Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 4-5.

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आत्माने संबोधवा माटे में [एकमनसां] एकाग्रचित्तथी [दोहाः]
दोहा [कृताः] रच्या छे. ३.
आवा भयंकर संसारमां जीवने रखडवानुं कारणः
कालु अणाइ अणाइ जीउ भव - सायरु जि अणंतु
मिच्छा - दंसण-मोहियउ णवि सुहदुक्ख जि पत्तु ।।।।
कालः अनादिः अनादिः जीवः भवसागरः एव अनन्तः
मिथ्यादर्शनमोहितः नापि सुखं दुःखमेव प्राप्तवान् ।।।।
जीव, काळ, संसार आ, कह्या अनादि अनंत;
मिथ्यामति मोहे दुःखी, कदी न सुख लहंत.
अन्वयार्थ[कालः अनादिः] काल अनादि छे, [जीवः
अनादिः] जीव अनादि छे अने [भवसागरः एव अनन्तः] भवसागर
अनंत छे तेमां [मिथ्यादर्शन मोहितः] मिथ्यादर्शनथी मोहित जीव [न
अपि सुखं] सुख तो पाम्यो ज नथी, [दुःखं एव प्राप्तवान्] एकलुं दुःख
ज पाम्यो छे. ४
त्यारे जीव चार गतिमां भमतो केम अटके?
जइ बीहउ चउ-गइ-गमणा तो पर-भाव चएहि
अप्पा झायहि णिम्मलउ जिम सिव-सुक्ख लहेहि ।।।।
यदि भीतः चतुर्गतिगमनात् ततः परभावं त्यज
आत्मानं ध्याय निर्मलं यथा शिवसुखं लभसे ।।।।
चार गति दुःखथी डरे, तो तज सौ परभाव;
शुद्धातम चिंतन करी, ले शिवसुखनो लाभ.
अन्वयार्थहे जीव! [यदि] जो तुं [चतुर्गतिगमनात्] चार
योगसार
[ ३