Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of shastra: http://samyakdarshan.org/DwS
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/GdMqhRk

Page 106 of 214
PDF/HTML Page 118 of 226

 

Hide bookmarks
background image
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
ज्यां रूप देखी साहजिक, आदर नहीं मत्सर वडे,
संयम तणो धारक भले ते होय पण कु द्रष्टि छे. २४.
जे अमरवंदित शीलयुत मुनिओ तणुं रूप जोईने
मिथ्याभिमान करे अरे! ते जीव द्रष्टिविहीन छे. २५.
वंदो न अणसंयत, भले हो नग्न पण नहि वंद्य ते;
बंने समानपणुं धरे, एक्के न संयमवंत छे. २६.
नहि देह वंद्य, न वंद्य कुल, नहि वंद्य जन जाति थकी;
गुणहीन क्यम वंदाय? ते साधु नथी, श्रावक नथी. २७.
सम्यक्त्वसंयुत शुद्धभावे वंदुं छुं मुनिराजने,
तस ब्रह्मचर्य, सुशीलने, गुणने तथा शिवगमनने. २८.
चोसठ चमर संयुक्त ने चोत्रीस अतिशय युक्त जे,
बहुजीवहितकर सतत, कर्मविनाशकारण-हेतु छे. २९.
संयम थकी, वा ज्ञान-दर्शन-चरण-तप छे चार जे
ए चार केरा योगथी, मुक्ति कही जिनशासने. ३०.
रे ! ज्ञान नरने सार छे, सम्यक्त्व नरने सार छे;
सम्यक्त्वथी चारित्र ने चारित्रथी मुक्ति लहे. ३१.
द्रग-ज्ञानथी, सम्यक्त्वयुत चारित्रथी ने तप थकी,
ए चारना योगे जीवो सिद्धि वरे, शंका नथी. ३२.
कल्याणश्रेणी साथ पामे जीव समकित शुद्धने;
सुर-असुर केरा लोकमां सम्यक्त्वरत्न पुजाय छे. ३३.
१. साहजिक = स्वाभाविक; नैसर्गिक; यथाजात.
२. मत्सर = ईर्षा; द्वेष; गुमान. ३.
अमरवंदित = देवोथी वंदित.
४. शिवगमन = मोक्षप्राप्ति.५.द्रगज्ञान = दर्शन अने ज्ञान.
६. कल्याणश्रेणी = सुखोनी परंपरा; विभूतिनी हारमाळा.
१०६ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय