Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषय
गाथा नं. पृष्L नं.
अनादिकालथी जीव सम्यक्त्व पाम्यो नथी .......................... २५ -------- १४
मोक्ष पामवा माटे शुं करवुं? .......................................... २६ -------- १४
निर्मल आत्मानी भावना करवाथी ज मोक्ष थशे ................. २७ -------- १५
जिन ते ज आत्मा छे ................................................. २८ -------- १५
आत्मज्ञान विना व्रतादि मोक्षनां कारण थतां नथी .............. २९ -------- १६
आत्माने जाणवो ते मोक्षनुं कारण छे .............................. ३० -------- १६
आत्मज्ञान विना एकलुं व्यवहार चारित्र वृथा छे ............... ३१ -------- १७
पुण्य, पाप बन्ने संसार छे, आत्मज्ञान
ज मोक्षनुं कारण छे. ............................................ ३२ -------- १७
परमार्थनो पंथ एक ज छे ............................................ ३३ -------- १८
पोतानुं शुद्ध स्वरूप जाणवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे ......... ३४ -------- १८
व्यवहारथी नवतत्त्वने जाणो............................................ ३५ -------- १९
सर्व पदार्थोमां एक जीव ज सारभूत छे ......................... ३६ -------- १९
व्यवहारनो मोह त्यागवो जरूरी छे. शुद्ध
आत्माने जाणवाथी ज संसारनो पार पमाय छे ......... ३७ -------- २०
भेद ज्ञान सर्वस्व छे .................................................... ३८ -------- २०
आत्मा केवलज्ञानस्वभावी छे .......................................... ३९ -------- २१
ज्ञानीने दरेक जग्याए एक आत्मा ज देखाय छे ................ ४० -------- २१
अनात्मज्ञानी कुतीर्थोमां भमे छे ...................................... ४१ -------- २२
देह देवालयमां जिनदेव छे ........................................... ४२ -------- २२
देवालयमां देव नथी .................................................... ४३ -------- २३
समभावरूप चित्तथी पोताना देहमां जिनदेवने देख ............. ४४ -------- २४
ज्ञानथी ज देह-देवालयमां परमात्माने देखे छे ................... ४५ -------- २४
धर्मरसायन पीवाथी अजर अमर थवाय छे ...................... ४६ -------- २५
बाह्य क्रियाथी धर्म थतो नथी ......................................... ४७ -------- २५
राग-द्वेषनो त्याग करीने आत्मामां वसवुं ते धर्म छे ........... ४८ -------- २६
आशा-तृष्णा वगेरे संसारनां कारणो छे ............................ ४९ -------- २६
आत्मामां रमण करनार निर्वाणने पामे छे ....................... ५० -------- २७
आत्मभावनाथी संसारनो पार पमाय .............................. ५१ -------- २७
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