Samaysar (Hindi). Sadhak Jivni Drashti; Varnanukram SuchI; Kalash Kavyoki Varnanukram Suchi.

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इति श्रीमदमृतचन्द्राचार्यकृता समयसारव्याख्या आत्मख्यातिः समाप्ता अमुक कार्य किया है इस न्यायसे यह आत्मख्याति नामक टीका भी अमृतचन्द्राचार्यकृत है ही इसलिये इसके पढ़नेसुननेवालोंको उनका उपकार मानना भी युक्त है; क्योंकि इसके पढ़नेसुननेसे पारमार्थिक आत्माका स्वरूप ज्ञात होता है, उसका श्रद्धान तथा आचरण होता है, मिथ्या ज्ञान, श्रद्धान तथा आचरण दूर होता है और परम्परासे मोक्षकी प्राप्ति होती है मुमुक्षुओंको इसका निरन्तर अभ्यास करना चाहिये।२७८।

इसप्रकार श्री समयसारकी (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार परमागमकी) श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक टीका समाप्त हुई

(अब, पंडित जयचन्द्रजी भाषाटीका पूर्ण करते हुये कहते हैं :)
(सवैया)
कुन्दकुन्दमुनि कियो गाथाबंध प्राकृत है प्राभृतसमय शुद्ध आतम दिखावनूं,
सुधाचन्द्रसूरि करी संस्कृत टीकावर आत्मख्याति नाम यथातथ्य भावनूं;
देशकी वचनिकामें लिखि जयचन्द्र पढ़ै संक्षेप अर्थ अल्पबुद्धिकूं पावनूं,
पढ़ो सुनो मन लाय शुद्ध आतमा लखाय ज्ञानरूप गहौ चिदानन्द दरसावनूं
।।१।।
(दोहा)
समयसार अविकारका, वर्णन कर्ण सुनन्त
द्रव्य-भाव-नोकर्म तजि, आतमतत्त्व लखन्त।।२।।

इसप्रकार इस समयप्राभृत (अथवा समयसार) नामक शास्त्रकी आत्मख्याति नामकी संस्कृत टीकाकी देशभाषामय वचनिका लिखी है इसमें संस्कृत टीकाका अर्थ लिखा है और अति संक्षिप्त भावार्थ लिखा है, विस्तार नहीं किया है संस्कृत टीकामें न्यायसे सिद्ध हुए प्रयोग हैं यदि उनका विस्तार किया जाय तो अनुमानप्रमाणके पांच अंगपूर्वकप्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमनपूर्वकस्पष्टतासे व्याख्या करने पर ग्रन्थ बहुत बढ़ जाय; इसलिये आयु, बुद्धि, बल और स्थिरताकी अल्पताके कारण, जितना बन सका है उतना, संक्षेपसे प्रयोजनमात्र लिखा है इसे पढ़कर भव्यजन पदार्थको समझना किसी अर्थमें हीनाधिकता हो तो बुद्धिमानजन मूल ग्रन्थानुसार जैसा हो वैसा यथार्थ समझ लेना इस ग्रन्थके गुरुसम्प्रदायका (गुरूपरम्परागत उपदेशका) व्युच्छेद हो गया है, इसलिये जितना हो सके उतनायथाशक्ति अभ्यास हो सकता है तथापि जो स्याद्वादमय जिनमतकी आज्ञा मानते हैं, उन्हें विपरीत श्रद्धान नहीं होता यदि कहीं अर्थको अन्यथा समझना भी हो जाय तो


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विशेष बुद्धिमानका निमित्त मिलने पर वह यथार्थ हो जाता है जिनमतके श्रद्धालु हठग्राही नहीं होते

अब, अन्तिम मङ्गलके लिए पंचपरमेष्ठीको नमस्कार करके शास्त्रको समाप्त करते हैंः
(छप्पय छंद)
मङ्गल श्री अरहन्त घातिया कर्म निवारे,
मङ्गल सिद्ध महन्त कर्म आठों परजारे,
आचारज उवज्झाय मुनि मङ्गलमय सारे,
दीक्षा शिक्षा देय भव्यजीवनिकूं तारे;
अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अनगार हैं,
मैं नमूं पंचगुरुचरणकूं मङ्गल हेतु करार हैं
।।१।।
(सवैया छंद)
जैपुर नगरमाँही तेरापंथ शैली बड़ी
बड़े बड़े गुनी जहाँ पढ़ै ग्रन्थ सार है,
जयचन्द्र नाम मैं हूँ तिनिमें अभ्यास किछू
कियो बुद्धिसारु धर्मरागतें विचार है;
समयसार ग्रन्थ ताकी देशके वचनरूप
भाषा करी पढ़ो सुनौ करो निरधार है,
आपापर भेद जानि हेय त्यागि उपादेय
गहो शुद्ध आतमकूं, यहै बात सार है ।।२।।
(दोहा)
संवत्सर विक्रम तणूं, अष्टादश शत और;
चौसठि कातिक बदि दशैं, पूरण ग्रन्थ सुठौर
।३।

इसप्रकार श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत समयप्राभृत नामक प्राकृतगाथाबद्ध परमागमकी श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक संस्कृत टीका अनुसार पण्डित जयचन्द्रजीकृत संक्षेपभावार्थमात्र देशभाषामय वचनिकाके आधारसे श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती अनुवादका हिन्दी रूपान्तर समाप्त हुआ

समाप्त

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साधक जीवकी दृष्टि

अध्यात्ममें सदा निश्चयनय ही मुख्य है; उसीके आश्रयसे धर्म होता है। शास्त्रोंमें जहाँ विकारी पर्यायोंका व्यवहारनयसे कथन किया जाये वहाँ भी निश्चयनयको ही मुख्य और व्यवहारनयको गौण करनेका आशय हैऐसा समझना; क्योंकि पुरुषार्थ द्वारा अपनेमें शुद्धपर्याय प्रगट करने अर्थात् विकारी पर्याय टालनेके लिये सदा निश्चयनय ही आदरणीय है; उस समय दोनों नयोंका ज्ञान होता है परंतु धर्म प्रगट करनेके लिये दोनों नय कभी आदरणीय नहीं हैं। व्यवहारनयके आश्रयसे कभी धर्म अंशतः भी नहीं होता, परंतु उसके आश्रयसे तो राग-द्वेषके विकल्प ही उठते हैं।

