Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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श्री वीतरागाय नमः।।
सोनगढ [सौराष्ट्र] के आध्यात्मिक प्रवक्ता सत्पुरुष श्री कानजी
महाराज की सेवामें समर्पित
अभिनन्दन पत्र
श्रीमन्!
हमारा सौभाग्य है कि उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्रों की बन्दना करते हुए
जयपुर पधार कर आपने हमें चार दिन का सुअवसर प्रदान किया। इन दिनों में आपके
अभ्युदय एवं निःश्रेयस की और लेजानेवाले प्रवचनों को सुनकर सभी अध्यात्मानुरागी
भव्यात्माओं को प्रसन्नता हुई है।
सत्पुरुष!
भारत के आध्यात्मिक सत्पुरुषोंमें आपका विशिष्ट स्थान है। आपने मानव को इस
दुःखमय संसारसे उपर उठानेवाले आत्मानुभूति–कारक जो सदुपदेश दिये हैं–वे वस्तुतः
मननीय और उपादेय हैं। इनसे जो सत्प्रेरणा और स्फूर्ति मिली है उसका मूल्यांकन हमें
जीवन की विभिन्न परिस्थितियोंमें होगा, ऐसी हमें आशा है।
आत्मार्थिन्!
आत्माकी खोजमें संलग्न आपने भगवान कुंदकुंद की महान् रचनाओं का मनन एवं
परिशीलन करके जो द्रष्टि प्राप्त की है–वह सचमुच प्रशंसनीय है। प्राणी का कल्याण
आत्मनिरीक्षण द्वारा ही संभव है, वही जगजाल से छुडाने में समर्थ है और वही मुमुक्षुओं
के लिए प्रशस्त मार्ग है। इसी मार्ग का आपने हमें उपदेश दिया है।
आध्यात्मिक प्रवक्ता!
आज के वैज्ञानिक युगमें जहां मानव–संहारकारक नित्य नये उपायों की खोज बडे
वेगसे जारी है, केवल आध्यात्मिक वाणी ही ऐसी है जो इस विकराल संहारको रोक
सके। भारतकी यह सदासे महान् देन है कि वह विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता आ रहा
है। आज भारत में आप सरीखे अध्यात्मप्रचारक की महान् आवश्यकता है। इस महान्
निर्माण–कार्य में आप जो सहयोग दे रहे हैं वह स्तुत्य हैं।
जैनशासन प्रभावक!
आपके सदुपदेश के प्रभाव से सोनगढ एक तीर्थसा बन गया है जहां अनेक भव्य जीव
अपने कल्याण की इच्छा से निवास करते हैं। सांसारिक वैभव से दूर रह कर सदाचरणपूर्वक
अपने जीवन को अन्तर्मुखी द्रष्टि द्वारा सफल करने में ही जैनशासन की सच्ची
શ્રાવણઃ ૨૪૮૩ ઃ ૧૬ઃ

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प्रभावना है। श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र के समीकरण द्वारा मुमुक्षुओंका मार्ग प्रशस्त करने में
आप अधिकाधिक सफल हों, यह हमारी हार्दिक कामना है।
अन्तमें इस पवित्र प्रसंग पर हमें आप का अभिनंदन करते है और कामना करते है
कि आप का दिव्य संदेश [मिशन] पूर्णतः सफल हो।
चैत्र शुक्ला चतुर्दशी सं० २०१४विनयावनत
दि० १३–४–५७ जयपुर दि० जैन समाज
श्रीमान श्रद्धेय आध्यात्मिक संत श्री कानजीस्वामीजी के
करकमलोमें समर्पित
अभिनन्दन पत्र
आध्यात्मिक संत!
