આત્મામાં સંતોષ થાય એવી પ્રતીતિ આ જીવને કેવી રીતે ઉપજે? 0 Play आत्मामां संतोष थाय एवी प्रतीति आ जीवने केवी रीते उपजे? 0 Play
આત્માની વારંવાર ભાવના કરવી જોઈએ એ વિષે..... 2:00 Play आत्मानी वारंवार भावना करवी जोईए ए विषे..... 2:00 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રીએ અપૂર્વ માર્ગ બતાવ્યો તે માર્ગે પુરુષાર્થ કરીને પોતાને ચાલવાનું છે તે વિષે..... 3:15 Play पूज्य गुरुदेवश्रीए अपूर्व मार्ग बताव्यो ते मार्गे पुरुषार्थ करीने पोताने चालवानुं छे ते विषे..... 3:15 Play
બહુત જીવ યહાઁસે સ્વર્ગમેં ગયે, પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી ભી ગયે, લેકિન ઉનકો યહાઁકા વિકલ્પ.... 5:30 Play बहुत जीव यहाँसे स्वर्गमें गये, पूज्य गुरुदेवश्री भी गये, लेकिन उनको यहाँका विकल्प.... 5:30 Play
ગુરુની વાણી જીવની પરિણતીને માર્ગદર્શન આપવામાં કેવી રીતે ઉપકારી થાય છે? તથા પરમાત્મા કેવી રીતે ઉપકારી થાય છે? 6:30 Play गुरुनी वाणी जीवनी परिणतीने मार्गदर्शन आपवामां केवी रीते उपकारी थाय छे? तथा परमात्मा केवी रीते उपकारी थाय छे? 6:30 Play
સાધકની ભૂમિકામાં દ્રષ્ટિ પ્રગટ થઈ છે તેની સાથે શુભરાગ આવે છે તેને તે જાણે છે પણ જિજ્ઞાસુની ભૂમિકામાં પણ બેય સાથે રહે છે તેમ આપે કહ્યું પણ અમને તો એમ લાગે છે કે દેવ-ગુરુ-શાસ્ત્રને સાથે રાખવાથી અનાદિનો વ્યવહારનો પક્ષ–રુચિ છે તેમાં વ્યવહારની રુચિ થવાની શકયતા છે ? 11:15 Play साधकनी भूमिकामां द्रष्टि प्रगट थई छे तेनी साथे शुभराग आवे छे तेने ते जाणे छे पण जिज्ञासुनी भूमिकामां पण बेय साथे रहे छे तेम आपे कह्युं पण अमने तो एम लागे छे के देव-गुरु-शास्त्रने साथे राखवाथी अनादिनो व्यवहारनो पक्ष–रुचि छे तेमां व्यवहारनी रुचि थवानी शकयता छे ? 11:15 Play
....જોડણી ક્ષાયિકના સ્વરૂપ વિષે તથા તે કોને પ્રાપ્ત થાય તેના વિષે વિશેષ ખુલાસો કરશો. 16:00 Play ....जोडणी क्षायिकना स्वरूप विषे तथा ते कोने प्राप्त थाय तेना विषे विशेष खुलासो करशो. 16:00 Play
ધર્મ એટલે સમ્યગ્દર્શન-જ્ઞાન-ચારિત્ર પ્રગટ કરવા માટે એક ભેદજ્ઞાનની પદ્ધતિની વાત આવે છે બીજી બાજુ જ્ઞાયકની પ્રતીતિ કરવાની વાત સમયસાર-નિયમસારમાં આવે છે તે બંનેનો મેળ કેવી રીતે છે તે સમજાવવા કૃપા કરશો. પાત્ર શિષ્યના મુખ્ય-મુખ્ય લક્ષણો સંબંધી થોડું માર્ગદર્શન આપશો. 18:55 Play धर्म एटले सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र प्रगट करवा माटे एक भेदज्ञाननी पद्धतिनी वात आवे छे बीजी बाजु ज्ञायकनी प्रतीति करवानी वात समयसार-नियमसारमां आवे छे ते बंनेनो मेळ केवी रीते छे ते समजाववा कृपा करशो. पात्र शिष्यना मुख्य-मुख्य लक्षणो संबंधी थोडुं मार्गदर्शन आपशो. 18:55 Play
मुमुक्षुः- आत्मामें संतोष हो, ऐसी प्रतीति इस जीवको कैसे उत्पन्न हो?
समाधानः- आत्मामें संतोष हो, ऐसी प्रतीति आत्मामें ही सबकुछ है, ऐसा स्वयं विचार करके निर्णय करना चाहिये। उसीमें उसे महिमा लगनी चाहिये। विभाव है उसकी महिमा टूट जाय और स्वभावकी महिमा आये कि ज्ञानमें ही सर्वस्व है। उसे विचारसे, उसे युक्तिसे नक्की करना चाहिये कि ज्ञानमें सब है। ऐसा गुरुदेवने बताया है, शास्त्रमें आता है, लेकिन तू विचारसे स्वयंसे नक्की कर।
स्वयं नक्की कर कि जो गुरुदेवने बताया, उसे बुद्धिसे, स्वभावको पहचानकर नक्कीकर कि ये जो ज्ञान दिखता है, उस ज्ञानमें ही सब है। ऐसा विचार करके, उसके कारण-कार्यसे तू नक्की कर कि ज्ञानमें ही सब है, कहीं और नहीं है। ज्ञानमें-से ही प्रगट होनेवाला है। उसकी यथार्थ प्रतीति करनी अपने हाथकी बात है। विचारसे, कारण- कार्यकी युक्तिसे, ऐसी उसकी युक्ति और दलील हो कि टूटे नहीं, ऐसी यथार्थ दलीलसे, युक्तिसे उसकी बराबर प्रतीति कर और उसमें दृढता कर। उसीमें है।
क्योंकि पहले अनुभूति नहीं होती। पहले तो वह नक्की करता है। विचारसे, उसकेअमुक लक्षण दिखे उस लक्षणसे नक्की करता है। नक्की करे कि उसीमें सब है। वह ज्ञान रूखा नहीं है। परन्तु ज्ञानमें सब है। ज्ञान महिमावंत है, सुखसे भरा शिव है। सुखसे भरा आत्मा है। अनन्त गुणोंसे (भरपूर) कोई अपूर्व अनुपम आत्मा है। बाहर किसीके साथ उसे मेल नहीं है। वह भी स्वयंको लक्षणसे नक्की करना पडता है। गुरु बताये, शास्त्र बताये, लेकिन स्वयं नक्की करे तो ही स्वयंको महिमा आती है। स्वयंको नक्की करना है।
समाधानः- .. ऐसी भावना करनेसे।
मुमुक्षुः- ऐसी भावना करनेसे?
समाधानः- भावना करे कि मैं तो जीव हूँ। मैं तो ज्ञायक चैतन्यतत्त्व हूँ, यह शरीर मेरा नहीं है, परद्रव्य है। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न हैं, मेरे भिन्न हैं। (दोनों) भिन्न हैं। ऐसा विचार करना। ऊपर-ऊपरसे विकल्प आवे, फिर छूट जाय। बारंबार अभ्यास करना, बारंबार उसका अभ्यास करना। वह छूट जाय तो भी बारंबार रुचि, महिमा