Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration). Adhyay-10 : Shuddh Chidrupna Dhyanarthe Ahankar Mamakarna Tyagno Updesh.

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अधयाय १० मो
[ शुद्ध चिद्रूपनां ध्यानार्थे अहंकार ममकारना
त्यागनो उपदेश ]
निरंतरमहंकारं मूढाः कुर्वंति तेन ते
स्वकीयं शुद्धचिद्रूपं विलोकंते न निर्मलं ।।।।
मोहमूढ जन मग्न निरंतर अहंकारमां रहे सदाय,
त्यां निर्मल निज चिद्रूप प्रत्ये द्रष्टि दे नहि अहा जराय ! १.
अर्थ :मूढजनो निरंतर अहंकार करे छे तेथी तेओ पोतानां
शुद्ध चिद्रूपने अन्य द्रव्योथी भिन्न शुद्ध जोता नथी. १.
देहोऽहं कर्मरूपोऽहं मनुष्योऽहं कृशोऽकृशः
गौरोऽहं श्यामवर्णोऽहमद्विऽजोहं द्विजोऽथवा ।।।।
अविद्वानप्यहं विद्वान् निर्धनो धनवानहं
इत्यादि चिंतनं पुंसामहंकारो निरुच्यते ।।।।युग्मं।।
काया हुं आ कर्मरुप हुं, हुं मानव हुं कृश हुं स्थूल,
हुं गोरो, हुं श्याम वर्ण हुं, द्विज अद्विज विचारो भूल;
अभण अरे ! हुं, पिंMत हुं तो, हुं निर्धान हुं धानिक महान,
£त्यादि चिंतन मानवनुं अहंकार भाखे विद्वान. ३.
अर्थ :हुं शरीर छुं, हुं कर्मरूप छुं, हुं मनुष्य छुं, हुं दूबळो
के जाडो छुं, हुं गोरो छुं, श्यामवर्णवाळो छुं, हुं अद्विज छुं अथवा हुं
द्विज छुं. २.
वळी हुं विद्वान्अविद्वान्, निर्धनधनवान छुंआ प्रकारनुं
मनुष्यनुं चिंतन अहंकार कहेवाय छे. ३.