Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 2. sutra prAbhrut:.

< Previous Page   Next Page >


Page 107 of 214
PDF/HTML Page 119 of 226

 

background image
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
रे! गोत्र उत्तमथी सहित मनुजत्वने जीव पामीने,
संप्राप्त करी सम्यक्त्व, अक्षय सौख्य ने मुक्ति लहे. ३४.
चोत्रीस अतिशययुक्त, अष्ट सहस्र लक्षणधरपणे
जिनचंद्र विहरे ज्यां लगी, ते बिंब स्थावर उक्त छे. ३५.
द्वादश तपे संयुक्त, निज कर्मो खपावी विधिबळे,
व्युत्सर्गथी तनने तजी, पाम्या अनुत्तम मोक्षने. ३६.
२. सूत्रप्राभृत
अर्हंतभाषित-अर्थमय, गणधरसुविरचित सूत्र छे;
सूत्रार्थना शोधन वडे साधे श्रमण परमार्थने. १.
सूत्रे सुदर्शित जेह, ते १०सूरिगणपरंपर मार्गथी
जाणी ११द्विधा, शिवपंथ वर्ते जीव जे ते भव्य छे. २.
१२सूत्रज्ञ जीव करे विनष्ट भवो तणा उत्पादने;
खोवाय सोय १३असूत्र, सोय ससूत्र नहि खोवाय छे; ३.
१. मनुजत्व = मनुष्यपणुं.२. अष्ट सहस्र = एक हजार ने आठ.
३. बिंब = प्रतिमा.४. द्वादश = बार.
५. व्युत्सर्गथी = (शरीर प्रत्ये) संपूर्ण उपेक्षापूर्वक.
६. अनुत्तम = सर्वोत्तम.
७. सूत्रार्थ = सूत्रोना अर्थ.
८. शोधन = शोधवुं
खोजवुं ते.
९. सुदर्शित = सारी रीते दर्शाववामांकहेवामां आवेलुं.
१०. सूरिगणपरंपर मार्ग = आचार्योनी परंपरामय मार्ग.
११. द्विधा = (शब्दथी अने अर्थथी
एम) बे प्रकारे.
१२. सूत्रज्ञ = शास्त्रनो जाणनार. १३. असूत्र = दोरा विनानी.
अष्टप्राभृत-सूत्रप्राभृत ]
[ १०७