छहों द्रव्य, उनके गुण और उनकी पर्यायोंके स्वरूपका ज्ञान करानेके लिए कभी निश्चयनयकी मुख्यता और व्यवहारनयकी गौणता रखकर कथन किया जाता है, और कभी व्यवहारनयको मुख्य करके तथा निश्चयनयको गौण रखकर कथन किया जाता है; स्वयं विचार करे उसमें भी कभी निश्चयनयकी मुख्यता और कभी व्यवहारनयकी मुख्यता की जाती है; अध्यात्मशास्त्रमें भी जीवकी विकारी पर्याय जीव स्वयं करता है इसलिये होती है और वह जीवका अनन्य परिणाम हैऐसा व्यवहारनयसे कहनेमें समझानेमें आता है; परंतु वहाँ प्रत्येक समय निश्चयनय एक ही मुख्य तथा आदरणीय है ऐसा ज्ञानियोंका कथन है। शुद्धता प्रगट करनेके लिए कभी निश्चयनय आदरणीय है और कभी व्यवहारनय आदरणीय हैऐसा मानना वह भूल है। तीनों काल अकेले निश्चयनयके आश्रयसे ही धर्म प्रगट होता है ऐसा समझना।

साधक जीव प्रारम्भसे अन्त तक निश्चयकी ही मुख्यता रखकर व्यवहारको गौण ही करते जाते हैं, इसलिए साधकदशामें निश्चयकी मुख्यताके बलसे साधकको शुद्धताकी वृद्धि ही होती जाती है और अशुद्धता टलती ही जाती है। इस प्रकार निश्चयकी मुख्यताके पूर्ण बलसे केवलज्ञान होने पर वहाँ मुख्य-गौणपना नहीं होता और नय भी नहीं होते।


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श्री समयसारकी वर्णानुक्रम गाथासूची

गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
असुहं सुहं व दव्वं
३८१
५२७
असुहं सुहं व रूवं
३७६
५२६
अज्झवसाणणिमित्तं

२६७

३९६
असुहो सुहो व गंधो
३७७
५२६
अज्झवसिदेण बन्धो

२६२

३९०
असुहो सुहो व गुणो
३८०
५२७
अट्ठवियप्पे कम्मे

१८२

२८६
असुहो सुहो व फासो
३७९
५२७
अट्ठविहं पि य कम्मं

४५

९४
असुहो सुहो व रसो
३७८
५२६
अण्णदविएण

३७२

५२२
असुहो सुहो व सद्दो
३७५
५२६
अण्णाणमओ भावो

१२७

२०३
अह जाणगो दु भावो
३४४
४८१
अण्णाणमया भावा

१२९

२०५
अह जीवो पयडी तह
३३०
४७६
अण्णाणमया भावा

१३१

२०७
अह ण पयडी ण जीवो
३३१
४७६
अण्णाणमोहिदमदी

२३

५८
अह दे अण्णो कोहो
११५
१९४
अण्णाणस्स स उदओ

१३२

२०९
अहमेक्को खलु सुद्धो
३८
८१
अण्णाणी कम्मफलं

३१६

४६२
अहमेक्को खलु सुद्धो
७३
१३७
अण्णाणी पुण रत्तो

२१९

३४१
अहमेदं एदमहं
२०
५५
अण्णो करेदि अण्णो

३४८

४९१
अहवा एसो जीवो
३२९
४७५
अत्ता जस्सामुत्तो

४०५

५७६
अहवा मण्णसि मज्झं
३४१
४८१
अप्पडिकमणं दुविहं

२८३

४१७
अह सयमप्पा परिणमदि
१२४
१९९
अप्पडिकमणं दुविहं दव्वे

२८४

४१७
अह सयमेव हि परिणमदि
११९
१९६
अपरिग्गहो अणिच्छो

२१०

३३०
अह संसारत्थाणं
६३
११७
अपरिग्गहो अणिच्छो

२११

३३१
अपरिग्गहो अणिच्छो

२१२

३३२
अपरिग्गहो अणिच्छो

२१३

३३३
आउक्खयेण मरणं
२४८
३७९
अपरिणमंतम्हि सयं

१२२

१९९
आउक्खयेण मरणं
२४९
३७९
अप्पडिकमणमप्पडिसरणं

३०७

४४८
आऊदयेण जीवदि
२५१
३८१
अप्पाणं झायंतो

१८९

२९४
आऊदयेण जीवदि
२५२
३८२
अप्पाणमप्पणा रुंधिऊण

१८७

२९४
आदम्हि दव्वभावे
२०३
३१८
अप्पाणमयाणंता

३९

८७
आदा खु मज्झ णाणं
२७७
४०९
अप्पाणमयाणंतो

२०२

३१५
आधाकम्मं उद्देसियं
२८७
४२०
अप्पा णिच्चोऽसंखेज्जपदेसो

३४२

४८१
आधाकम्मादीया
२८६
४१९
अरसमरूवमगंधं

४९

९८
आभिणिसुदोधि
२०४
३२०
अवरे अज्झवसाणेसु

४०

८७
आयारादी णाणं
२७६
४०९

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
आयासं पि ण णाणं

४०१

५६८
एमेव कम्मपयडी-
१४९
२४१
आसि मम पुव्वमेदं

२१

५५
एमेव जीवपुरिसो
२२५
३४७
एमेव मिच्छदिट्ठी
३२६
४७२
एमेव य ववहारो
४८
९७
इणमण्णं जीवादो

