Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-९ ][ ७७
कीर्तिं वा पररंजनं खविषयं केचिन्निजं जीवितं
संतानं च परिग्रहं भयमपि ज्ञानं तथा दर्शनं
अन्यस्याखिलवस्तुनो रुगयुतिं तद्धेतुमुद्दिश्य च
कर्युः कर्म विमोहिनो हि सुधियश्चिद्रूपलब्ध्यै परं
।।।।
विषयो, पररंजन, यशप्राप्ति, निज जीवन रक्षा करवा,
पुत्र परिग्रह प्राप्ति काजे किंवा दर्शन ज्ञान थवा;
भय व्याधिा परिहरवा अथवा सर्व अन्य वस्तु अर्थे,
करे कर्म मोही जीव किन्तु प्राज्ञ करे सौ आत्मार्थे. ९.
अर्थ :केटलाक मोही जीवो कीर्तिने, पररंजनने, इन्द्रियना
विषयने, पोताना जीवनने, संतान अने परिग्रहने, भयने, ज्ञान तथा
दर्शनने, अन्य वस्तुनी प्राप्तिने, रोगना वियोगने अने तेना हेतुने
उद्देशीने कार्य करता होय छे, परंतु खरेखर बुद्धिमानो चिद्रूपनी प्राप्ति
माटे कार्य करे (छे). ९.
कल्पेशनागेशनरेशसंभवं चित्ते सुखं मे सततं तृणायते
कुस्त्रीरमास्थानकदेहदेहजात् सदेतिचित्रं मनुतेऽल्पधीः सुखं ।।१०।।
सर्व नरेन्द्र चक्रवर्त्यादिक के धारणेन्द्र सुरेन्द्रतणां,
दिव्य सुखो तृण तुल्य निरंतर, भासे मुजने तुच्छ घाणां;
कांता कनक भूमि गृह तनके तनयादि दुःखरुप बधाां,
छतां अल्पबुद्धि सुखरुप ते माने ए आश्चर्य सदा. १०.
अर्थ :मारा चित्तमां कल्पवासी देवोना इन्द्रने, नागेन्द्रने,
नरेन्द्रने प्राप्त थतुं सुख निरंतर तृण समान तुच्छ लागे छे, अल्प
बुद्धिमान हंमेशां भूमि, स्त्री, लक्ष्मी, घर, शरीर, पुत्रथी सुख माने छे;
ए आश्चर्यकारक छे. १०.
न बद्धः परमार्थेन बद्धो मोहवशाद् गृही
शुकवद् भीमपाशेनाथवा मर्कटमुष्टिवत् ।।११।।