Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 206.

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ट्रेक-२०६ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आत्मामें संतोष हो, ऐसी प्रतीति इस जीवको कैसे उत्पन्न हो?

समाधानः- आत्मामें संतोष हो, ऐसी प्रतीति आत्मामें ही सबकुछ है, ऐसा स्वयं विचार करके निर्णय करना चाहिये। उसीमें उसे महिमा लगनी चाहिये। विभाव है उसकी महिमा टूट जाय और स्वभावकी महिमा आये कि ज्ञानमें ही सर्वस्व है। उसे विचारसे, उसे युक्तिसे नक्की करना चाहिये कि ज्ञानमें सब है। ऐसा गुरुदेवने बताया है, शास्त्रमें आता है, लेकिन तू विचारसे स्वयंसे नक्की कर।

स्वयं नक्की कर कि जो गुरुदेवने बताया, उसे बुद्धिसे, स्वभावको पहचानकर नक्की कर कि ये जो ज्ञान दिखता है, उस ज्ञानमें ही सब है। ऐसा विचार करके, उसके कारण-कार्यसे तू नक्की कर कि ज्ञानमें ही सब है, कहीं और नहीं है। ज्ञानमें-से ही प्रगट होनेवाला है। उसकी यथार्थ प्रतीति करनी अपने हाथकी बात है। विचारसे, कारण- कार्यकी युक्तिसे, ऐसी उसकी युक्ति और दलील हो कि टूटे नहीं, ऐसी यथार्थ दलीलसे, युक्तिसे उसकी बराबर प्रतीति कर और उसमें दृढता कर। उसीमें है।

क्योंकि पहले अनुभूति नहीं होती। पहले तो वह नक्की करता है। विचारसे, उसके अमुक लक्षण दिखे उस लक्षणसे नक्की करता है। नक्की करे कि उसीमें सब है। वह ज्ञान रूखा नहीं है। परन्तु ज्ञानमें सब है। ज्ञान महिमावंत है, सुखसे भरा शिव है। सुखसे भरा आत्मा है। अनन्त गुणोंसे (भरपूर) कोई अपूर्व अनुपम आत्मा है। बाहर किसीके साथ उसे मेल नहीं है। वह भी स्वयंको लक्षणसे नक्की करना पडता है। गुरु बताये, शास्त्र बताये, लेकिन स्वयं नक्की करे तो ही स्वयंको महिमा आती है। स्वयंको नक्की करना है।

समाधानः- .. ऐसी भावना करनेसे।

मुमुक्षुः- ऐसी भावना करनेसे?

समाधानः- भावना करे कि मैं तो जीव हूँ। मैं तो ज्ञायक चैतन्यतत्त्व हूँ, यह शरीर मेरा नहीं है, परद्रव्य है। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न हैं, मेरे भिन्न हैं। (दोनों) भिन्न हैं। ऐसा विचार करना। ऊपर-ऊपरसे विकल्प आवे, फिर छूट जाय। बारंबार अभ्यास करना, बारंबार उसका अभ्यास करना। वह छूट जाय तो भी बारंबार रुचि, महिमा