२८

६४
एमेव सम्मदिट्ठी
२२७
३४७
इय कम्मबंधणाणं

२९०

४२५
एदं तु अविवरीदं
१८३
२८६
एयं तु जाणिऊणं
३८२
५२७
उदओ असंजमस्स दु

१३३

२०९
एयत्तणिच्छयगदो
१०
उदयविवागो विविहो

१९८

३१०
एयं तु असब्भूदं
२२
५५
उप्पण्णोदयभोगो

२१५

३३५
एवमलिए अदत्ते
२६३
३९१
उप्पादेदि करेदि य

१०७

१८९
एवमिह जो दु जीवो
११४
१९४
उम्मग्गं गच्छंतं

२३४

३६१
एवम्हि सावराहो
३०३
४४३
उवओगस्स अणाई

८९

१६३
एवं जाणदि णाणी
१८५
२९०
उवओगे उवओगो

१८१

२८६
एवं ण को वि मोक्खो
३२३
४७०
उवघादं कुव्वंतस्स

२३९

३६९
एवं णाणी सुद्धो
२७९
४१२
उवघादं कुव्वंतस्स

२४४

३७४
एवं तु णिच्छयणयस्स
३६०
५०३
उवभोगमिंदियेहिं

१९३

३०३
एवं पराणि दव्वाणि
९६
१७२
एवं पोग्गलदव्वं
६४
११७
एदेण कारणेण दु

८२

१५०
एवं बंधो उ दोहण्हं पि
३१३
४५९
एदे सव्वे भावा

४४

९१
एवं मिच्छादिट्ठी
२४१
३६९
एदेसु य उवओगो

९०

१६४
एवं ववहारणओ
२७२
४०४
एदेहिं य संबंधो

५७

१११
एवं ववहारस्स दु
३५३
४९६
एक्कं च दोण्णि तिण्णि

६५

११९
एवं ववहारस्स दु
३६५
५०४
एकस्स दु परिणामो

१४०

२१३
एवंविहा बहुविहा
४३
८८
एकस्स दु परिणामो

१३८

२१२
एवं संखुवएसं
३४०
४८१
एदम्हि रदो णिच्चं

२०६

३२५
एवं सम्मद्दिट्ठी
२००
३१२
एदाणि णत्थि जेसिं

२७०

४००
एवं सम्मादिट्ठी
२४६
३७४
एदाहि य णिव्वत्ता

६६

११९
एवं हि जीवराया
१८
४९
एदे अचेदणा खलु

१११

१९१
एसा दु जा मदी दे
२५९
३८८
एदेण कारणेण दु

१७६

२७४
एदेण दु सो कत्ता

९७

१७४
कणयमया भावादो
१३०
२०७
एदेसु हेदुभूदेसु

१३५

२०९
कम्मइयवग्गणासु य
११७
१९६
एमादिए दु विविहे

२१४

३३४

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
कम्मं जं पुव्वकयं

३८३

५३३
कम्मं जं सुहमसुहं

३८४

५३३
छिंददि भिंददि य तहा
२३८
३६९
कम्मं णाणं ण हवदि

३९७

५६८
छिंददि भिंददि य तहा
२४३
३७३
कम्मं पडुच्च कत्ता

३११

४५७
छिज्जदु वा भिज्जदु वा
२०९
३२९
कम्मं बद्धमबद्धं

१४२

२१५
कम्ममसुहं कुसीलं

१४५

२३६
जं कुणदि भावमादा
९१
१६५
कम्मस्साभावेण य

१९२

२९७
जं कुणदि भावमादा
१२६
२०२
कम्मस्स य परिणामं

७५

१४१
जं भावं सुहमसुहं
१०२
१८३
कम्मस्सुदयं जीवं

४१

८७
जं सुहमसुहमुदिण्णं
३८५
५३३
कम्मे णोकम्मम्हि य

१९

५२
जइ जीवेण सह च्चिय
१३७
२१२
जइ ण वि कुणदि च्छेदं
२८९
४२५
कम्मेहि दु अण्णाणी

३३२

४७९
जइया इमेण जीवेण
७१
१३२
कम्मेहि भमाडिज्जदि

३३४

४८०
जइया स एव संखो
२२२
३४३
कम्मेहि सुहाविज्जदि

३३३

४८०
जदि जीवो ण सरीरं
२६
६१
कम्मोदएण जीवा

२५४

३८४
जदि पोग्गलकम्ममिणं
८५
१५५
कम्मोदएण जीवा

२५५

३८४
जदि सो परदव्वाणि य
९९
१८०
कम्मोदएण जीवा

२५६

३८४
जदि सो पोग्गलदव्वी
२५
५८
कह सो घिप्पदि अप्पा

२९६

४३४
जम्हा कम्मं कुव्वदि
३३५
४८०
कालो णाणं ण हवदि

४००

५६८
जम्हा घादेदि परं
३३८
४८०
केहिंचि दु पज्जएहिं

३४५

४९१
जम्हा जाणदि णिच्चं
४०३
५६९
केहिंचि दु पज्जएहिं

३४६

४९१
जम्हा दु अत्तभावं
८६
१५६
को णाम भणिज्ज बुहो

२०७

३२७
जम्हा दु जहण्णादो
१७१
२७०
को णाम भणिज्ज बुहो

३००

४४१
जदा विमुंचए चेदा
३१५
४६१
कोहादिसु वट्टंतस्स

७०

१३०
जह कणयमग्गितवियं
१८४
२९०
कोहुवजुत्तो कोहो

१२५

२००
जह को वि णरो जंपदि
३२५
४७२
जह चेट्ठं कुव्वंतो
३५५
४९७
गंधरसफासरूवा

६०

११२
जह जीवस्स अणण्णुवओगो
११३
१९४
गंधो णाणं ण हवदि

३९४

५६७
जह ण वि सक्कमणज्जो
१९
गुणसण्णिदा दु एदे

११२

१९२
जह णाम को वि पुरिसो
१७
४९
जह णाम को वि पुरिसो
३५
७५
चउविह अणेयभेयं

१७०

२६९
जह णाम को वि पुरिसो
१४८
२४१
चारित्तपडिणिबद्धं

१६३

२५५
जह णाम को वि पुरिसो
२३७
३६९
चेदा दु पयडीअट्ठं

३१२

४५९
जह णाम को वि पुरिसो
२८८
४२५
80

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
जह परदव्वं सेडदि

३६१

५०३
जीवस्स णत्थि रागो
५१
१०३
जह परदव्वं सेडदि