‘आत्मैव गुरुरात्मनः’ इस नीति के अनुसार आत्मा में ही रमण करनेवाला साधु
आत्मा को निर्विकार बनाता है। श्रीमन्! आप वास्तविक रूपसे आत्मरस के रसिक हैं।
यही कारण है कि आपकी किञ्चित् मात्र भी बाह्य द्रष्टि नहीं हैं, अतः आप एक महान्
आध्यात्मिक सन्त हैं।
मोक्षमार्ग प्रवर्तक!
आपके उपदेशामृत की सरस धारा मुमुक्षुजनों के लिये तो परमाह्लादकारक हैं ही
परंतु जो व्यक्ति सांसारिक विषयभोगों में ही अहर्निश मग्न रहते हैं, उन्हें भी वह जागृत
कर देती है और वे भी आत्मसाधना में जूट जाते हैं।
दिगम्बर धर्मोद्धारक!
आपने आचार्यप्रवर कुन्दकुन्दस्वामी के समयसार आदि ग्रन्थो का स्वाध्याय कर
स्वयं अपने ज्ञानको विकसित किया। साथ ही आपने दिगम्बर जैन धर्म अंगीकार किया
तथा अपने प्रान्त के सहस्त्रों श्वेताम्बर भाईयों को दिगम्बर जैन बनाया। आप एक सच्चे
धर्मोद्धारक है।
त्त्प्र!
जिस सोनगढ में आप अधिकतर निवास करते हैं वहां पर केवल आपकी
शिष्यमंडली ही नहीं अपितु जैनेतर समाज जैसे धोबी जुलाहे आदि भी जैन धर्म के मर्म से
परिचित हो रहे है। अब जिनेन्द्र देवसे प्रार्थना करते हैं कि आप शतजीवी हो तथा स्वस्थ
रहकर इसी प्रकार आत्मधर्म का प्रकाश एवं प्रचार करते रहें। यही एक कामना लेकर
श्रीमन्! आपके करकमलों में यह अभिनन्दन–पत्र प्रस्तुत करते हैं।
हस्तिनापुर हम हैं आपके–
गुरुकुल परिवार
ઃ ૧૭ઃ આત્મધર્મઃ ૧૬૬

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श्री सीमंधरजिनाय नमः।।
परम आध्यात्मिक आत्मार्थी संत श्री कानजीस्वामी की
सेवा में सादर समर्पित
सम्मान पत्र
सम्मानीय सद्गुरुदेव!
हम शिवगंज तथा जावालनिवासीयों का यह सद्भाग्य है कि
जनता जिस महानं् आत्मा के सम्पर्क की वर्षों से प्रतीक्षा कर रही थी आज हमारी
मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई। आपको पाकर जावाल व शिवगंज की भूमि पवित्र हुई। भव्य
जीवों का उद्धार हुआ, आकाश और भूमि के बीच सत्य और अहिंसा की वाणी गूंज उठी।
जनता के हृदयमें पवित्रता का पावन मंदिर खडा हुआ; हृदय की पवित्रता और
आध्यात्मिक ज्ञानकी ज्योत का प्रकाश मिला। आपके सामीप्य से लाभ उठाकर हमको
जीवन यथार्थ बनाने की प्रेरणा उत्पन्न हुई। आपके समान परमोपकारी आत्मार्थी सत्पुरुष
का समागम पाकर आज हम अतिशय गौरव का अनुभव कर रहे है।
अध्यात्म योगी!
आज जब की क्षितिज में विश्वविनाशक युद्ध के काले बादल मंडरा रहे है,
उद्जनऔर अणु परमाणु बम मानवता को चुनौती दे रही है, हिंसा की विकराल आंधी,
आस्था और विश्वास को समूल उखाड देना चाहती है, द्वेष, स्वार्थता, धृणा, दम्भ
आदिका अंधकार सारे विश्व को आच्छादित कर रहा है, ऐसे दूषित वातावरण में पले विश्व
में आज भगवान महावीर के आध्यात्मिक ज्ञानदीप की ज्योति से तमभ्रान्त विश्वको
आलोकित करते है।
ज्ञानदूत!
