अध्याय-६ ][ ५७
अर्थ : — अनादिथी संसारमां भमतां में चिद्रूपमां चित्तने
निश्चल कर्युं नहि, तेथी अहोहो! आश्चर्य छे के में महान दुःखो सहन
कर्यां. १८.
ये याता यांति यास्यंति निर्वृत्तिं पुरुषोत्तमाः ।
मानसं निश्चलं कृत्वः स्वे चिद्रूपे न संशयः ।।१९।।
जे नररत्नो रे मुकितमां गया, जाये, जाशे सदाय;
निज चिद्रूपे रे निश्चल मन करी, सौ निःशंक शिव थाय.
निर्मळ चिद्रूप निश्चल सेवीए. १९.
अर्थ : — जे उत्तम पुरुषो मोक्षे गया छे, जाय छे अने जशे
ते सर्वे पोताना चैतन्यस्वरूप आत्मामां मनने एकाग्र करीने (गया छे,
जाय छे अने जशे) एमां संशय नथी. १९.
निश्चलोंऽगी यदा शुद्धचिद्रूपोऽहमिति स्मृतौ ।
तदैव भावमुक्तिः स्यात्क्रमेण द्रव्यमुक्तिभाग् ।।२०।।
‘निर्मल चिद्रूप हुं’ जन एम ज्यां स्मरणे निश्चल थाय;
भावमुकित तो त्यां ज क्रमे पछी द्रव्ये मुकित वराय.
निर्मळ चिद्रूप निश्चल सेवीए. २०.
अर्थ : — ‘हुं शुद्ध चैतन्यमूर्ति आत्मा छुं’ एम स्मरण करतां
ज्यारे आत्मद्रव्य निश्चळ थाय छे, त्यारे ज भावमोक्ष थाय छे अने
अनुक्रमे द्रव्यमोक्षने योग्य (पण) थाय छे. २०.