३६२

५०३
जीवस्स णत्थि वग्गो
५२
१०४
जह परदव्वं सेडदि

३६३

५०४
जीवस्स णत्थि वण्णो
५०
१०३
जह परदव्वं सेडदि

३६४

५०४
जीवस्स दु कम्मेण य
१३९
२१३
जह पुण सो च्चिय पुरिसो

२२६

३४७
जीवस्साजीवस्स दु
३०९
४५६
जह पुण सो चेव णरो

२४२

३७३
जीवादीसद्दहणं
१५५
२४९
जह पुरिसेणाहारो

१७९

२८१
जीवे कम्मं बद्धं
१४१
२१४
जह फलिहमणी सुद्धो

२७८

४११
जीवे ण सयं बद्धं
११६
१९६
जह बंधे चिंतंतो

२९१

४२६
जीवो कम्मं उहयं
४२
८७
जह बंधे छित्तूण य

२९२

४२७
जीवो चरित्तदंसण
जह मज्जं पिबमाणो

१९६

३०७
जीवो चेव हि एदे
६२
११६
जह राया ववहारा

१०८

१९०
जीवो ण करेदि घडं
१००
१८१
जह विसमुवभुंजंतो

१९५

३०६
जीवो परिणामयदे
११८
१९६
जह सिप्पि दु कम्मफलं

३५२

४९६
जीवो बंधो य तहा
२९४
४२९
जह सिप्पिओ दु कम्मं

३४९

४९६
जीवो बंधो य तहा
२९५
४३३
जह सिप्पिओ दु करणाणि

३५१

४९६
जे पोग्गलदव्वाणं
१०१
१८२
जह सिप्पिओ दु करणेहिं

३५०

४९६
जो अप्पणा दु मण्णदि
२५३
३८३
जह सिप्पिओ दु चिट्ठं

३५४

४९७
जो इंदिये जिणित्ता
३१
६८
जह सेडिया दु ण परस्स

३५६

५०२
जो कुणदि वच्छलत्तं
२३५
३६२
जह सेडिया दु ण परस्स

३५७

५०३
जो चत्तारि वि पाए
२२९
३५६
जह सेडिया दु ण परस्स

३५८

५०३
जो चेव कुणदि सो चिय
३४७
४९१
जह सेडिया दु ण परस्स

३५९

५०३
जो जम्हि गुणे दव्वे
१०३
१८५
जा एस पयडीअट्ठं चेदा

३१४

४६१
जो ण करेदि दुगुंछं
२३१
३५८
जावं अप्पडिकमणं

२८५

४१७
जो ण कुणदि अवराहे
३०२
४४३
जाव ण वेदि विसेसंतरं

६९

१३०
जो ण मरदि ण य दुहिदो
२५८
३८६
जिदमोहस्स दु जइया

३३

७१
जो दु ण करेदि कंखं
२३०
३५७
जीवणिबद्धा एदे

७४

१३८
जोधेहिं कदे जुद्धे
१०६
१८८
जीवपरिणामहेदुं

८०

१५०
जो पस्सदि अप्पाणं
१४
३७
जीवम्हि हेदुभूदे

१०५

१८७
जो पस्सदि अप्पाणं
१५
४३
जीवस्स जीवरूवं

३४३

४८१
जो पुण णिरावराधो
३०५
४४४
जीवस्स जे गुणा केइ

३७०

५१७
जो मण्णदि जीवेमि य
२५०
३८१
जीवस्स णत्थि केइ

५३

१०४
जो मण्णदि हिंसामि य
२४७
३७८

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
जो मरदि जो य दुहिदो
णाणं सम्मादिट्ठं
४०४
५६९

२५७

३८६
णाणगुणेण विहीणा
२०५
३२३
जो मोहं तु जिणित्ता

३२

६९
णाणमधम्मो ण हवदि
३९९
५६८
जो वेददि वेदिज्जदि

२१६

३३७
णाणमया भावाओ
१२८
२०५
जो समयपाहुडमिणं

४१५

५८९
जो सव्वसंगमुक्को

१८८

२९४
णाणस्स दंसणस्स य
३६९
५१७
णाणस्स पडिणिबद्धं
१६२
२५५
जो सिद्धभत्तिजुत्तो

२३३

३६०
णाणावरणादीयस्स
१६५
२६२
जो सुदणाणं सव्वं

१०

२१
णाणी रागप्पजहो
२१८
३४१
जो सो दु णेहभावो

२४०

३६९
णादूण आसवाणं
७२
१३३
जो सो दु णेहभावो

२४५

३७४
जो हवदि असम्मूढो

२३२

३५९
णिंदिदसंथुदवयणाणि
३७३
५२६
णिच्चं पच्चक्खाणं
३८६
५३४
जो हि सुदेणहिगच्छइ
२०
णिच्छयणयस्स एवं
८३
१५२
णियमा कम्मपरिणदं
१२०
१९६
ण कुदोचि वि उप्पण्णो

३१०

४५७
णिव्वेयसमावण्णो
३१८
४६५
णज्झवसाणं णाणं

४०२

५६९
णेव य जीवट्ठाणा
५५
१०४
णत्थि दु आसवबंधो

१६६

२६३
णो ठिदिबंधट्ठाणा
५४
१०४
णत्थि मम को वि मोहो

३६

७७
णत्थि मम धम्मआदी

३७

७९
तं एयत्तविहत्तं
१३
ण दु होदि मोक्खमग्गो

४०९

५७९
तं खलु जीवणिबद्धं
१३६
२१०
ण मुयदि पयडिमभव्वो

३१७

४६४
तं णिच्छये ण जुज्जदि
२९
६५
णयरम्मि वण्णिदे जह

३०

६६
तं जाण जोगउदयं
१३४
२०९
ण य रागदोसमोहं

२८०

४१४
तत्थ भवे जीवाणं
६१
११५
ण रसो दु हवदि णाणं

३९५

५६७
तम्हा दु जो विसुद्धो
४०७
५७७
ण वि एस मोक्खमग्गो

४१०

५८०
तम्हा जहित्तु लिंगे
४११
५८१
ण वि कुव्वदि कम्मगुणे

८१

१५०
तम्हा ण को वि जीवो
३३७
४८०
ण वि कुव्वइ ण वि वेयइ

३१९

४६७
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि

७६

१४४
तम्हा ण को वि जीवो
३३९
४८१
तम्हा ण मे त्ति णच्चा
३२७
४७२
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि

