Samaysar (Hindi). Sadhak Jivni Drashti; Varnanukram SuchI; Kalash Kavyoki Varnanukram Suchi.

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इति श्रीमदमृतचन्द्राचार्यकृता समयसारव्याख्या आत्मख्यातिः समाप्ता
अमुक कार्य किया है इस न्यायसे यह आत्मख्याति नामक टीका भी अमृतचन्द्राचार्यकृत है ही
इसलिये इसके पढ़नेसुननेवालोंको उनका उपकार मानना भी युक्त है; क्योंकि इसके पढ़नेसुननेसे
पारमार्थिक आत्माका स्वरूप ज्ञात होता है, उसका श्रद्धान तथा आचरण होता है, मिथ्या ज्ञान,
श्रद्धान तथा आचरण दूर होता है और परम्परासे मोक्षकी प्राप्ति होती है
मुमुक्षुओंको इसका निरन्तर
अभ्यास करना चाहिये।२७८।
इसप्रकार श्री समयसारकी (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत श्री समयसार परमागमकी)
श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक टीका समाप्त हुई
(अब, पंडित जयचन्द्रजी भाषाटीका पूर्ण करते हुये कहते हैं :)
(सवैया)
कुन्दकुन्दमुनि कियो गाथाबंध प्राकृत है प्राभृतसमय शुद्ध आतम दिखावनूं,
सुधाचन्द्रसूरि करी संस्कृत टीकावर आत्मख्याति नाम यथातथ्य भावनूं;
देशकी वचनिकामें लिखि जयचन्द्र पढ़ै संक्षेप अर्थ अल्पबुद्धिकूं पावनूं,
पढ़ो सुनो मन लाय शुद्ध आतमा लखाय ज्ञानरूप गहौ चिदानन्द दरसावनूं
।।१।।
(दोहा)
समयसार अविकारका, वर्णन कर्ण सुनन्त
द्रव्य-भाव-नोकर्म तजि, आतमतत्त्व लखन्त।।२।।
इसप्रकार इस समयप्राभृत (अथवा समयसार) नामक शास्त्रकी आत्मख्याति नामकी
संस्कृत टीकाकी देशभाषामय वचनिका लिखी है इसमें संस्कृत टीकाका अर्थ लिखा है
और अति संक्षिप्त भावार्थ लिखा है, विस्तार नहीं किया है संस्कृत टीकामें न्यायसे सिद्ध
हुए प्रयोग हैं यदि उनका विस्तार किया जाय तो अनुमानप्रमाणके पांच अंगपूर्वकप्रतिज्ञा,
हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमनपूर्वकस्पष्टतासे व्याख्या करने पर ग्रन्थ बहुत बढ़ जाय;
इसलिये आयु, बुद्धि, बल और स्थिरताकी अल्पताके कारण, जितना बन सका है उतना,
संक्षेपसे प्रयोजनमात्र लिखा है
इसे पढ़कर भव्यजन पदार्थको समझना किसी अर्थमें
हीनाधिकता हो तो बुद्धिमानजन मूल ग्रन्थानुसार जैसा हो वैसा यथार्थ समझ लेना इस
ग्रन्थके गुरुसम्प्रदायका (गुरूपरम्परागत उपदेशका) व्युच्छेद हो गया है, इसलिये जितना हो
सके उतनायथाशक्ति अभ्यास हो सकता है तथापि जो स्याद्वादमय जिनमतकी आज्ञा मानते
हैं, उन्हें विपरीत श्रद्धान नहीं होता यदि कहीं अर्थको अन्यथा समझना भी हो जाय तो

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विशेष बुद्धिमानका निमित्त मिलने पर वह यथार्थ हो जाता है जिनमतके श्रद्धालु हठग्राही
नहीं होते
अब, अन्तिम मङ्गलके लिए पंचपरमेष्ठीको नमस्कार करके शास्त्रको समाप्त करते हैंः
(छप्पय छंद)
मङ्गल श्री अरहन्त घातिया कर्म निवारे,
मङ्गल सिद्ध महन्त कर्म आठों परजारे,
आचारज उवज्झाय मुनि मङ्गलमय सारे,
दीक्षा शिक्षा देय भव्यजीवनिकूं तारे;
अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अनगार हैं,
मैं नमूं पंचगुरुचरणकूं मङ्गल हेतु करार हैं
।।१।।
(सवैया छंद)
जैपुर नगरमाँही तेरापंथ शैली बड़ी
बड़े बड़े गुनी जहाँ पढ़ै ग्रन्थ सार है,
जयचन्द्र नाम मैं हूँ तिनिमें अभ्यास किछू
कियो बुद्धिसारु धर्मरागतें विचार है;
समयसार ग्रन्थ ताकी देशके वचनरूप
भाषा करी पढ़ो सुनौ करो निरधार है,
आपापर भेद जानि हेय त्यागि उपादेय
गहो शुद्ध आतमकूं, यहै बात सार है ।।२।।
(दोहा)
संवत्सर विक्रम तणूं, अष्टादश शत और;
चौसठि कातिक बदि दशैं, पूरण ग्रन्थ सुठौर
।३।
इसप्रकार श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत समयप्राभृत नामक प्राकृतगाथाबद्ध
परमागमकी श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक संस्कृत टीका अनुसार पण्डित
जयचन्द्रजीकृत संक्षेपभावार्थमात्र देशभाषामय वचनिकाके आधारसे श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह
कृत गुजराती अनुवादका हिन्दी रूपान्तर समाप्त हुआ
समाप्त

