिद्रूपं निजात्मानं स्मर शुद्ध प्रतिक्षणं
यस्य स्मरणमात्रेण सद्यः कर्मक्षयो भवेत् ।।१३।।