७७

१४५
तम्हा दु कुसीलेहि य
१४७
२४०
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि

७८

१४७
तह जीवे कम्माणं
५९
११२
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि

७९

१४८
तह णाणिस्स दु पुव्वं
१८०
२८१
ण वि सक्कदि घेत्तुं जं

४०६

५७७
ण वि होदि अप्पमत्तो
१५
तह णाणिस्स वि विविहे
२२१
३४३
ण सयं बद्धो कम्मे

१२१

१९९
तह णाणी वि हु जइया
२२३
३४३

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
तह वि य सच्चे दत्ते

२६४

३९१
परमट्ठम्हि दु अठिदो
१५२
२४५
तिविहो एसुवओगो

९४

१७०
परमट्ठो खलु समओ
१५१
२४४
परमप्पाणं कुव्वं
९२
१६७
तिविहो एसुवओगो

९५

१७१
परमप्पाणमकुव्वं
९३
१६८
तेसिं पुणो वि य इमो

११०

१९१
परमाणुमित्तयं पि हु
२०१
३१५
तेसिं हेदू भणिदा

१९०

२९६
पासंडीलिंगाणि व
४०८
५७९
पासंडीलिंगेसु व
४१३
५८५
थेयादी अवराहे

३०१

४४२
पोग्गलकम्मं कोहो
१२३
१९९
पोग्गलकम्मं मिच्छं
८८
१६२
दंसणणाणचरित्तं

१७२

२७१
पोग्गलकम्मं रागो
१९९
३११
दंसणणाणचरित्तं किंचि

३६६

५१७
पुढवीपिंडसमाणा
१६९
२६७
दंसणणाणचरित्तं किंचि

३६७

५१७
पुरिसित्थियाहिलासी
३३६
४८०
दंसणणाणचरित्तं किंचि

३६८

५१७
पुरिसो जह को वि इहं
२२४
३४७
दंसणणाणचरित्ताणि

१६

४६
पोग्गलदव्वं सद्दत्तपरिणदं
३७४
५२६
दव्वगुणस्स य आदा

१०४

१८६
दवियं जं उप्पज्जइ

३०८

४५६
फासो ण हवदि णाणं
३९६
५६८
दव्वे उवभुंजंते

१९४

३०४
दिट्ठी जहेव णाणं

३२०

४६७
बंधाणं च सहावं
२९३
४२८
दुक्खिदसुहिदे जीवे

२६६

३९५
बंधुवभोगणिमित्ते
२१७
३३९
दुक्खिदसुहिदे सत्ते

२६०

३८९
बुद्धी ववसाओ वि य
२७१
४०२
दोण्ह वि णयाण भणिदं

१४३

२२६
भावो रागादिजुदो
१६७
२६५
धम्माधम्मं च तहा

२६९

३९८
भुंजंतस्स वि विविहे
२२०
३४३
धम्मो णाणं ण हवदि

३९८

५६८
भूदत्थेणाभिगदा
१३
३१
पंथे मुस्संतं पस्सिदूण

५८

११२
मज्झं परिग्गहो जदि
२०८
३२८
पक्के फलम्हि पडिए

१६८

२६६
मारिमि जीवावेमि य
२६१
३८९
पज्जत्तापज्जत्ता

६७

१२१
मिच्छत्तं अविरमणं
१६४
२६२
पडिकमणं पडिसरणं

३०६

४४८
मिच्छत्तं जदि पयडी
३२८
४७५
पण्णाए घित्तव्वो जो चेदा

२९७

४३४
मिच्छत्तं पुण दुविहं
८७
१६१
पण्णाए घित्तव्वो जो णादा

२९९

४३७
मोक्खं असद्दहंतो
२७४
४०६
पण्णाए घित्तव्वो जो दट्ठा

२९८

४३७
मोक्खपहे अप्पाणं
४१२
५८२
परमट्ठबाहिरा जे

१५४

२४७
मोत्तूण णिच्छयट्ठं
१५६
२५०

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गाथा

पृष्ठ
गाथा
पृष्ठ
मोहणकम्मस्सुदया

६८

१२३
ववहारोऽभूदत्थो
११
२२
विज्जारहमारूढो
२३६
३६३
वेदंतो कम्मफलं अप्पाणं
३८७
५३६
रत्तो बंधदि कम्मं

१५०

२४२
वेदंतो कम्मफलं मए
३८८
५३७
रागो दोसो मोहो जीवस्सेव

३७१

५१८
वेदंतो कम्मफलं सुहिदो
३८९
५३७
रागो दोसो मोहो य

१७७

२७७
रागम्हि य दोसम्हि य

२८१

४१५
रागम्हि य दोसम्हि य

२८२

४१६
संता दु णिरुवभोज्जा
१७५
२७४
राया हु णिग्गदो त्ति य

४७

९६
संसिद्धिराधसिद्धं
३०४
४४४
रूवं णाणं ण हवदि

३९२

५६७
सत्थं णाणं ण हवदि
३९०
५६७
सद्दहदि य पत्तेदि य
२७५
४०७
लोयसमणाणमेयं

३२२

४७०
सद्दो णाणं ण हवदि
३९१
५६७
लोयस्स कुणदि विण्हू

३२१

४७०
सम्मत्तपडिणिबद्धं
१६१
२५५
सम्मद्दंसणणाणं
१४४
२२८
सम्मद्दिट्ठी जीवा
२२८
३५०
वंदित्तु सव्वसिद्धे
सव्वण्हुणाणदिट्ठो
२४
५८
वण्णो णाणं ण हवदि