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साधक जीवकी दृष्टि
अध्यात्ममें सदा निश्चयनय ही मुख्य है; उसीके आश्रयसे धर्म होता है। शास्त्रोंमें
जहाँ विकारी पर्यायोंका व्यवहारनयसे कथन किया जाये वहाँ भी निश्चयनयको ही मुख्य
और व्यवहारनयको गौण करनेका आशय है
ऐसा समझना; क्योंकि पुरुषार्थ द्वारा
अपनेमें शुद्धपर्याय प्रगट करने अर्थात् विकारी पर्याय टालनेके लिये सदा निश्चयनय ही
आदरणीय है; उस समय दोनों नयोंका ज्ञान होता है परंतु धर्म प्रगट करनेके लिये
दोनों नय कभी आदरणीय नहीं हैं। व्यवहारनयके आश्रयसे कभी धर्म अंशतः भी नहीं
होता, परंतु उसके आश्रयसे तो राग-द्वेषके विकल्प ही उठते हैं।
छहों द्रव्य, उनके गुण और उनकी पर्यायोंके स्वरूपका ज्ञान करानेके लिए कभी
निश्चयनयकी मुख्यता और व्यवहारनयकी गौणता रखकर कथन किया जाता है, और
कभी व्यवहारनयको मुख्य करके तथा निश्चयनयको गौण रखकर कथन किया जाता
है; स्वयं विचार करे उसमें भी कभी निश्चयनयकी मुख्यता और कभी व्यवहारनयकी
मुख्यता की जाती है; अध्यात्मशास्त्रमें भी जीवकी विकारी पर्याय जीव स्वयं करता है
इसलिये होती है और वह जीवका अनन्य परिणाम है
ऐसा व्यवहारनयसे कहनेमें
समझानेमें आता है; परंतु वहाँ प्रत्येक समय निश्चयनय एक ही मुख्य तथा आदरणीय
है ऐसा ज्ञानियोंका कथन है। शुद्धता प्रगट करनेके लिए कभी निश्चयनय आदरणीय
है और कभी व्यवहारनय आदरणीय है
ऐसा मानना वह भूल है। तीनों काल अकेले
निश्चयनयके आश्रयसे ही धर्म प्रगट होता है ऐसा समझना।
साधक जीव प्रारम्भसे अन्त तक निश्चयकी ही मुख्यता रखकर व्यवहारको गौण
ही करते जाते हैं, इसलिए साधकदशामें निश्चयकी मुख्यताके बलसे साधकको शुद्धताकी
वृद्धि ही होती जाती है और अशुद्धता टलती ही जाती है। इस प्रकार निश्चयकी
मुख्यताके पूर्ण बलसे केवलज्ञान होने पर वहाँ मुख्य-गौणपना नहीं होता और नय भी
नहीं होते।

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श्री समयसारकी वर्णानुक्रम गाथासूची
गाथा
पृष्ठ
अज्झवसाणणिमित्तं
२६७
३९६
अज्झवसिदेण बन्धो
२६२
३९०
अट्ठवियप्पे कम्मे
१८२
२८६
अट्ठविहं पि य कम्मं
४५
९४
अण्णदविएण
३७२
५२२
अण्णाणमओ भावो
१२७
२०३
अण्णाणमया भावा
१२९
२०५
अण्णाणमया भावा
१३१
२०७
अण्णाणमोहिदमदी
२३
५८
अण्णाणस्स स उदओ
१३२
२०९
अण्णाणी कम्मफलं
३१६
४६२
अण्णाणी पुण रत्तो
२१९
३४१
अण्णो करेदि अण्णो
३४८
४९१
अत्ता जस्सामुत्तो
४०५
५७६
अप्पडिकमणं दुविहं
२८३
४१७
अप्पडिकमणं दुविहं दव्वे
२८४
४१७
अपरिग्गहो अणिच्छो
२१०
३३०
अपरिग्गहो अणिच्छो
२११
३३१
अपरिग्गहो अणिच्छो
२१२
३३२
अपरिग्गहो अणिच्छो
२१३
३३३
अपरिणमंतम्हि सयं
१२२
१९९
अप्पडिकमणमप्पडिसरणं
३०७
४४८
अप्पाणं झायंतो
१८९
२९४
अप्पाणमप्पणा रुंधिऊण
१८७
२९४
अप्पाणमयाणंता
३९
८७
अप्पाणमयाणंतो
२०२
३१५
अप्पा णिच्चोऽसंखेज्जपदेसो
३४२
४८१
अरसमरूवमगंधं
४९
९८
अवरे अज्झवसाणेसु
४०
८७
गाथा
पृष्ठ
असुहं सुहं व दव्वं
३८१
५२७
असुहं सुहं व रूवं
३७६
५२६
असुहो सुहो व गंधो
३७७
५२६
असुहो सुहो व गुणो
३८०
५२७
असुहो सुहो व फासो
३७९
५२७
असुहो सुहो व रसो
३७८
५२६
असुहो सुहो व सद्दो
३७५
५२६
अह जाणगो दु भावो
३४४
४८१
अह जीवो पयडी तह
३३०
४७६
अह ण पयडी ण जीवो
३३१
४७६
अह दे अण्णो कोहो
११५
१९४
अहमेक्को खलु सुद्धो
३८
८१
अहमेक्को खलु सुद्धो
७३
१३७
अहमेदं एदमहं
२०
५५
अहवा एसो जीवो
३२९
४७५
अहवा मण्णसि मज्झं
३४१
४८१
अह सयमप्पा परिणमदि
१२४
१९९
अह सयमेव हि परिणमदि
११९
१९६
अह संसारत्थाणं
६३
११७
आउक्खयेण मरणं
२४८
३७९
आउक्खयेण मरणं
२४९
३७९
आऊदयेण जीवदि
२५१
३८१
आऊदयेण जीवदि
२५२
३८२
आदम्हि दव्वभावे
२०३
३१८
आदा खु मज्झ णाणं
२७७
४०९
आधाकम्मं उद्देसियं
२८७
४२०
आधाकम्मादीया
२८६
४१९
आभिणिसुदोधि
२०४
३२०
आयारादी णाणं
२७६
४०९

