gnAnIone [ये परभावं त्यजन्ति] ke jeo parabhAvane chhoDe chhe ane
[लोकालोकप्रकाशकरं विमलं आत्मानं] lokAlokaprakAshak nirmal AtmAne
[मन्यन्ते] jANe chhe. 64.
AtmaramaNatA shivasukhano upAy chhe.
सागारु वि णागारु कु वि जो अप्पाणि वसेइ ।
सो लहु पावइ सिद्धि – सुहु जिणवरु एम भणेइ ।।६५।।
सागारः अपि अनगारः कः अपि यः आत्मनि वसति ।
स लघु प्राप्नोति सिद्धिसुखं जिनवरः एवं भणति ।।६५।।
munijan ke koI gRuhI, je rahe AtamalIn;
shIghra siddhisukh te lahe, em kahe prabhu jin. 65.
anvayArtha — [सागारः अपि अनगारः] shrAvak ho ke muni ho
[यः कः अपि] koI paN ho, paN je [आत्मनि वसति] AtmAmAn vase
chhe. [सः] te [लघु] shIghra ja [सिद्धिसुखं प्राप्नोति] mokShanA sukhane pAme
chhe, [एवं] em [जिनवरः भणति] jinavar kahe chhe. 65.
koI viralA ja tattvagnAnI hoy chhe —
विरला जाणहिं तत्तु बुह विरला णिसुणहिं तत्तु ।
विरला झायहिं तत्तु जिय विरला धारहिं तत्तु ।।६६।।
विरलाः जानन्ति तत्त्वं बुधाः विरला निशृण्वन्ति तत्त्वम् ।
विरलाः ध्यायन्ति तत्त्वं जीव विरलाः धारयन्ति तत्त्वम् ।।६६।।
viralA jANe tattvane, vaLI sAmbhaLe koI;
viralA dhyAve tattvane, viralA dhAre koI. 66
anvayArtha — [जीव] he jIv! [विरलाः बुधाः] koI viral
yogasAr
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