३९३

५६७
सव्वे करेदि जीवो
२६८
३९७
वत्थस्स सेदभावो

१५७

२५२
सव्वे पुव्वणिबद्धा
१७३
२७३
वत्थस्स सेदभावो

१५८

२५२
वत्थस्स सेदभावो

१५९

२५२
सव्वे भावे जम्हा
३४
७४
वत्थुं पडुच्च जं पुण

२६५

३९३
सामण्णपच्चया खलु
१०९
१९१
वदणियमाणि धरंता

१५३

२४६
सुदपरिचिदाणुभूदा
११
वदसमिदीगुत्तीओ

२७३

४०५
सुद्धं तु वियाणंतो
१८६
२९२
ववहारणयो भासदि

२७

६३
सुद्धो सुद्धादेसो
१२
२५
ववहारभासिदेण

३२४

४७२
सेवंतो वि ण सेवदि
१९७
३०८
ववहारस्स दरीसण-

४६

९५
सोवण्णियं पि णियलं
१४६
२३९
ववहारस्स दु आदा

८४

१५३
सो सव्वणाणदरिसी
१६०
२५४
ववहारिओ पुण णओ

४१४

५८७
ववहारेण दु आदा

९८

१७९
हेदुअभावे णियमा
१९१
२९७
ववहारेण दु एदे

५६

११०
हेदू चदुव्वियप्पो
१७८
२७७
ववहारेणुवदिस्सदि
१७
होदूण णिरुवभोज्जा
१७४
२७४

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कलशकाव्योंकी वर्णानुक्रम सूची
कलश
पृष्ठ
कलश
पृष्ठ
अस्मिन्ननादिनि
४४
१२६
अकर्ता जीवोऽयं

१९५

४५९
अखण्डितमनाकुलं

१४

४५
आक्रामन्नविकल्पभावमचलं
९३
२३०
अचिन्त्यशक्तिः स्वयमेव

१४४

३२६
आत्मनश्चिन्तयैवालं
१९
४८
अच्छाच्छाः स्वयमुच्छलन्ति

१४१

३२२
आत्मभावान्करोत्यात्मा
५६
१६०
अज्ञानतस्तु सतृणाभ्यव--

५७

१७६
आत्मस्वभावं परभावभिन्न-
१०
३६
अज्ञानमयभावानामज्ञानी

६८

२०९
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं
६२
१७९
अज्ञानमेतदधिगम्य

१६९

३८६
आत्मानं परिशुद्धमीप्सुभि-
२०८
४९४
अज्ञानान्मृगतृष्णिकां जलधिया

५८

१७७
आत्मानुभूतिरिति
१३
४२
अज्ञानं ज्ञानमप्येवं

६१

१७८
आसंसारत एव धावति
५५
१५९
अज्ञानी प्रकृतिस्वभाव-

१९७

४६४
आसंसारविरोधिसंवर-
१२५
२८५
अतो हताः प्रमादिनो

१८८

४५०
आसंसारात्प्रतिपदममी
१३८
३१७
अतः शुद्धनयायत्तं
३०
अत्यन्तं भावयित्वा विरति-

२३३

५६५
इति परिचिततत्त्वै-
२८
७३
अत्र स्याद्वादशुद्धयर्थं

२४७

५९२
इति वस्तुस्वभावं स्वं ज्ञानी
१७६
४१४
अथ महामदनिर्भरमन्थरं

११३

२६१
इति वस्तुस्वभावं स्वं नाज्ञानी
१७७
४१५
अद्वैतापि हि चेतना

१८३

४३९
इति सति सह
३१
८१
अध्यास्य शुद्धनय-

१२०

२७९
इतीदमात्मनस्तत्त्वं
२४६
५९०
अध्यास्यात्मनि सर्वभावभवनं

२५९

६०५
इतः पदार्थप्रथनावगुण्ठना-
२३४
५६६
अनन्तधर्मणस्तत्त्वं
इतो गतमनेकतां
२७३
६२३
अनवरतमनन्तै-

१८७

४४६
इत्थं ज्ञानक्रकचकलना-
४५
१२७
अनाद्यनन्तमचलं

४१

१२४
इत्थं परिग्रहमपास्य
१४५
३२९
अनेनाध्यवसायेन

१७१

३९७
इत्यज्ञानविमूढानां
२६२
६०८
अन्येभ्यो व्यतिरिक्तमात्मनियतं

२३५

५७५
इत्याद्यनेकनिजशक्ति-
२६४
६१५
अयि कथमपि मृत्वा

२३

६१
इत्यालोच्य विवेच्य
१७८
४२१
अर्थालम्बनकाल एव कलयन्

२५७

६०४
इत्येवं विरचय्य सम्प्रति
४८
१४१
अलमलमतिजल्पै-

२४४

५८८
इदमेकं जगच्चक्षु--
२४५
५८८
अवतरति न यावद्

२९

७६
इदमेवात्र तात्पर्यं
१२२
२८२
अविचलितचिदात्म-

२७६

६२५

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कलश

पृष्ठ
कलश
पृष्ठ
इन्द्रजालमिदमेवमुच्छलत्

९१

२२६
एकं ज्ञानमनाद्यनन्तमचलं
१६०
३५५
एकः परिणमति सदा
५२
१५८
एकः कर्ता चिदहमिह
४६
१२९
उदयति न नयश्री-
३५
एको दूरात्त्यजति मदिरां
१०१
२३६
उन्मुक्तमुन्मोच्यमशेषतस्तत्

२३६

५७६
एको मोक्षपथो य एष
२४०
५८३
उभयनयविरोध-
२७
एवं ज्ञानस्य शुद्धस्य
२३८
५७८
एवं तत्त्वव्यवस्थित्या
२६३
६०८
एकज्ञायकभावनिर्भर-