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गाथा
पृष्ठ
आयासं पि ण णाणं
४०१
५६८
आसि मम पुव्वमेदं
२१
५५
इणमण्णं जीवादो
२८
६४
इय कम्मबंधणाणं
२९०
४२५
उदओ असंजमस्स दु
१३३
२०९
उदयविवागो विविहो
१९८
३१०
उप्पण्णोदयभोगो
२१५
३३५
उप्पादेदि करेदि य
१०७
१८९
उम्मग्गं गच्छंतं
२३४
३६१
उवओगस्स अणाई
८९
१६३
उवओगे उवओगो
१८१
२८६
उवघादं कुव्वंतस्स
२३९
३६९
उवघादं कुव्वंतस्स
२४४
३७४
उवभोगमिंदियेहिं
१९३
३०३
एदेण कारणेण दु
८२
१५०
एदे सव्वे भावा
४४
९१
एदेसु य उवओगो
९०
१६४
एदेहिं य संबंधो
५७
१११
एक्कं च दोण्णि तिण्णि
६५
११९
एकस्स दु परिणामो
१४०
२१३
एकस्स दु परिणामो
१३८
२१२
एदम्हि रदो णिच्चं
२०६
३२५
एदाणि णत्थि जेसिं
२७०
४००
एदाहि य णिव्वत्ता
६६
११९
एदे अचेदणा खलु
१११
१९१
एदेण कारणेण दु
१७६
२७४
एदेण दु सो कत्ता
९७
१७४
एदेसु हेदुभूदेसु
१३५
२०९
एमादिए दु विविहे
२१४
३३४
गाथा
पृष्ठ
एमेव कम्मपयडी-
१४९
२४१
एमेव जीवपुरिसो
२२५
३४७
एमेव मिच्छदिट्ठी
३२६
४७२
एमेव य ववहारो
४८
९७
एमेव सम्मदिट्ठी
२२७
३४७
एदं तु अविवरीदं
१८३
२८६
एयं तु जाणिऊणं
३८२
५२७
एयत्तणिच्छयगदो
१०
एयं तु असब्भूदं
२२
५५
एवमलिए अदत्ते
२६३
३९१
एवमिह जो दु जीवो
११४
१९४
एवम्हि सावराहो
३०३
४४३
एवं जाणदि णाणी
१८५
२९०
एवं ण को वि मोक्खो
३२३
४७०
एवं णाणी सुद्धो
२७९
४१२
एवं तु णिच्छयणयस्स
३६०
५०३
एवं पराणि दव्वाणि
९६
१७२
एवं पोग्गलदव्वं
६४
११७
एवं बंधो उ दोहण्हं पि
३१३
४५९
एवं मिच्छादिट्ठी
२४१
३६९
एवं ववहारणओ
२७२
४०४
एवं ववहारस्स दु
३५३
४९६
एवं ववहारस्स दु
३६५
५०४
एवंविहा बहुविहा
४३
८८
एवं संखुवएसं
३४०
४८१
एवं सम्मद्दिट्ठी
२००
३१२
एवं सम्मादिट्ठी
२४६
३७४
एवं हि जीवराया
१८
४९
एसा दु जा मदी दे
२५९
३८८
कणयमया भावादो
१३०
२०७
कम्मइयवग्गणासु य
११७
१९६

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गाथा
पृष्ठ
कम्मं जं पुव्वकयं
३८३
५३३
कम्मं जं सुहमसुहं
३८४
५३३
कम्मं णाणं ण हवदि
३९७
५६८
कम्मं पडुच्च कत्ता
३११
४५७
कम्मं बद्धमबद्धं
१४२
२१५
कम्ममसुहं कुसीलं
१४५
२३६
कम्मस्साभावेण य
१९२
२९७
कम्मस्स य परिणामं
७५
१४१
कम्मस्सुदयं जीवं
४१
८७
कम्मे णोकम्मम्हि य
१९
५२
कम्मेहि दु अण्णाणी
३३२
४७९
कम्मेहि भमाडिज्जदि
३३४
४८०
कम्मेहि सुहाविज्जदि
३३३
४८०
कम्मोदएण जीवा
२५४
३८४
कम्मोदएण जीवा
२५५
३८४
कम्मोदएण जीवा
२५६
३८४
कह सो घिप्पदि अप्पा
२९६
४३४
कालो णाणं ण हवदि
४००
५६८
केहिंचि दु पज्जएहिं
३४५
४९१
केहिंचि दु पज्जएहिं
३४६
४९१
को णाम भणिज्ज बुहो
२०७
३२७
को णाम भणिज्ज बुहो
३००
४४१
कोहादिसु वट्टंतस्स
७०
१३०
कोहुवजुत्तो कोहो
१२५
२००
गंधरसफासरूवा
६०
११२
गंधो णाणं ण हवदि
३९४
५६७
गुणसण्णिदा दु एदे
११२
१९२
चउविह अणेयभेयं
१७०
२६९
चारित्तपडिणिबद्धं
१६३
२५५
चेदा दु पयडीअट्ठं
३१२
४५९
गाथा
पृष्ठ
छिंददि भिंददि य तहा
२३८
३६९
छिंददि भिंददि य तहा
२४३
३७३
छिज्जदु वा भिज्जदु वा
२०९
३२९
जं कुणदि भावमादा
९१
१६५
जं कुणदि भावमादा
१२६
२०२
जं भावं सुहमसुहं
१०२
१८३
जं सुहमसुहमुदिण्णं
३८५
५३३
जइ जीवेण सह च्चिय
१३७
२१२
जइ ण वि कुणदि च्छेदं
२८९
४२५
जइया इमेण जीवेण
७१
१३२
जइया स एव संखो
२२२
३४३
जदि जीवो ण सरीरं
२६
६१
जदि पोग्गलकम्ममिणं
८५
१५५
जदि सो परदव्वाणि य
९९
१८०
जदि सो पोग्गलदव्वी
२५
५८
जम्हा कम्मं कुव्वदि
३३५
४८०
जम्हा घादेदि परं
३३८
४८०
जम्हा जाणदि णिच्चं
४०३
५६९
जम्हा दु अत्तभावं
८६
१५६
जम्हा दु जहण्णादो
१७१
२७०
जदा विमुंचए चेदा
३१५
४६१
जह कणयमग्गितवियं
१८४
२९०
जह को वि णरो जंपदि
३२५
४७२
जह चेट्ठं कुव्वंतो
३५५
४९७
जह जीवस्स अणण्णुवओगो
११३
१९४
जह ण वि सक्कमणज्जो
१९
जह णाम को वि पुरिसो
१७
४९
जह णाम को वि पुरिसो
३५
७५
जह णाम को वि पुरिसो
१४८
२४१
जह णाम को वि पुरिसो
२३७
३६९
जह णाम को वि पुरिसो
२८८
४२५
80

