: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : ३९ :
शास्त्र–गुरुनुं बहुमान नहि करीए तो कोनुं बहुमान करीशुं? मुमुक्षुओ
जिनवाणीनी प्रशंसा नहि करे तो कोनी करशे? –पछी ते जिनवाणी भले
समयसारादि परमागमोरूपे गुंथायेली होय के ‘आत्मधर्म’ रूपे गुंथायेली होय...
के बीजा कोई पण पुस्तकरूपे होय, –पण जे जिनवाणी आपणने शुद्धात्मस्वरूप
देखाडे छे ते माता जिनवाणी सदाय पूज्य छे. –प्रशंसनीय छे... एथी जेटली
प्रशंसा करीए, एनुं जेटलुं सन्मान करीए तेटलुं ओछुं छे, एक मुमुक्षुने तो
ज्ञान अने रागनी भिन्नता वांचीने आत्मधर्म प्रत्ये एवो प्रमोद आवी गयो के
अर्घ चडावीने तेनी पूजा करी–ए वात प्रसिद्ध छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए पण
रूपियानो थाळ भरीने समयसारनुं परम सन्मान कर्युं हतुं; एना प्रतापे तो
‘श्रीमद् राजचंद्र जैन ग्रंथमाळा’ तरफथी समयसार प्रसिद्धिमां आव्युं, ते गुरुदेव
(कानजीस्वामी) ना हाथमां आव्युं ने तेनो आटलो महान प्रचार थयो. आ
रीते आत्म–उपकारी देव–शास्त्र–गुरुनुं परम बहुमान दरेक मुमुक्षुने होय छे, ने
तेनो महिमा देखीने तेने प्रसन्नता थाय छे. –केमके, ‘न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति। ’
* वीतराग विज्ञानना प्रचारनी भावना: बे मास पहेलांं विदिशानगरी
(मध्यप्रदेश) मां स्वाध्यायमंदिरना उद्घाटन प्रसंगे भाषणमां शेठश्री
पूरनचंद्रजी गोदीकाए ज्ञाननो महिमा बतावतां कह्युं के– “ईस स्वाध्यायमंदिरमें
बेठकर धर्मीजीव तत्त्व अभ्यास करेंगे और अपने अज्ञानका नाश करके
मोक्षमार्गका उद्घाटन करेंगे! जीवनमें यदि कुछ प्राप्त करने लायक है तो एकमात्र
वीतरागविज्ञान ही है! ज्ञानके समान जगतमें और कोई पदार्थ सुखका कारण
नहीं है! ... मैं जैनसमाजसे यह अपेक्षा रखूंगा कि... अपने बालकोंमे
वीतरागविज्ञानका बीजारोपण करें! लाभ लेनेवाले हजारों बालकोंमेंसे
यदि एक–दो बालकोंने भी आत्मस्वरूपकी प्राप्ति कर ली तो वे सिद्धदशाको
शीघ्र प्राप्त होंगे! ”
ए ज विदिशा नगरमां पांचमी प्रशिक्षण–शिबिरनी पूर्णता प्रसंगे अध्यक्ष
स्थानेथी गया शहेर (बिहार) ना श्रीमान शेठश्री गजानंदजी पाटनीए पण बाळकोने
धर्मशिक्षा आपवा माटे भारपूर्वक कह्युं के–समाजको ईन लाखों रूपिया खर्च करनेसे क्या
लाभ होता है जबकि हमारे बालकोंको धर्मशिक्षा भी प्राप्त नहीं हो पाती? आजके युगमें
धर्मप्रचारके नामपर बडीबडी ईमारतोंमें पैसा डालना अथवा अनेक मेलों आदिके
नामपर लाखों रूपया व्यय कर देनेके बजाय ऐसे तत्त्वप्रचारके ठोस कामोंमें पैसा
लगाया जाना अधिक आवश्यक है. ईसीसे सच्चा धर्मप्रचार होगा, –ऐसा मेरा विश्वास
है! पूज्य श्री कानजीस्वामीका हम सब पर महान–महान उपकार है, उन्हींके द्वारा आज
सारे भारतमें चेतना जागृत हुई है!!