Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-७ ][ ६
निर्मळ चिद्रूप धयान गिरि थकी उतरे जो कोइ काळ;
कार्य प्रसंगे रे तो व्यवहार सद् अवलंबे तत्काळ,
निर्मळ चिद्रूपमां लय हो सदा. १५.
अर्थ :ज्यारे अन्य प्रयोजनार्थे शुद्ध चिद्रूपना उत्तम ध्यानरूप
पर्वतथी उतरवानुं बने, त्यारे ते व्यवहारनुं अवलंबन करे. १५.
याता यांति च यास्यंति ये भव्या मुक्तिसंपदं
आलंब्य व्यवहारं ते पूर्वं पश्चाच्चनिश्चयं ।।१६।।
कारणेन विना कार्यं न स्यात्तेन विना नयं
व्यवहारं कदोत्पत्तिर्निश्चयस्य न जायते ।।१७।।
मुकितश्रीने जे वर्या मनमोहन मेरे,
वरता वळी वरनार रे; मनमोहन मेरे;
प्रथम भजी व्यवहार सत् मनमोहन मेरे;
ग्रही निश्चय पछी सार रे, मनमोहन मेरे. १६.
कारण विण कदी कार्यनी मनमोहन मेरे,
सिद्धि नहि जेम थाय रे, मनमोहन मेरे;
सद् व्यवहार विना कदी मनमोहन मेरे;
निश्चय नहि सधााय रे; मनमोहन मेरे. १७.
अर्थ :जे भव्य जीवो मुक्ति संपत्तिने पाम्या छे, पामे छे
अने पामशे ते प्रथम सत् व्यवहारने आलंबीने अने पछी निश्चयने
अवलंबीने पाम्या छे. १६.
कारण वगर कार्य थाय नहि, तेथी सत् व्यवहारनय विना
निश्चयनी उत्पत्ति कदी थती नथी. १७.
जिनागमे प्रतीतिः स्याज्जिनस्याचरणेऽपि च
निश्चयं व्यवहारं तन्नयं भज यथाविधि ।।१८।।