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गाथा
पृष्ठ
जह परदव्वं सेडदि
३६१
५०३
जह परदव्वं सेडदि
३६२
५०३
जह परदव्वं सेडदि
३६३
५०४
जह परदव्वं सेडदि
३६४
५०४
जह पुण सो च्चिय पुरिसो
२२६
३४७
जह पुण सो चेव णरो
२४२
३७३
जह पुरिसेणाहारो
१७९
२८१
जह फलिहमणी सुद्धो
२७८
४११
जह बंधे चिंतंतो
२९१
४२६
जह बंधे छित्तूण य
२९२
४२७
जह मज्जं पिबमाणो
१९६
३०७
जह राया ववहारा
१०८
१९०
जह विसमुवभुंजंतो
१९५
३०६
जह सिप्पि दु कम्मफलं
३५२
४९६
जह सिप्पिओ दु कम्मं
३४९
४९६
जह सिप्पिओ दु करणाणि
३५१
४९६
जह सिप्पिओ दु करणेहिं
३५०
४९६
जह सिप्पिओ दु चिट्ठं
३५४
४९७
जह सेडिया दु ण परस्स
३५६
५०२
जह सेडिया दु ण परस्स
३५७
५०३
जह सेडिया दु ण परस्स
३५८
५०३
जह सेडिया दु ण परस्स
३५९
५०३
जा एस पयडीअट्ठं चेदा
३१४
४६१
जावं अप्पडिकमणं
२८५
४१७
जाव ण वेदि विसेसंतरं
६९
१३०
जिदमोहस्स दु जइया
३३
७१
जीवणिबद्धा एदे
७४
१३८
जीवपरिणामहेदुं
८०
१५०
जीवम्हि हेदुभूदे
१०५
१८७
जीवस्स जीवरूवं
३४३
४८१
जीवस्स जे गुणा केइ
३७०
५१७
जीवस्स णत्थि केइ
५३
१०४
गाथा
पृष्ठ
जीवस्स णत्थि रागो
५१
१०३
जीवस्स णत्थि वग्गो
५२
१०४
जीवस्स णत्थि वण्णो
५०
१०३
जीवस्स दु कम्मेण य
१३९
२१३
जीवस्साजीवस्स दु
३०९
४५६
जीवादीसद्दहणं
१५५
२४९
जीवे कम्मं बद्धं
१४१
२१४
जीवे ण सयं बद्धं
११६
१९६
जीवो कम्मं उहयं
४२
८७
जीवो चरित्तदंसण
जीवो चेव हि एदे
६२
११६
जीवो ण करेदि घडं
१००
१८१
जीवो परिणामयदे
११८
१९६
जीवो बंधो य तहा
२९४
४२९
जीवो बंधो य तहा
२९५
४३३
जे पोग्गलदव्वाणं
१०१
१८२
जो अप्पणा दु मण्णदि
२५३
३८३
जो इंदिये जिणित्ता
३१
६८
जो कुणदि वच्छलत्तं
२३५
३६२
जो चत्तारि वि पाए
२२९
३५६
जो चेव कुणदि सो चिय
३४७
४९१
जो जम्हि गुणे दव्वे
१०३
१८५
जो ण करेदि दुगुंछं
२३१
३५८
जो ण कुणदि अवराहे
३०२
४४३
जो ण मरदि ण य दुहिदो
२५८
३८६
जो दु ण करेदि कंखं
२३०
३५७
जोधेहिं कदे जुद्धे
१०६
१८८
जो पस्सदि अप्पाणं
१४
३७
जो पस्सदि अप्पाणं
१५
४३
जो पुण णिरावराधो
३०५
४४४
जो मण्णदि जीवेमि य
२५०
३८१
जो मण्णदि हिंसामि य
२४७
३७८

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गाथा
पृष्ठ
जो मरदि जो य दुहिदो
२५७
३८६
जो मोहं तु जिणित्ता
३२
६९
जो वेददि वेदिज्जदि
२१६
३३७
जो समयपाहुडमिणं
४१५
५८९
जो सव्वसंगमुक्को
१८८
२९४
जो सिद्धभत्तिजुत्तो
२३३
३६०
जो सुदणाणं सव्वं
१०
२१
जो सो दु णेहभावो
२४०
३६९
जो सो दु णेहभावो
२४५
३७४
जो हवदि असम्मूढो
२३२
३५९
जो हि सुदेणहिगच्छइ
२०
ण कुदोचि वि उप्पण्णो
३१०
४५७
णज्झवसाणं णाणं
४०२
५६९
णत्थि दु आसवबंधो
१६६
२६३
णत्थि मम को वि मोहो
३६
७७
णत्थि मम धम्मआदी
३७
७९
ण दु होदि मोक्खमग्गो
४०९
५७९
ण मुयदि पयडिमभव्वो
३१७
४६४
णयरम्मि वण्णिदे जह
३०
६६
ण य रागदोसमोहं
२८०
४१४
ण रसो दु हवदि णाणं
३९५
५६७
ण वि एस मोक्खमग्गो
४१०
५८०
ण वि कुव्वदि कम्मगुणे
८१
१५०
ण वि कुव्वइ ण वि वेयइ
३१९
४६७
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि
७६
१४४
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि
७७
१४५
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि
७८
१४७
ण वि परिणमदि ण गिण्हदि
७९
१४८
ण वि सक्कदि घेत्तुं जं
४०६
५७७
ण वि होदि अप्पमत्तो
१५
ण सयं बद्धो कम्मे
१२१
१९९
गाथा
पृष्ठ
णाणं सम्मादिट्ठं
४०४
५६९
णाणगुणेण विहीणा
२०५
३२३
णाणमधम्मो ण हवदि
३९९
५६८
णाणमया भावाओ
१२८
२०५
णाणस्स दंसणस्स य
३६९
५१७
णाणस्स पडिणिबद्धं
१६२
२५५
णाणावरणादीयस्स
१६५
२६२
णाणी रागप्पजहो
२१८
३४१
णादूण आसवाणं
७२
१३३
णिंदिदसंथुदवयणाणि
३७३
५२६
णिच्चं पच्चक्खाणं
३८६
५३४
णिच्छयणयस्स एवं
८३
१५२
णियमा कम्मपरिणदं
१२०
१९६
णिव्वेयसमावण्णो
३१८
४६५
णेव य जीवट्ठाणा
५५
१०४
णो ठिदिबंधट्ठाणा
५४
१०४
तं एयत्तविहत्तं
१३
तं खलु जीवणिबद्धं
१३६
२१०
तं णिच्छये ण जुज्जदि
२९
६५
तं जाण जोगउदयं
१३४
२०९
तत्थ भवे जीवाणं
६१
११५
तम्हा दु जो विसुद्धो
४०७
५७७
तम्हा जहित्तु लिंगे
४११
५८१
तम्हा ण को वि जीवो
३३७
४८०
तम्हा ण को वि जीवो
३३९
४८१
तम्हा ण मे त्ति णच्चा
३२७
४७२
तम्हा दु कुसीलेहि य
१४७
२४०
तह जीवे कम्माणं
५९
११२
तह णाणिस्स दु पुव्वं
१८०
२८१
तह णाणिस्स वि विविहे
२२१
३४३
तह णाणी वि हु जइया
२२३
३४३