आजके इस युग में जबकि भौतिकवाद का समस्त विश्व में एकछत्र साम्राज्य
स्थापित हो रहा है, केवल अर्थ ही मानव के जीवन का मुख्य लक्ष्य बन चुका है, ऐसे
विकराल समय आप भगवान के अध्यात्मज्ञान के दूत बनकर विश्व में शांति और प्रेमका
भाव भर रहे हैं। आपकी छत्रछाया में रहकर कई लेखकों को ज्ञान, उत्साह, और प्रेरणा
मिली; आपके सान्निध्य में रहकर कई विद्वानोंने कई आध्यात्मिक ग्रंथो की रचना की तथा
धार्मिक ग्रंथोके अनुवाद किये तथा सम्पादन किया।
શ્રાવણઃ ૨૪૮૩ ઃ ૧૮ઃ

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प्रवचनशैलीः –
आपकी प्रवचनशैली अनुपम और प्रभावक होने से श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते है।
जनता के हृदय पर आपके वचनोंका असर पडता है। आपकी वाणींमें संसारदुःख से संतप्त
प्राणीयों को दुःखसे छूटकर शाश्वत सुख का मार्ग दिखलाई पडता है; और निश्चय–व्यवहार,
उपादान–निमित्त और द्रव्य का स्वतंत्र परिणमन आदिका सुंदर और मधुर विवेचन करते हैं;
श्रोताओं को जड, कर्म, राग आदिसे पृथक् नित्य, शुद्ध, चैतन्यस्वरूप आत्मा का भाविक
चित्र प्रस्तुत कर आत्मदर्शन की ओर प्रेरणा प्रदान करते है।
तेजस्वी!
आपके चेहरे पर अनुपम तेज झलक रहा है, आपने तो अपने सतत प्रयत्नो द्वारा
अपवर्ग की [–मोक्षकी] इस पृथ्वी पर सृष्टि की है, आप साकेतवासी है, आपके जीवन का
उदेश्य आध्यात्मिक चर्वणावस्था की प्राप्ति करना है। इधर आप दिव्य है, पवित्र है उतने ही
आपके दर्शन नेत्रों को शीतल आत्मा के लिये सुखद एवं जीवन को अवदात करनेवाले हैं।
इस पावन प्रसंग पर हम मुमुक्षुजन आपका अंतःकरण से अभिनन्दन करते हुये
अपने भावों की कुसुमांजलि इस सम्मानपत्र के द्वारा समर्पित करते है। हमारी तो यही
इच्छा है कि आप बार बार आ कर हमें ज्ञानकी ज्योतिका पथ प्रदर्शन करावें।
आपके विनीत ः –
[१] जैन मुमुक्षु मंडल, शिवगंज दः सुकनराज हीराचंदजी
[२] श्री समस्त ३६ पवन, जावाल
(જાવાલ ગામની ૩૬ જ્ઞાતિના સમસ્ત પ્રજાજનો તરફથી)
[३] जैन मुमुक्षु मंडल, जावाल दः रिखवदास कपुरचंदजी
નોંધઃ– ઉપર્યુક્ત ત્રણે નામોથી ત્રણ જુદા જુદા સન્માનપત્ર અર્પણ કરવામાં આવ્યા હતા;
પરંતુ તે ત્રણેનું લખાણ એકસરખું હોવાથી, અહીં તે ત્રણેના સંયુક્ત નામોથી આ એક જ સન્માન
પત્ર પ્રસિદ્ધ કરવામાં આવ્યું છે.
