Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-११ ][ ९१
सिंहसर्पगजव्याघ्राहितादीनां वशीकृतौ
रताः संत्यत्र बहवो न ध्याने स्वचिदात्मनः ।।।।
जल वन वनिता द्युत पंखी के युद्धकळा संगीतेजी;
दीसे घाणा रमता पण विरला चिद्रूपमां द्रढ प्रीतेजी,
सिंह सर्प गज व्याघा्र अहितकर अरि वश करवा वर्तेजी,
बहु अहा! अह{ पण निज चिद्रूप-धयाने विरल प्रवर्तेजी. ५-६.
अर्थ :जळ, जुगार, वन, स्त्री, पक्षी, युद्ध, गोळीथी निशान
विंधवानी विद्या अने संगीतमां घणा आ जगतमां रमता देखाय छे,
परंतु चैतन्यमय आत्मामां रमता कोईक ज छे. ५.
अहीं सिंह, सर्प, हाथी, वाघ, शत्रु आदिने वश करवामां रक्त
घणा छे, (पण) चिदात्माना ध्यानमां रक्त नथी. ६.
जलाग्निरोगराजाहिचौरशत्रुनभस्वतां
दृश्यंते स्तंभने शक्ताः नान्यस्य स्वात्मचिंतया ।।।।
प्रतिक्षणं प्रकुर्वति चिंतनं परवस्तुनः
सर्वे व्यामोहिता जीवाः कदा कोऽपि चिदात्मनः ।।।।
अग्नि रोग जल नृप अरि वायु चोर थंभवा शूराजी;
बहु अहा! पण आत्मधयानथी कर्म न करता चूराजी.
मोहवशे निज भान भूलेला, क्षणक्षण चिंतन करताजी;
सर्व अन्य वस्तुनुं, विरल को, निज चिंतन मन धारताजी. ७-८.
अर्थ :(जीवो) जळ, अग्नि, रोग, राजा, सर्प, चोर, शत्रु
अने पवनने रोकवामां समर्थ जणाय छे, (पण) स्वात्मध्यानथी परने
(कर्मने) रोकवामां समर्थ जणाता नथी. ७.
सर्वे व्यामोह पामेला जीवो परवस्तुना चिंतनने क्षणे क्षणे करे छे,
परंतु चिदात्मानुं चिंतन कोई वार कोईक ज करे छे. ८.