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गाथा
पृष्ठ
तह वि य सच्चे दत्ते
२६४
३९१
तिविहो एसुवओगो
९४
१७०
तिविहो एसुवओगो
९५
१७१
तेसिं पुणो वि य इमो
११०
१९१
तेसिं हेदू भणिदा
१९०
२९६
थेयादी अवराहे
३०१
४४२
दंसणणाणचरित्तं
१७२
२७१
दंसणणाणचरित्तं किंचि
३६६
५१७
दंसणणाणचरित्तं किंचि
३६७
५१७
दंसणणाणचरित्तं किंचि
३६८
५१७
दंसणणाणचरित्ताणि
१६
४६
दव्वगुणस्स य आदा
१०४
१८६
दवियं जं उप्पज्जइ
३०८
४५६
दव्वे उवभुंजंते
१९४
३०४
दिट्ठी जहेव णाणं
३२०
४६७
दुक्खिदसुहिदे जीवे
२६६
३९५
दुक्खिदसुहिदे सत्ते
२६०
३८९
दोण्ह वि णयाण भणिदं
१४३
२२६
धम्माधम्मं च तहा
२६९
३९८
धम्मो णाणं ण हवदि
३९८
५६८
पंथे मुस्संतं पस्सिदूण
५८
११२
पक्के फलम्हि पडिए
१६८
२६६
पज्जत्तापज्जत्ता
६७
१२१
पडिकमणं पडिसरणं
३०६
४४८
पण्णाए घित्तव्वो जो चेदा
२९७
४३४
पण्णाए घित्तव्वो जो णादा
२९९
४३७
पण्णाए घित्तव्वो जो दट्ठा
२९८
४३७
परमट्ठबाहिरा जे
१५४
२४७
गाथा
पृष्ठ
परमट्ठम्हि दु अठिदो
१५२
२४५
परमट्ठो खलु समओ
१५१
२४४
परमप्पाणं कुव्वं
९२
१६७
परमप्पाणमकुव्वं
९३
१६८
परमाणुमित्तयं पि हु
२०१
३१५
पासंडीलिंगाणि व
४०८
५७९
पासंडीलिंगेसु व
४१३
५८५
पोग्गलकम्मं कोहो
१२३
१९९
पोग्गलकम्मं मिच्छं
८८
१६२
पोग्गलकम्मं रागो
१९९
३११
पुढवीपिंडसमाणा
१६९
२६७
पुरिसित्थियाहिलासी
३३६
४८०
पुरिसो जह को वि इहं
२२४
३४७
पोग्गलदव्वं सद्दत्तपरिणदं
३७४
५२६
फासो ण हवदि णाणं
३९६
५६८
बंधाणं च सहावं
२९३
४२८
बंधुवभोगणिमित्ते
२१७
३३९
बुद्धी ववसाओ वि य
२७१
४०२
भावो रागादिजुदो
१६७
२६५
भुंजंतस्स वि विविहे
२२०
३४३
भूदत्थेणाभिगदा
१३
३१
मज्झं परिग्गहो जदि
२०८
३२८
मारिमि जीवावेमि य
२६१
३८९
मिच्छत्तं अविरमणं
१६४
२६२
मिच्छत्तं जदि पयडी
३२८
४७५
मिच्छत्तं पुण दुविहं
८७
१६१
मोक्खं असद्दहंतो
२७४
४०६
मोक्खपहे अप्पाणं
४१२
५८२
मोत्तूण णिच्छयट्ठं
१५६
२५०

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गाथा
पृष्ठ
मोहणकम्मस्सुदया
६८
१२३
रत्तो बंधदि कम्मं
१५०
२४२
रागो दोसो मोहो जीवस्सेव
३७१
५१८
रागो दोसो मोहो य
१७७
२७७
रागम्हि य दोसम्हि य
२८१
४१५
रागम्हि य दोसम्हि य
२८२
४१६
राया हु णिग्गदो त्ति य
४७
९६
रूवं णाणं ण हवदि
३९२
५६७
लोयसमणाणमेयं
३२२
४७०
लोयस्स कुणदि विण्हू
३२१
४७०
वंदित्तु सव्वसिद्धे
वण्णो णाणं ण हवदि
३९३
५६७
वत्थस्स सेदभावो
१५७
२५२
वत्थस्स सेदभावो
१५८
२५२
वत्थस्स सेदभावो
१५९
२५२
वत्थुं पडुच्च जं पुण
२६५
३९३
वदणियमाणि धरंता
१५३
२४६
वदसमिदीगुत्तीओ
२७३
४०५
ववहारणयो भासदि
२७
६३
ववहारभासिदेण
३२४
४७२
ववहारस्स दरीसण-
४६
९५
ववहारस्स दु आदा
८४
१५३
ववहारिओ पुण णओ
४१४
५८७
ववहारेण दु आदा
९८
१७९
ववहारेण दु एदे
५६
११०
ववहारेणुवदिस्सदि
१७
गाथा
पृष्ठ
ववहारोऽभूदत्थो
११
२२
विज्जारहमारूढो
२३६
३६३
वेदंतो कम्मफलं अप्पाणं
३८७
५३६
वेदंतो कम्मफलं मए
३८८
५३७
वेदंतो कम्मफलं सुहिदो
३८९
५३७
संता दु णिरुवभोज्जा
१७५
२७४
संसिद्धिराधसिद्धं
३०४
४४४
सत्थं णाणं ण हवदि
३९०
५६७
सद्दहदि य पत्तेदि य
२७५
४०७
सद्दो णाणं ण हवदि
३९१
५६७
सम्मत्तपडिणिबद्धं
१६१
२५५
सम्मद्दंसणणाणं
१४४
२२८
सम्मद्दिट्ठी जीवा
२२८
३५०
सव्वण्हुणाणदिट्ठो
२४
५८
सव्वे करेदि जीवो
२६८
३९७
सव्वे पुव्वणिबद्धा
१७३
२७३
सव्वे भावे जम्हा
३४
७४
सामण्णपच्चया खलु
१०९
१९१
सुदपरिचिदाणुभूदा
११
सुद्धं तु वियाणंतो
१८६
२९२
सुद्धो सुद्धादेसो
१२
२५
सेवंतो वि ण सेवदि
१९७
३०८
सोवण्णियं पि णियलं
१४६
२३९
सो सव्वणाणदरिसी
१६०
२५४
हेदुअभावे णियमा
१९१
२९७
हेदू चदुव्वियप्पो
१७८
२७७
होदूण णिरुवभोज्जा
१७४
२७४

