Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 172.

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अमृत वाणी (भाग-४)

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ट्रेक-१७२ (audio) (View topics)

समाधानः- ... सब वह करनेका है। उसीके लिये यह सब तत्त्वविचार, वांचन, स्वाध्याय एक चैतन्यतत्त्व पहिचाननेके लिये (है)। गुरुदेवने वही कहा है। सबका सार एक ही है कि चैतन्यतत्त्व पहिचानना। उसकी परिणति, उसकी स्वानुभूति प्रगट करनी वही एक, सर्वस्व सार एक है। जीवनकी सफलता उसमें है। उसकी भावना, उसकी महिमा, उसका विचार, उसका निर्णय, उसकी परिणति, जो पुरुषार्थ हो वह उसीके लिये करने जैसा है।

मुमुक्षुः- ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक। उसमें अधोलोकमें जिन मन्दिरकी संख्या ज्यादा है। वहाँ ऐसे परिणाम...?

समाधानः- कुदरती शाश्वत प्रतिमाएँ हैं।

मुमुक्षुः- वहाँ ज्यादा है। .. पाताललोकमें।

समाधानः- असंख्यात जिनमन्दिर हैं। व्यंतरलोक, भवनपति, ज्योतिष उन सबमें शाश्वत जिन मन्दिर हैं। कुदरती शाश्वत हैं। देवलोकके देवोंके निवासमें हैं। अधोलोक यानी जहाँ देव बसते हैं, ज्योतिष, व्यंतर, भवनपति। वैमानिकमें तो हैं ही। वहाँ सब जगह हैं। मनुष्यलोकमें है, सब जगह हैं, शाश्वत प्रतिमाएँ।

मुमुक्षुः- माताजी! आत्माको जो पकडनेका है, वह तो उघाड तो ज्ञानका क्षयोपशम अंश है वह उघाडरूप अंश है, उसीमें पूरा आत्मा पकडमें आता है? उघाड अंशमें ही? दूसरा कोई साधन तो है नहीं। अज्ञानीके पास दूसरा कोई साधन है नहीं।

समाधानः- अंतरकी स्वयंकी जो रुचि है वह स्वयंको ग्रहण करती है। यही करने जैसा है, मैं कैसे आत्माको खोजू? अपनी खोजनेकी भावना है, और अन्दरकी जो महिमा, चटपटी लगे वही अपने ज्ञायकको, वह भले ही क्षयोपशमका अंश है, परन्तु वह आत्माको ग्रहण कर लेता है। वह भले पर्याय है, लेकिन ग्रहण द्रव्यको करना है। द्रव्यको ग्रहण करती है। उसकी दृष्टि पूरे द्रव्य पर जाती है। वह क्षयोपशम भले थोडा हो, लेकिन वह मुख्य प्रयोजनभूत तत्त्वको ग्रहण कर सकता है। उसकी ओर रुचि और लगन हो तो ग्रहण हो सकता है। विभावसे भिन्न होकर चैतन्यको ग्रहण कर लेता है।