आत्मा तप त्यागादि छे ............................................... ८१ -------- ४३
स्व-परने जाणवानुं प्रयोजन ........................................... ८२ -------- ४४
रत्नत्रययुक्त जीव उत्तम तीर्थ छे ................................... ८३ -------- ४४
रत्नत्रयनुं स्वरूप ......................................................... ८४ -------- ४५
ज्यां चेतन त्यां गुण ................................................... ८५ -------- ४५
एक आत्माने जाणो .................................................... ८६ -------- ४६
सहज स्वरूपमां रमण कर ............................................ ८७ -------- ४६
सम्यग्द्रष्टिने निर्जरा थाय छे ......................................... ८८ -------- ४७
जे स्वरूपमां रमे ते ज शीघ्र भवपार पामे ...................... ८९ -------- ४७
सम्यग्द्रष्टि ज खरो पंडित छे ........................................ ९० -------- ४८
आत्मस्थिरता ते संवर निर्जरानुं कारण छे ....................... ९१ -------- ४८
आत्मस्वभावमां रत जीव कर्मथी बंधातो नथी ................... ९२ -------- ४९
वारंवार आत्मामां रमनारो शीघ्र निर्वाणने पामे छे ............ ९३ -------- ४९
आत्माने अनंतगुणमय ध्यावो ........................................ ९४ -------- ५०
भेदविज्ञानी सर्वशास्त्रोनो ज्ञाता छे.................................... ९५ -------- ५०
आत्मज्ञान विनानुं शास्त्रज्ञान व्यर्थ छे .............................. ९६ -------- ५१
परमसमाधि शिवसुखनुं कारण छे ................................... ९७ -------- ५१
आत्मध्यान परमात्मानुं कारण छे ................................... ९८ -------- ५२
समताभावे सर्व जीवने ज्ञानमय जाणवा ते सामायिक छे ..... ९९ -------- ५२
राग-द्वेषनो त्याग करवो ते सामायिक छे ........................१०० -------- ५३
छेदोपस्थापना चारित्र .................................................१०१ -------- ५३
परिहारविशुद्धिचारित्र ..................................................१०२ -------- ५४
यथाख्यातचारित्र ........................................................१०३ -------- ५४
आत्मा ज पंचपरमेष्ठी छे ..........................................१०४ -------- ५५
आत्मा ज ब्रह्मा, विष्णु, महेश छे ...............................१०५ -------- ५५
देहमां रहेला आत्मा अने परमात्मामां कांई