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कलश
पृष्ठ
अकर्ता जीवोऽयं
१९५
४५९
अखण्डितमनाकुलं
१४
४५
अचिन्त्यशक्तिः स्वयमेव
१४४
३२६
अच्छाच्छाः स्वयमुच्छलन्ति
१४१
३२२
अज्ञानतस्तु सतृणाभ्यव--
५७
१७६
अज्ञानमयभावानामज्ञानी
६८
२०९
अज्ञानमेतदधिगम्य
१६९
३८६
अज्ञानान्मृगतृष्णिकां जलधिया
५८
१७७
अज्ञानं ज्ञानमप्येवं
६१
१७८
अज्ञानी प्रकृतिस्वभाव-
१९७
४६४
अतो हताः प्रमादिनो
१८८
४५०
अतः शुद्धनयायत्तं
३०
अत्यन्तं भावयित्वा विरति-
२३३
५६५
अत्र स्याद्वादशुद्धयर्थं
२४७
५९२
अथ महामदनिर्भरमन्थरं
११३
२६१
अद्वैतापि हि चेतना
१८३
४३९
अध्यास्य शुद्धनय-
१२०
२७९
अध्यास्यात्मनि सर्वभावभवनं
२५९
६०५
अनन्तधर्मणस्तत्त्वं
अनवरतमनन्तै-
१८७
४४६
अनाद्यनन्तमचलं
४१
१२४
अनेनाध्यवसायेन
१७१
३९७
अन्येभ्यो व्यतिरिक्तमात्मनियतं
२३५
५७५
अयि कथमपि मृत्वा
२३
६१
अर्थालम्बनकाल एव कलयन्
२५७
६०४
अलमलमतिजल्पै-
२४४
५८८
अवतरति न यावद्
२९
७६
अविचलितचिदात्म-
२७६
६२५
कलश
पृष्ठ
अस्मिन्ननादिनि
४४
१२६
आक्रामन्नविकल्पभावमचलं
९३
२३०
आत्मनश्चिन्तयैवालं
१९
४८
आत्मभावान्करोत्यात्मा
५६
१६०
आत्मस्वभावं परभावभिन्न-
१०
३६
आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं
६२
१७९
आत्मानं परिशुद्धमीप्सुभि-
२०८
४९४
आत्मानुभूतिरिति
१३
४२
आसंसारत एव धावति
५५
१५९
आसंसारविरोधिसंवर-
१२५
२८५
आसंसारात्प्रतिपदममी
१३८
३१७
इति परिचिततत्त्वै-
२८
७३
इति वस्तुस्वभावं स्वं ज्ञानी
१७६
४१४
इति वस्तुस्वभावं स्वं नाज्ञानी
१७७
४१५
इति सति सह
३१
८१
इतीदमात्मनस्तत्त्वं
२४६
५९०
इतः पदार्थप्रथनावगुण्ठना-
२३४
५६६
इतो गतमनेकतां
२७३
६२३
इत्थं ज्ञानक्रकचकलना-
४५
१२७
इत्थं परिग्रहमपास्य
१४५
३२९
इत्यज्ञानविमूढानां
२६२
६०८
इत्याद्यनेकनिजशक्ति-
२६४
६१५
इत्यालोच्य विवेच्य
१७८
४२१
इत्येवं विरचय्य सम्प्रति
४८
१४१
इदमेकं जगच्चक्षु--
२४५
५८८
इदमेवात्र तात्पर्यं
१२२
२८२
कलशकाव्योंकी वर्णानुक्रम सूची