१४०

३१९
एष ज्ञानघनो नित्यमात्मा
१५
४६
एकत्वं व्यवहारतो न तु

२७

७२
एषैकैव हि वेदना
१५६
३५२
एकत्वे नियतस्य शुद्धनयतो
२९
एकमेव हि तत्स्वाद्यं

१३९

३१९
कथमपि समुपात्त-
२०
५१
एकश्चितश्चिन्मय एव भावो

१८४

४४०
एकस्य कर्ता

७४

२१९
कथमपि हि लभन्ते
२१
५४
एकस्य कार्यं

७९

२२१
कर्ता कर्ता भवति न यथा
९९
२३३
एकस्य चेत्यो

८६

२२४
कर्ता कर्मणि नास्ति
९८
२३३
एकस्य चैको

८१

२२२
कर्तारं स्वफलेन यत्किल
१५२
३४६
एकस्य जीवो

७६

२२०
कर्तुर्वेदयितुश्च युक्तिवशतो
२०९
४९५
एकस्य दुष्टो

७३

२१९
कर्तृत्वं न स्वभावोऽस्य
१९४
४५६
एकस्य दृश्यो

८७

२२४
कर्म सर्वमपि सर्वविदो
१०३
२४३
एकस्य नाना

८५

२२३
कर्मैव प्रवितर्क्य कर्तृ हतकैः
२०४
४७९
एकस्य नित्यो

८३

२२२
कषायकलिरेकतः
२७४
६२४
एकस्य बद्धो

७०

२१७
कान्त्यैव स्नपयन्ति ये
२४
६२
एकस्य भातो

८९

२२५
कार्यत्वादकृतं न कर्म
२०३
४७८
एकस्य भावो

८०

२२१
कृतकारितानुमननै-
२२५
५३८
एकस्य भोक्ता

७५

२२०
क्लिश्यन्तां स्वयमेव
१४२
३२३
एकस्य मूढो

७१

२१८
क्वचिल्लसति मेचकं
२७२
६२२
एकस्य रक्तो

७२

२१८
क्ष
एकस्य वस्तुन इहान्यतरेण

२०१

४७४
क्षणिकमिदमिहैकः
२०६
४८९
एकस्य वाच्यो

८४

२२३
एकस्य वेद्यो

८८

२२४
घृतकुम्भाभिधानेऽपि
४०
१२२
एकस्य सान्तो

८२

२२२
एकस्य सूक्ष्मो

७७

२२०
चिच्छक्तिव्याप्तसर्वस्व-
३६
१०३
एकस्य हेतुर्न

७८

२२१

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कलश

पृष्ठ
कलश
पृष्ठ
चित्पिण्डचण्डिमविलासि-

२६८

६१९
त्यक्तं येन फलं स कर्म
१५३
३४९
चित्रात्मशक्तिसमुदायमयो

२७०

६२०
त्यक्त्वाऽशुद्धिविधायि
१९१
४५२
चिरमिति नवतत्त्व-
३३
त्यजतु जगदिदानीं
२२
५७
चित्स्वभावभरभावितभावा-

९२

२२८
चैद्रूप्यं जड़रूपतां च

१२६

२८९
दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मा
२३९
५८२
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रित्वा
१६
४७
जयति सहजतेजः

२७५

६२४
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः
१७
४८
जानाति यः स न करोति

१६७

३७७
दूरं भूरिविकल्पजालगहने
९४
२३०
जीवः करोति यदि पुद्गलकर्म

६३

१९१
द्रव्यलिङ्गममकारमीलितै-
२४३
५८६
जीवाजीवविवेकपुष्कलद्रशा

३३

८६
द्विधाकृत्य प्रज्ञाक्रकच-
१८०
४२४
जीवादजीवमिति

४३

१२६
ज्ञ
धीरोदारमहिम्न्यनादिनिधने
१२३
२८२
ज्ञप्तिः करोतौ न हि

९७

२३२
ज्ञानमय एव भावः

६६

२०५
न कर्मबहुलं जगन्न
१६४
३७३
ज्ञानवान् स्वरसतोऽपि

१४९

३४०
न जातु रागादि-
१७५
४१३
ज्ञानस्य सञ्चेतनयैव नित्यं

२२४

५३६
ननु परिणाम एव किल
२११
५००
ज्ञानादेव ज्वलनपयसो-

६०

१७८
नमः समयसाराय
ज्ञानाद्विवेचकतया तु

५९

१७७
न हि विदधति बद्ध-
११
४१
ज्ञानिन् कर्म न जातु

१५१

३४५
नाश्नुते विषयसेवनेऽपि
१३५
३०७
ज्ञानिनो न हि परिग्रहभावं

१४८

३४०
नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः
२००
४७१
ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः

६७

२०६
निजमहिमरतानां
१२८
२९६
ज्ञानी करोति न

१९८

४६६
नित्यमविकारसुस्थित-
२६
६७
ज्ञानी जानन्नपीमां

५०

१४९
निर्वर्त्यते येन यदत्र किञ्चित्
३८
१२०
ज्ञेयाकारकलङ्कमेचकचिति

२५१

६००
निःशेषकर्मफल-
२३१
५६४
निषिद्धे सर्वस्मिन्
१०४
२४३
टङ्कोत्कीर्णविशुद्धबोधविसरा-

२६१

६०७
नीत्वा सम्यक् प्रलय-
१९३
४५५
टङ्कोत्कीर्णस्वरसनिचित-

१६१

३५६
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ
५४
१५९
द्रद्र
द्र
द्र
नैकान्तसङ्कत
शा स्वयमेव वस्तु-
२६५
६१५
नोभौ परिणमतः खलु
५३
१५९
तज्ज्ञानस्यैव सामर्थ्यं

