Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2-3.

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२ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
घाइ-चउक्कहं किउ विलउ णंत चउक्कुं पदिट्ठु
तह जिणइंदहं पय णविवि अकखमि कव्वु सुइट्ठु ।।।।
[येन] घातिचतुष्कस्य कृतः विलयः अनंत चतुष्कंप्रदर्शितम्
तस्य जिनेन्द्रस्य पादौ नत्वा आख्यामि कीष्टम् ।।।।
चार घातिया क्षय करी, लह्यां अनंतचतुष्ट;
ते जिनेश्वर चरणे नमी, कहुं काव्य सुईष्ट.
अन्वयार्थ[येन] जेणे [घातिचतुष्कस्य विलयः]
चारघातिकर्मनो नाश [कृतः] कर्यो छे अने [अनंतचतुष्कं प्रदर्शितं]
अनंतचतुष्टयने प्रगट कर्युं छे, [तस्य जिनेन्द्रस्य पादौ] ते जिनेन्द्र
भगवाननां चरणने [नत्वा] नमस्कार करीने हुं [सुदिष्टं काव्यं] इष्ट
काव्यने [आख्यामि] कहुं छुं. २.
आ ग्रंथ रचवानुं निमित्त अने प्रयोजनः
संसारहं भयभीयहं मोक्ख्ीलालसयाहं
अप्पा-संबोहण-कयइ कय दोहा एक्कभणाहं ।।।।
संसारस्य भयभीतानां मोक्षस्य लालसकानाम्
आत्मसंबोधनकृते कृताः दोहाः एकमनसाम् ।।।।
इच्छे छे निज मुक्तता, भवभयथी डरी चित्त;
ते भवी जीव संबोधवा, दोहा रच्या एक चित्त.
अन्वयार्थ[संसारस्य भयभीतानां] संसारथी भयभीत छे
अने [मोक्षस्य लालसकानां] मोक्षने इच्छुक छे, [आत्मसंबोधनकृते] तेमना
१. सुदिष्टम् ने बदले सुइष्टम
होवुं जोईए.