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कलश
पृष्ठ
इन्द्रजालमिदमेवमुच्छलत्
९१
२२६
उदयति न नयश्री-
३५
उन्मुक्तमुन्मोच्यमशेषतस्तत्
२३६
५७६
उभयनयविरोध-
२७
एकज्ञायकभावनिर्भर-
१४०
३१९
एकत्वं व्यवहारतो न तु
२७
७२
एकत्वे नियतस्य शुद्धनयतो
२९
एकमेव हि तत्स्वाद्यं
१३९
३१९
एकश्चितश्चिन्मय एव भावो
१८४
४४०
एकस्य कर्ता
७४
२१९
एकस्य कार्यं
७९
२२१
एकस्य चेत्यो
८६
२२४
एकस्य चैको
८१
२२२
एकस्य जीवो
७६
२२०
एकस्य दुष्टो
७३
२१९
एकस्य दृश्यो
८७
२२४
एकस्य नाना
८५
२२३
एकस्य नित्यो
८३
२२२
एकस्य बद्धो
७०
२१७
एकस्य भातो
८९
२२५
एकस्य भावो
८०
२२१
एकस्य भोक्ता
७५
२२०
एकस्य मूढो
७१
२१८
एकस्य रक्तो
७२
२१८
एकस्य वस्तुन इहान्यतरेण
२०१
४७४
एकस्य वाच्यो
८४
२२३
एकस्य वेद्यो
८८
२२४
एकस्य सान्तो
८२
२२२
एकस्य सूक्ष्मो
७७
२२०
एकस्य हेतुर्न
७८
२२१
कलश
पृष्ठ
एकं ज्ञानमनाद्यनन्तमचलं
१६०
३५५
एकः परिणमति सदा
५२
१५८
एकः कर्ता चिदहमिह
४६
१२९
एको दूरात्त्यजति मदिरां
१०१
२३६
एको मोक्षपथो य एष
२४०
५८३
एवं ज्ञानस्य शुद्धस्य
२३८
५७८
एवं तत्त्वव्यवस्थित्या
२६३
६०८
एष ज्ञानघनो नित्यमात्मा
१५
४६
एषैकैव हि वेदना
१५६
३५२
कथमपि समुपात्त-
२०
५१
कथमपि हि लभन्ते
२१
५४
कर्ता कर्ता भवति न यथा
९९
२३३
कर्ता कर्मणि नास्ति
९८
२३३
कर्तारं स्वफलेन यत्किल
१५२
३४६
कर्तुर्वेदयितुश्च युक्तिवशतो
२०९
४९५
कर्तृत्वं न स्वभावोऽस्य
१९४
४५६
कर्म सर्वमपि सर्वविदो
१०३
२४३
कर्मैव प्रवितर्क्य कर्तृ हतकैः
२०४
४७९
कषायकलिरेकतः
२७४
६२४
कान्त्यैव स्नपयन्ति ये
२४
६२
कार्यत्वादकृतं न कर्म
२०३
४७८
कृतकारितानुमननै-
२२५
५३८
क्लिश्यन्तां स्वयमेव
१४२
३२३
क्वचिल्लसति मेचकं
२७२
६२२
क्ष
क्षणिकमिदमिहैकः
२०६
४८९
घृतकुम्भाभिधानेऽपि
४०
१२२
चिच्छक्तिव्याप्तसर्वस्व-
३६
१०३

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कलश
पृष्ठ
चित्पिण्डचण्डिमविलासि-
२६८
६१९
चित्रात्मशक्तिसमुदायमयो
२७०
६२०
चिरमिति नवतत्त्व-
३३
चित्स्वभावभरभावितभावा-
९२
२२८
चैद्रूप्यं जड़रूपतां च
१२६
२८९
जयति सहजतेजः
२७५
६२४
जानाति यः स न करोति
१६७
३७७
जीवः करोति यदि पुद्गलकर्म
६३
१९१
जीवाजीवविवेकपुष्कलद्रशा
३३
८६
जीवादजीवमिति
४३
१२६
ज्ञ
ज्ञप्तिः करोतौ न हि
९७
२३२
ज्ञानमय एव भावः
६६
२०५
ज्ञानवान् स्वरसतोऽपि
१४९
३४०
ज्ञानस्य सञ्चेतनयैव नित्यं
२२४
५३६
ज्ञानादेव ज्वलनपयसो-
६०
१७८
ज्ञानाद्विवेचकतया तु
५९
१७७
ज्ञानिन् कर्म न जातु
१५१
३४५
ज्ञानिनो न हि परिग्रहभावं
१४८
३४०
ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः
६७
२०६
ज्ञानी करोति न
१९८
४६६
ज्ञानी जानन्नपीमां
५०
१४९
ज्ञेयाकारकलङ्कमेचकचिति
२५१
६००
टङ्कोत्कीर्णविशुद्धबोधविसरा-
२६१
६०७
टङ्कोत्कीर्णस्वरसनिचित-
१६१
३५६
तज्ज्ञानस्यैव सामर्थ्यं
१३४
३०५
तथापि न निरर्गलं
१६६
३७७
तदथ कर्म शुभाशुभभेदतो
१००
२३५
कलश
पृष्ठ
त्यक्तं येन फलं स कर्म
१५३
३४९
त्यक्त्वाऽशुद्धिविधायि
१९१
४५२
त्यजतु जगदिदानीं
२२
५७
दर्शनज्ञानचारित्रत्रयात्मा
२३९
५८२
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रित्वा
१६
४७
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः
१७
४८
दूरं भूरिविकल्पजालगहने
९४
२३०
द्रव्यलिङ्गममकारमीलितै-
२४३
५८६
द्विधाकृत्य प्रज्ञाक्रकच-
१८०
४२४
धीरोदारमहिम्न्यनादिनिधने
१२३
२८२
न कर्मबहुलं जगन्न
१६४
३७३
न जातु रागादि-
१७५
४१३
ननु परिणाम एव किल
२११
५००
नमः समयसाराय
न हि विदधति बद्ध-
११
४१
नाश्नुते विषयसेवनेऽपि
१३५
३०७
नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः
२००
४७१
निजमहिमरतानां
१२८
२९६
नित्यमविकारसुस्थित-
२६
६७
निर्वर्त्यते येन यदत्र किञ्चित्
३८
१२०
निःशेषकर्मफल-
२३१
५६४
निषिद्धे सर्वस्मिन्
१०४
२४३
नीत्वा सम्यक् प्रलय-
१९३
४५५
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ
५४
१५९
नैकान्तसङ्कत
द्र
द्रद्र
द्र
शा स्वयमेव वस्तु-
२६५
६१५
नोभौ परिणमतः खलु
५३
१५९
पदमिदं ननु कर्मदुरासदं
१४३
३२४

