(બધું સમજવું) ચૈતન્ય તત્ત્વ ઓળખવા માટે છે 0 Play (बधुं समजवुं) चैतन्य तत्त्व ओळखवा माटे छे 0 Play
અધોલોકમાં અકૃત્રિમ જિનપ્રતિમા વધારે છે. ત્યાં તેવા ભાવ ..... 0:40 Play अधोलोकमां अकृत्रिम जिनप्रतिमा वधारे छे. त्यां तेवा भाव ..... 0:40 Play
માતાજી! આત્માને જે પકડવાનો છે. જ્ઞાનનો ઉઘાડ ક્ષયોપશમનો અંશ છે તેમાં શું આત્મા પકડાય? તેના સિવાય બીજા કોઈ સાધન અજ્ઞાની પાસે છે? 1:30 Play माताजी! आत्माने जे पकडवानो छे. ज्ञाननो उघाड क्षयोपशमनो अंश छे तेमां शुं आत्मा पकडाय? तेना सिवाय बीजा कोई साधन अज्ञानी पासे छे? 1:30 Play
માતાજી! પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી શું સ્વર્ગમાંથી આવે છે? આપ તો તેમના અનન્ય ભકત છો 3:25 Play माताजी! पूज्य गुरुदेवश्री शुं स्वर्गमांथी आवे छे? आप तो तेमना अनन्य भकत छो 3:25 Play
સોનગઢમાં રહેવા છતાં પ્રવૃત્તિ એટલી બધી રહે છે તેમાં અમારે કઈ રીતે..... 4:50 Play सोनगढमां रहेवा छतां प्रवृत्ति एटली बधी रहे छे तेमां अमारे कई रीते..... 4:50 Play
આત્મા સર્વાંગે સહજાનંદની મૂર્તિ જ્યાંથી જુઓ ત્યાંથી આનંદ આનંદ...તો અમને એવો આનંદ કઈ રીતે પ્રગટે?વૈરાગ્ય સંબોધન તથા મુમુક્ષુઓએ શું કરવા જેવું છે તે વિષે.... 9:20 Play आत्मा सर्वांगे सहजानंदनी मूर्ति ज्यांथी जुओ त्यांथी आनंद आनंद...तो अमने एवो आनंद कई रीते प्रगटे?वैराग्य संबोधन तथा मुमुक्षुओए शुं करवा जेवुं छे ते विषे.... 9:20 Play
ઘ્યાન કેવી રીતે કરવું? 14:45 Play घ्यान केवी रीते करवुं? 14:45 Play
યથાર્થજ્ઞાન કેવી રીતે થાય? 16:45 Play यथार्थज्ञान केवी रीते थाय? 16:45 Play
ભગવતગીતામાં કહ્યું છે કે આત્મા હણાતો નથી તેને શરીર નથી.....આ રીતે શું આત્માના સ્વરૂપ સુધી પહોંચી શકાય? 18:00 Play भगवतगीतामां कह्युं छे के आत्मा हणातो नथी तेने शरीर नथी.....आ रीते शुं आत्माना स्वरूप सुधी पहोंची शकाय? 18:00 Play
समाधानः- ... सब वह करनेका है। उसीके लिये यह सब तत्त्वविचार, वांचन,स्वाध्याय एक चैतन्यतत्त्व पहिचाननेके लिये (है)। गुरुदेवने वही कहा है। सबका सार एक ही है कि चैतन्यतत्त्व पहिचानना। उसकी परिणति, उसकी स्वानुभूति प्रगट करनी वही एक, सर्वस्व सार एक है। जीवनकी सफलता उसमें है। उसकी भावना, उसकी महिमा, उसका विचार, उसका निर्णय, उसकी परिणति, जो पुरुषार्थ हो वह उसीके लिये करने जैसा है।
मुमुक्षुः- ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक। उसमें अधोलोकमें जिन मन्दिरकीसंख्या ज्यादा है। वहाँ ऐसे परिणाम...?
समाधानः- कुदरती शाश्वत प्रतिमाएँ हैं।
मुमुक्षुः- वहाँ ज्यादा है। .. पाताललोकमें।
समाधानः- असंख्यात जिनमन्दिर हैं। व्यंतरलोक, भवनपति, ज्योतिष उन सबमें शाश्वत जिन मन्दिर हैं। कुदरती शाश्वत हैं। देवलोकके देवोंके निवासमें हैं। अधोलोक यानी जहाँ देव बसते हैं, ज्योतिष, व्यंतर, भवनपति। वैमानिकमें तो हैं ही। वहाँ सब जगह हैं। मनुष्यलोकमें है, सब जगह हैं, शाश्वत प्रतिमाएँ।
मुमुक्षुः- माताजी! आत्माको जो पकडनेका है, वह तो उघाड तो ज्ञानका क्षयोपशमअंश है वह उघाडरूप अंश है, उसीमें पूरा आत्मा पकडमें आता है? उघाड अंशमें ही? दूसरा कोई साधन तो है नहीं। अज्ञानीके पास दूसरा कोई साधन है नहीं।
समाधानः- अंतरकी स्वयंकी जो रुचि है वह स्वयंको ग्रहण करती है। यहीकरने जैसा है, मैं कैसे आत्माको खोजू? अपनी खोजनेकी भावना है, और अन्दरकी जो महिमा, चटपटी लगे वही अपने ज्ञायकको, वह भले ही क्षयोपशमका अंश है, परन्तु वह आत्माको ग्रहण कर लेता है। वह भले पर्याय है, लेकिन ग्रहण द्रव्यको करना है। द्रव्यको ग्रहण करती है। उसकी दृष्टि पूरे द्रव्य पर जाती है। वह क्षयोपशम भले थोडा हो, लेकिन वह मुख्य प्रयोजनभूत तत्त्वको ग्रहण कर सकता है। उसकी ओर रुचि और लगन हो तो ग्रहण हो सकता है। विभावसे भिन्न होकर चैतन्यको ग्रहण कर लेता है।