Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 6-7.

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गतिना भ्रमणथी [भीतः] डरतो हो [ततः] तो [परभावं त्यज]
परभावनो त्याग कर अने [निर्मलं आत्मानं] निर्मल आत्मानुं [ध्याय]
ध्यान कर, [यथा] के जेथी [शिवसुखं] तुं मोक्षसुखने [लभसे] पाम. ५
हवे ए चिंतन केम करवुं ते कहे छेः
ति-पयारो अप्पा मुणहि परु अंतरु बहिरप्पु
पर सायहि अंतर-सहिउ बाहिरु चयहि णिमंतु ।।।।
त्रिप्रकारः आत्मा(इति)मन्यस्व परः आन्तर बहिरात्मा
परं ध्याय आन्तरसहितः बाह्यं त्यज निर्भ्रान्तम् ।।।।
त्रिविध आत्मा जाणीने, तज बहिरातम रूप;
थई तुं अंतर आतमा, ध्या परमात्म स्वरूप.
अन्वयार्थ[परः अन्तरः बहिरात्मा त्रिप्रकारः आत्मा मन्यस्व]
परमात्मा, अन्तरात्मा, बहिरात्मा ए रीते आत्मा त्रण प्रकारे छे एम
जाणो.
[निर्भ्रान्तं] निःशंकपणे [बाह्यं त्यज] बहिरात्माने छोड अने [आन्तर
सहितः] अन्तरात्मा थईने [परं ध्याय] परमात्मानुं ध्यान कर. ६.
हवे बहिरात्मानुं स्वरूप कहे छेः
मिच्छा-दसण-मोहियउ परु अप्पा ण मुणेइ
सो बहिरप्पा जिण-भणिउ पुण संसार भमेइ ।।।।
मिथ्यादर्शनमोहितः परं आत्मानं न मनुते
स बहिरात्म जिनभणितः पुनः संसारे भ्रमति ।।।।
मिथ्यामतिथी मोही जन, जाणे नहि परमात्मा;
ते बहिरातम जिन कहे, ते भमतो संसार.
अन्वयार्थ[मिथ्यादर्शनमोहितः] मिथ्या दर्शनथी मोहित जे
४ ]
योगीन्दुदेवविरचितः