Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-८ ][ ६९
त्यां सुधाी चिद्रूप भूमि उपर बहु कर्मगिरि दुर्भेद्य दीसे,
ज्यां सुधाी भेद विज्ञान व»ना एकाएक पMे शीर्षे. ७.
अर्थ :ज्यां सुधी मस्तक उपर भेदविज्ञानरूप वज्र पडतुं
नथी, त्यां सुधी कर्मपर्वतो दुर्भेदपणे चैतन्यरूप भूमिमां ऊभा रहे
छे. ७.
दुर्लभोऽत्र जगन्मध्ये चिद्रूपरुचिकारकः
ततोऽपि दुर्लभं शास्त्रं चिद्रूपप्रतिपादकं ।।।।
ततोऽपि दुर्लभो लोके गुरुस्तदुपदेशकः
ततोऽपि दुर्लभं भेदज्ञानं चिंतामणिर्यथा ।।।।
दुर्लभ आ जग मधय अतिशय चिद्रूपमां रुचि लावे जे,
तेथी अति दुर्लभ सत्शास्त्रो चिद्रूप स्पष्ट बतावे जे;
दुर्लभ पण तेथी गुरु ज्ञानी, चिद्रूप निशदिन बोधो जे,
सौथी चिंतामणि सम दुर्लभ भेदज्ञान उर शोधो ते. ८-९.
अर्थ :आ जगतमां, चैतन्यस्वरूपी रुचि करनारकरावनार
दुर्लभ छे, चैतन्यस्वरूपनुं प्रतिपादन करनार शास्त्रो तेना करतां पण
दुर्लभ छे. लोकमां तेनो उपदेश आपनार गुरु तेथी पण दुर्लभ छे अने
चिंतामणि रत्ननी जेम भेदज्ञान तेना करतां पण दुर्लभ छे. ८-९.
भेदो विधीयते येन चेतनाद्देहकर्मणोः
तज्जातविक्रियादीनां भेदज्ञानं तदुच्यते ।।१०।।
देह कर्मकृत सर्व विकारो ते जM, चेतन आप अहो !
जM चेतन ए भिन्न करे ते भेदज्ञान मुज उर रहो. १०.
अर्थ :जेनाथी चैतन्यस्वरूप आत्माथी शरीरनो, कर्मनो अने
तेनाथी थता सर्व विकारोनो भेद करवामां आवे छे, तेने भेदज्ञान कहे
छे. १०.