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कलश
पृष्ठ
परद्रव्यग्रहं कुर्वन्
१८६
४४२
परपरिणतिहेतो-
परपरिणतिमुज्झत्
४७
१३६
परमार्थेन तु व्यक्त-
१८
४८
पूर्णैकाच्युतशुद्धबोधमहिमा
२२२
५३१
पूर्वबद्धनिजकर्म-
१४६
३३५
पूर्वालम्बितबोध्यनाशसमये
२५६
६०३
प्रच्युत्य शुद्धनयतः
१२१
२८०
प्रज्ञाछैत्री शितेयं
१८१
४३२
प्रत्यक्षालिखितस्फु टस्थिर-
२५२
६०१
प्रत्याख्याय भविष्यत्कर्म
२२८
५५१
प्रमादकलितः कथं भवति
१९०
४५२
प्राकारकवलिताम्बर-
२५
६६
प्राणोच्छेदमुदाहरन्ति मरणं
१५९
३५४
प्रादुर्भावविराममुद्रित-
२६०
६०६
बन्धच्छेदात्कलयदतुलं
१९२
४५३
बहिर्लुठति यद्यपि
२१२
५००
बाह्यार्थग्रहणस्वभावभरतो
२५०
५९९
बाह्यार्थैः परिपीतमुज्झित-
२४८
५९७
भावयेद्भेदविज्ञान-
१३०
२९९
भावास्रवाभावमयं प्रपन्नो
११५
२६८
भावो रागद्वेषमोहैर्विना यो
११४
२६७
भित्त्वा सर्वमपि स्वलक्षण-
१८२
४३६
भिन्नक्षेत्रनिषण्णबोध्य-
२५४
६०२
भूतं भान्तमभूतमेव
१२
४२
भेदज्ञानोच्छलन-
१३२
३००
भेदविज्ञानतः सिद्धाः
१३१
३००
भेदोन्मादं भ्रमरसभरा-
११२
२५९
भोक्तृत्वं न स्वभावोऽस्य
१९६
४६२
कलश
पृष्ठ
मग्नाः कर्मनयावलम्बनपरा
१११
२५८
मज्जन्तु निर्भरममी
३२
८३
माऽकर्तारममी स्पृशन्तु
२०५
४८८
मिथ्यादृष्टेः स एवास्य
१७०
३८७
मोक्षहेतुतिरोधानाद्-
१०८
२५१
मोहविलासविजृम्भित-
२२७
५४७
मोहाद्यदहमकार्षं
२२६
५४३
य एव मुक्त्वा नयपक्षपातं
६९
२१७
यत्तु वस्तु कुरुते-
२१४
५०२
यत्सन्नाशमुपैति तन्न नियतं
१५७
३५३
यदि कथमपि धारावाहिना
१२७
२९३
यदिह भवति रागद्वेष-
२२०
५२४
यदेतद् ज्ञानात्मा
१०५
२४७
यत्र प्रतिक्रमणमेव
१८९
४५१
यस्माद् द्वैतमभूत्पुरा
२७७
६२६
यः करोति स करोति केवलं
९६
२३१
यः परिणमति स कर्ता
५१
१५८
यः पूर्वभावकृतकर्म
२३२
५६५
यादृक् तादृगिहास्ति
१५०
३४२
यावत्पाकमुपैति कर्मविरति-
११०
२५७
ये तु कर्तारमात्मानं
१९९
४६९
ये तु स्वभावनियमं
२०२
४७५
ये त्वेनं परिहृत्य
२४१
५८४
ये ज्ञानमात्रनिजभावमयी
२६६
६१८
योऽयं भावो ज्ञानमात्रो-
२७१
६२१
रागजन्मनि निमित्ततां
२२१
५२५
रागद्वेषद्वयमुदयते
२१७
५१६
रागद्वेषविभावमुक्तमहसो
२२३
५३२

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कलश
पृष्ठ
रागद्वेषविमोहानां
११९
२७७
रागद्वेषाविह हि भवति
२१८
५२१
रागद्वेषोत्पादकं तत्त्वदृष्टया
२१९
५२१
रागादयो बन्धनिदानमुक्ता-
१७४
४११
रागादीनामुदयमदयं
१७९
४२२
रागादीनां झगिति विगमात्
१२४
२८३
रागाद्यास्रवरोधतो
१३३
३०२
रागोद्गारमहारसेन सकलं
१६३
३६८
रुन्धन् बन्धं नवमिति
१६२
३६४
लोकः कर्मततोऽस्तु
१६५
३७६
लोकः शाश्वत एक एष
१५५
३५१
वर्णादिसामग््̄रयमिदं विदन्तु
३९
१२१
वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा
३७
१०९
वर्णाद्यैः सहितस्तथा
४२
१२५
वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो
२१३
५०१
विकल्पकः परं कर्ता
९५
२३१
विगलन्तु कर्मविषतरु-
२३०
५५२
विजहति न हि सत्तां
११८
२७६
विरम किमपरेणाकार्य
३४
९३
विश्रान्तः परभावभावकलना-
२५८
६०५
विश्वाद्विभक्तोऽपि हि
१७२
३९९
विश्वं ज्ञानमिति प्रतर्क्य
२४९
५९८
वृत्तं कर्मस्वभावेन
१०७
२५१
वृत्तं ज्ञानस्वभावेन
१०६
२५१
वृत्त्यंशभेदतोऽत्यन्तं
२०७
४९०
वेद्यवेदकविभावचलत्वाद्
१४७
३३८
व्यतिरिक्तं परद्रव्यादेवं
२३७
५७६
व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि
२८
व्यवहारविमूढदृष्टयः
२४२
५८६
कलश
पृष्ठ
व्याप्यव्यापकता तदात्मनि
४९
१४३
व्यावहारिकदृशैव केवलं
२१०
४९५
शुद्धद्रव्यनिरूपणार्पित-
२१५
५१५
शुद्धद्रव्यस्वरसभवनात्किं
२१६
५१५
सकलमपि विहायाह्नाय
३५
१०२
समस्तमित्येवमपास्य कर्म
२२९
५५१
संन्यस्यन्निजबुद्धिपूर्वमनिशं
११६
२७२
संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि
१०९
२५७
सम्पद्यते संवर एष
१२९
२९९
सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं
१५४
३५०
सम्यग्दृष्टिः स्वयमयमहं
१३७
३१३
सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं
१३६
३०९
सर्वतः स्वरसनिर्भरभावं
३०
७९
सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं
१७३
४०३
सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य
२५३
६०१
सर्वस्यामेव जीवन्त्यां
११७
२७३
सर्वं सदैव नियतं
१६८
३८५
सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्त-
१८५
४४२
स्थितेति जीवस्य निरन्तराया
६५
२०२
स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य
६४
१९८
स्याद्वादकौशलसुनिश्चल
२६७
६१८
स्याद्वाददीपितलसन्महसि
२६९
६२०
स्वशक्तिसंसूचितवस्तुतत्त्वै-
२७८
६२७
स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विध-
२५५
६०३
स्वेच्छासमुच्छलदनल्प-
९०
२२५
स्वं रूपं किल वस्तुनो-
१५८
३५३
हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां
१०२
२३९