१३४

३०५
तथापि न निरर्गलं

१६६

३७७
तदथ कर्म शुभाशुभभेदतो

१००

२३५
पदमिदं ननु कर्मदुरासदं
१४३
३२४

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कलश

पृष्ठ
कलश
पृष्ठ
परद्रव्यग्रहं कुर्वन्

१८६

४४२
परपरिणतिहेतो-
मग्नाः कर्मनयावलम्बनपरा
१११
२५८
परपरिणतिमुज्झत्

४७

१३६
मज्जन्तु निर्भरममी
३२
८३
परमार्थेन तु व्यक्त-

१८

४८
माऽकर्तारममी स्पृशन्तु
२०५
४८८
पूर्णैकाच्युतशुद्धबोधमहिमा

२२२

५३१
मिथ्यादृष्टेः स एवास्य
१७०
३८७
पूर्वबद्धनिजकर्म-

१४६

३३५
मोक्षहेतुतिरोधानाद्-
१०८
२५१
पूर्वालम्बितबोध्यनाशसमये

२५६

६०३
मोहविलासविजृम्भित-
२२७
५४७
प्रच्युत्य शुद्धनयतः

१२१

२८०
मोहाद्यदहमकार्षं
२२६
५४३
प्रज्ञाछैत्री शितेयं

१८१

४३२
प्रत्यक्षालिखितस्फु टस्थिर-

२५२

६०१
य एव मुक्त्वा नयपक्षपातं
६९
२१७
प्रत्याख्याय भविष्यत्कर्म

२२८

५५१
यत्तु वस्तु कुरुते-
२१४
५०२
प्रमादकलितः कथं भवति

१९०

४५२
यत्सन्नाशमुपैति तन्न नियतं
१५७
३५३
प्राकारकवलिताम्बर-

२५

६६
यदि कथमपि धारावाहिना
१२७
२९३
प्राणोच्छेदमुदाहरन्ति मरणं

१५९

३५४
यदिह भवति रागद्वेष-
२२०
५२४
प्रादुर्भावविराममुद्रित-

२६०

६०६
यदेतद् ज्ञानात्मा
१०५
२४७
यत्र प्रतिक्रमणमेव
१८९
४५१
बन्धच्छेदात्कलयदतुलं

१९२

४५३
यस्माद् द्वैतमभूत्पुरा
२७७
६२६
बहिर्लुठति यद्यपि

२१२

५००
यः करोति स करोति केवलं
९६
२३१
बाह्यार्थग्रहणस्वभावभरतो

२५०

५९९
यः परिणमति स कर्ता
५१
१५८
बाह्यार्थैः परिपीतमुज्झित-

२४८

५९७
यः पूर्वभावकृतकर्म
२३२
५६५
यादृक् तादृगिहास्ति
१५०
३४२
भावयेद्भेदविज्ञान-

१३०

२९९
यावत्पाकमुपैति कर्मविरति-
११०
२५७
भावास्रवाभावमयं प्रपन्नो

११५

२६८
ये तु कर्तारमात्मानं
१९९
४६९
भावो रागद्वेषमोहैर्विना यो

११४

२६७
ये तु स्वभावनियमं
२०२
४७५
भित्त्वा सर्वमपि स्वलक्षण-

१८२

४३६
ये त्वेनं परिहृत्य
२४१
५८४
भिन्नक्षेत्रनिषण्णबोध्य-

२५४

६०२
ये ज्ञानमात्रनिजभावमयी
२६६
६१८
भूतं भान्तमभूतमेव

१२

४२
योऽयं भावो ज्ञानमात्रो-
२७१
६२१
भेदज्ञानोच्छलन-

१३२

३००
भेदविज्ञानतः सिद्धाः

१३१

३००
रागजन्मनि निमित्ततां
२२१
५२५
भेदोन्मादं भ्रमरसभरा-

११२

२५९
रागद्वेषद्वयमुदयते
२१७
५१६
भोक्तृत्वं न स्वभावोऽस्य

१९६

४६२
रागद्वेषविभावमुक्तमहसो
२२३
५३२

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कलश

पृष्ठ
कलश
पृष्ठ
रागद्वेषविमोहानां

११९

२७७
व्याप्यव्यापकता तदात्मनि
४९
१४३
रागद्वेषाविह हि भवति

२१८

५२१
व्यावहारिकदृशैव केवलं
२१०
४९५
रागद्वेषोत्पादकं तत्त्वदृष्टया

२१९

५२१
रागादयो बन्धनिदानमुक्ता-

१७४

४११
शुद्धद्रव्यनिरूपणार्पित-
२१५
५१५
रागादीनामुदयमदयं

१७९

४२२
शुद्धद्रव्यस्वरसभवनात्किं
२१६
५१५
रागादीनां झगिति विगमात्

१२४

२८३
रागाद्यास्रवरोधतो

१३३

३०२
सकलमपि विहायाह्नाय
३५
१०२
रागोद्गारमहारसेन सकलं

१६३

३६८
समस्तमित्येवमपास्य कर्म
२२९
५५१
रुन्धन् बन्धं नवमिति

१६२

३६४
संन्यस्यन्निजबुद्धिपूर्वमनिशं
११६
२७२
संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि
१०९
२५७
लोकः कर्मततोऽस्तु

१६५

३७६
सम्पद्यते संवर एष
१२९
२९९
लोकः शाश्वत एक एष

१५५

३५१
सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं
१५४
३५०
सम्यग्दृष्टिः स्वयमयमहं
१३७
३१३
वर्णादिसामग्र्रयमिदं विदन्तु

३९

१२१
सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं
१३६
३०९
वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा

३७

१०९
सर्वतः स्वरसनिर्भरभावं
३०
७९
वर्णाद्यैः सहितस्तथा

४२

१२५
सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं
१७३
४०३
वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो

२१३

५०१
सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य
२५३
६०१
विकल्पकः परं कर्ता

९५

२३१
सर्वस्यामेव जीवन्त्यां
११७
२७३
विगलन्तु कर्मविषतरु-

२३०

५५२
सर्वं सदैव नियतं
१६८
३८५
विजहति न हि सत्तां

११८

२७६
सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्त-
१८५
४४२
विरम किमपरेणाकार्य

३४

९३
स्थितेति जीवस्य निरन्तराया
६५
२०२
विश्रान्तः परभावभावकलना-

२५८

६०५
स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य
६४
१९८
विश्वाद्विभक्तोऽपि हि

१७२

३९९
स्याद्वादकौशलसुनिश्चल
२६७
६१८
विश्वं ज्ञानमिति प्रतर्क्य

२४९

५९८
स्याद्वाददीपितलसन्महसि
२६९
६२०
वृत्तं कर्मस्वभावेन

१०७

२५१
स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वै-
२७८
६२७
वृत्तं ज्ञानस्वभावेन

१०६

२५१
स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विध-
२५५
६०३
वृत्त्यंशभेदतोऽत्यन्तं

२०७

४९०
स्वेच्छासमुच्छलदनल्प-
९०
२२५
वेद्यवेदकविभावचलत्वाद्

१४७

३३८
स्वं रूपं किल वस्तुनो-
१५८
३५३
व्यतिरिक्तं परद्रव्यादेवं

२३७

५७६
व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि
२८
हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां
१०२
२३९
व्यवहारविमूढदृष्टयः

२४२

५८६