ઃ ૧૯ઃ આત્મધર્મઃ ૧૬૬

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
दस लक्षण धर्म
दंसण मूलो धम्मो
ભાદરવા સુદ પ થી ૧૪ સુધીના દસ દિવસોને “દસલક્ષની
પર્વ” કહેવાય છે; સનાતન જૈન શાસનમાં એને જ “પર્યુષણ પર્વ”કહે
છે. શાસ્ત્રોમાં તો આ દસલક્ષણી પર્વ વર્ષમાં ત્રણ વાર આવવાનું વર્ણન
છે, પરંતુ વર્તમાનમાં ભાદરવા માસમાં જ તેની પ્રસિદ્ધિ છે, વીતરાગી જિનશાસનમાં આ ધાર્મિક
પર્વનો અપાર મહિમા છે. પ્રસિદ્ધ ઉત્તમ ક્ષમાદિ દસ ધર્મો, જો કે મુખ્યતઃ મુનિઓના ધર્મો છે, તોપણ
ગૃહસ્થ–શ્રાવકોને પણ સમ્યગ્દર્શનપૂર્વક તે ધર્મોની આરાધના આંશિકરૂપે હોઈ શકે છે. (વિશેષ
સમજણ માટે પૂ. ગુરુદેવના “દસલક્ષણધર્મ–પ્રવચનો” વાંચવા ભલામણ છે.)
મુદ્રકઃ હરિલાલ દેવચંદ શેઠ, આનંદ પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ભાવનગર
પ્રકાશકઃ સ્વાધ્યાય મંદિર ટ્રસ્ટવતી હરિલાલ દેવચંદ શેઠ– ભાવનગર
* પ ર્યુ ષ ણ સ્ત વ ન *
રૂડા પર્યુષણ દિન આજ દીપતા રે.....
શ્રી દશલક્ષણાધિરાજ..... રૂડા
આજ રત્નત્રય દિન દિપતા રે.....
સૌ રત્નત્રય પ્રગટ કરો આજ.....રૂડા
શુક્લધ્યાને જિનેશ્વર લીન થયા રે.....
એવી લીનતા કરવાનો દિન આજ..... રૂડા
ધર્મધ્યાને મુનિવરો રાચતા રે.....
ભવ્યોને દેખાડે એ રાહ..... રૂડા
ક્ષમા નિર્લોભતા આદિ ગુણમાં રે.....
રમી રહ્યા જિનેશ્વર દેવ..... રૂડા
આ અષ્ટમી ચતુરદશી દિનમાં રે.....
થયા પુષ્પદંત વાસુપૂજ્ય સિદ્ધ..... રૂડા
એવા નિર્મળ દિવસ છે આજના રે.....
સહુ નિર્મળ કરો આત્મદેવ..... રૂડા
પ્રભુ વીર એ માર્ગ બતાવીયો રે.....
કુંદકુંદે રોપ્યા રાજથંભ..... રૂડા
કહાન ગુરુએ કાદવમાંથી કાઢિયા રે.....
ચડાવ્યા એ રાજમાર્ગ દ્વાર..... રૂડા
સીમંધરના નાદ કુંદ લાવીયા રે.....
રણશીંગા વગાડયા ભરતમાંય....રૂડા
ગુરુકહાને રણશીંગા સાંભળ્‌યા રે...
વગાડનાર એ છે કોણ..... રૂડા
ગુરુ કહાને એ કુંદકુંદ શોધિયા રે....
શોધી લીધો શાસનનો થંભ...રૂડા
ગુરુ કહાને ભરતને જગાડિયું રે.....
જાગો! જાગો! એ ઊંઘતા અંધ...રૂડા
ગુરુ કહાને ચિદાત્મ બતાવીઓ રે...
રોપ્યા છે મુક્તિકેરા થંભ..... રૂડા
એવા શાસનસ્તંભમારા નાથ છે રે.....
તેને જોઈ જોઈ અંતર ઊભરાય..... રૂડા
ગુરુ–હદયે જિનેશ્વર વસી રહ્યા રે.....
ગુરુના શિરે જિનેશ્વરનો હાથ..... રૂડા
પ્રભુ સેવક રત્નત્રય માગતા રે.....
એ તો લળી લળી લાગે પાય.....
રૂડા પર્યુષણ દિન આજ દીપતા રે