Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-७ ][ ५९
अर्थ :मिथ्यात्व आदिना उदयरूप मिथ्यात्व मोहनीय वगेरे
(अने अनंतानुबंधी क्रोध वगेरे कषाय) मळ दूर थवाथी चोथा
गुणस्थानथी मांडीने तारतम्यताथी चिद्रूपमां विशुद्धता आवीने वधे
छे. ३.
मोक्षस्वर्गार्थिनां पुंसां तात्त्विकव्यवहारिणां
पंथाः पृथक् पृथक् रूपो नागरागारिणामिव ।।।।
जुदा गामे रे जाता पथिकना जुदा मार्गो भळाय;
मोक्षार्थी निश्चय, व्यवहारने, स्वर्गार्थी तेम चहाय.
निर्मळ चिद्रूपमां लय हो सदा. ४.
अर्थ :मोक्षना इच्छुक पुरुषोनो अने स्वर्गना इच्छक
पुरुषोनो अनुक्रमे निश्चयना आश्रयरूप तात्त्विक अने व्यवहारना
आश्रयरूप अतात्त्विक जुदा जुदा नगरमां जनार पथिकोनी जेम भिन्न-
भिन्नरूप मार्ग छे. ४.
चिंताक्लेशकषायशोकबहुले देहादिसाध्यात्परा-
धीने कर्मनिबन्धनेऽतिविषमे मार्गे भयाशान्विते
व्यामोहे व्यवहारनामनि गतिं हित्वा व्रजात्मन् सदा
शुद्धे निश्चयनामनीह सुखदेऽमुत्रापि दोषोज्झिते
।।।।
हे! आत्मन् ए कलेश कषाययुत विषम अति व्यवहार;
चिंता आशारे शोक भये भर्यो, स्वाधाीन वळी नहि लगार.
कर्म निबंधान ने व्यामोहकर, जाणी तज व्यवहार;
दोष रहित निश्चय भज शुद्ध ए लोकद्वये सुखकार.
निर्मळ चिद्रूपमां लय हो सदा. ५.
अर्थ :चिंता, क्लेश, क्रोधादि कषाय, शोकादि अत्यंत जेमां छे
ते देहादिथी साध्य होवाथी पराधीन, कर्म निबंधन रूप, भय अने
आशायुक्त, मूंझवण करनार, व्यवहार नामना अति विषम मार्गमां