Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 2. kartA karm adhikAr.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
आ भाव सर्वे जीव छे जो एम तुं माने कदी,
तो जीव तेम अजीवमां कंई भेद तुज रहेतो नथी! ६२.
वर्णादि छे संसारी जीवनां एम जो तुज मत बने,
संसारमां स्थित सौ जीवो पाम्या तदा रूपित्वने; ६३.
ए रीत पुद्गल ते ज जीव, हे मूढमति! समलक्षणे,
ने मोक्षप्राप्त थतांय पुद्गलद्रव्य पाम्युं जीवत्वने! ६४.
जीव एक-द्वि-त्रि-चर्तु-पंचेन्द्रिय, बादर, सूक्ष्म ने
पर्याप्त आदि नामकर्म तणी प्रकृति छे खरे. ६५.
प्रकृति आ पुद्गलमयी थकी करणरूप थतां अरे,
रचना थती जीवस्थाननी जे, जीव केम कहाय ते? ६६.
पर्याप्त अणपर्याप्त, जे सूक्षम अने बादर बधी
कही जीवसंज्ञा देहने ते सूत्रमां व्यवहारथी. ६७.
मोहनकरमना उदयथी गुणस्थान जे आ वर्णव्यां,
ते जीव केम बने, निरंतर जे अचेतन भाखियां? ६८.
२. कर्ताकर्म अधिकार
आत्मा अने आस्रव तणो ज्यां भेद जीव जाणे नहीं,
क्रोधादिमां स्थिति त्यां लगी अज्ञानी एवा जीवनी. ६९.
जीव वर्ततां क्रोधादिमां संचय करमनो थाय छे,
सहु सर्वदर्शी ए रीते बंधन कहे छे जीवने. ७०.
आ जीव ज्यारे आस्रवोनुं तेम निज आत्मा तणुं
जाणे विशेषांतर, तदा बंधन नहीं तेने थतुं. ७१.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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