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अभ्युदय एवं निःश्रेयस की और लेजानेवाले प्रवचनों को सुनकर सभी अध्यात्मानुरागी
भव्यात्माओं को प्रसन्नता हुई है।
मननीय और उपादेय हैं। इनसे जो सत्प्रेरणा और स्फूर्ति मिली है उसका मूल्यांकन हमें
जीवन की विभिन्न परिस्थितियोंमें होगा, ऐसी हमें आशा है।
आत्मनिरीक्षण द्वारा ही संभव है, वही जगजाल से छुडाने में समर्थ है और वही मुमुक्षुओं
के लिए प्रशस्त मार्ग है। इसी मार्ग का आपने हमें उपदेश दिया है।
सके। भारतकी यह सदासे महान् देन है कि वह विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता आ रहा
है। आज भारत में आप सरीखे अध्यात्मप्रचारक की महान् आवश्यकता है। इस महान्
निर्माण–कार्य में आप जो सहयोग दे रहे हैं वह स्तुत्य हैं।
अपने जीवन को अन्तर्मुखी द्रष्टि द्वारा सफल करने में ही जैनशासन की सच्ची
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आप अधिकाधिक सफल हों, यह हमारी हार्दिक कामना है।
यही कारण है कि आपकी किञ्चित् मात्र भी बाह्य द्रष्टि नहीं हैं, अतः आप एक महान्
आध्यात्मिक सन्त हैं।
कर देती है और वे भी आत्मसाधना में जूट जाते हैं।
तथा अपने प्रान्त के सहस्त्रों श्वेताम्बर भाईयों को दिगम्बर जैन बनाया। आप एक सच्चे
धर्मोद्धारक है।
परिचित हो रहे है। अब जिनेन्द्र देवसे प्रार्थना करते हैं कि आप शतजीवी हो तथा स्वस्थ
रहकर इसी प्रकार आत्मधर्म का प्रकाश एवं प्रचार करते रहें। यही एक कामना लेकर
श्रीमन्! आपके करकमलों में यह अभिनन्दन–पत्र प्रस्तुत करते हैं।
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मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई। आपको पाकर जावाल व शिवगंज की भूमि पवित्र हुई। भव्य
जीवों का उद्धार हुआ, आकाश और भूमि के बीच सत्य और अहिंसा की वाणी गूंज उठी।
जनता के हृदयमें पवित्रता का पावन मंदिर खडा हुआ; हृदय की पवित्रता और
आध्यात्मिक ज्ञानकी ज्योत का प्रकाश मिला। आपके सामीप्य से लाभ उठाकर हमको
जीवन यथार्थ बनाने की प्रेरणा उत्पन्न हुई। आपके समान परमोपकारी आत्मार्थी सत्पुरुष
का समागम पाकर आज हम अतिशय गौरव का अनुभव कर रहे है।
आस्था और विश्वास को समूल उखाड देना चाहती है, द्वेष, स्वार्थता, धृणा, दम्भ
आदिका अंधकार सारे विश्व को आच्छादित कर रहा है, ऐसे दूषित वातावरण में पले विश्व
में आज भगवान महावीर के आध्यात्मिक ज्ञानदीप की ज्योति से तमभ्रान्त विश्वको
आलोकित करते है।
विकराल समय आप भगवान के अध्यात्मज्ञान के दूत बनकर विश्व में शांति और प्रेमका
भाव भर रहे हैं। आपकी छत्रछाया में रहकर कई लेखकों को ज्ञान, उत्साह, और प्रेरणा
मिली; आपके सान्निध्य में रहकर कई विद्वानोंने कई आध्यात्मिक ग्रंथो की रचना की तथा
धार्मिक ग्रंथोके अनुवाद किये तथा सम्पादन किया।
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प्राणीयों को दुःखसे छूटकर शाश्वत सुख का मार्ग दिखलाई पडता है; और निश्चय–व्यवहार,
उपादान–निमित्त और द्रव्य का स्वतंत्र परिणमन आदिका सुंदर और मधुर विवेचन करते हैं;
श्रोताओं को जड, कर्म, राग आदिसे पृथक् नित्य, शुद्ध, चैतन्यस्वरूप आत्मा का भाविक
चित्र प्रस्तुत कर आत्मदर्शन की ओर प्रेरणा प्रदान करते है।
उदेश्य आध्यात्मिक चर्वणावस्था की प्राप्ति करना है। इधर आप दिव्य है, पवित्र है उतने ही
आपके दर्शन नेत्रों को शीतल आत्मा के लिये सुखद एवं जीवन को अवदात करनेवाले हैं।
इच्छा है कि आप बार बार आ कर हमें ज्ञानकी ज्योतिका पथ प्रदर्शन करावें।
પત્ર પ્રસિદ્ધ કરવામાં આવ્યું છે.
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છે. શાસ્ત્રોમાં તો આ દસલક્ષણી પર્વ વર્ષમાં ત્રણ વાર આવવાનું વર્ણન
છે, પરંતુ વર્તમાનમાં ભાદરવા માસમાં જ તેની પ્રસિદ્ધિ છે, વીતરાગી જિનશાસનમાં આ ધાર્મિક
પર્વનો અપાર મહિમા છે. પ્રસિદ્ધ ઉત્તમ ક્ષમાદિ દસ ધર્મો, જો કે મુખ્યતઃ મુનિઓના ધર્મો છે, તોપણ
ગૃહસ્થ–શ્રાવકોને પણ સમ્યગ્દર્શનપૂર્વક તે ધર્મોની આરાધના આંશિકરૂપે હોઈ શકે છે. (વિશેષ
સમજણ માટે પૂ. ગુરુદેવના “દસલક્ષણધર્મ–પ્રવચનો” વાંચવા ભલામણ છે.)
શ્રી દશલક્ષણાધિરાજ..... રૂડા
આજ રત્નત્રય દિન દિપતા રે.....
સૌ રત્નત્રય પ્રગટ કરો આજ.....રૂડા
શુક્લધ્યાને જિનેશ્વર લીન થયા રે.....
એવી લીનતા કરવાનો દિન આજ..... રૂડા
ધર્મધ્યાને મુનિવરો રાચતા રે.....
ભવ્યોને દેખાડે એ રાહ..... રૂડા
ક્ષમા નિર્લોભતા આદિ ગુણમાં રે.....
રમી રહ્યા જિનેશ્વર દેવ..... રૂડા
આ અષ્ટમી ચતુરદશી દિનમાં રે.....
થયા પુષ્પદંત વાસુપૂજ્ય સિદ્ધ..... રૂડા
એવા નિર્મળ દિવસ છે આજના રે.....
સહુ નિર્મળ કરો આત્મદેવ..... રૂડા
પ્રભુ વીર એ માર્ગ બતાવીયો રે.....
કુંદકુંદે રોપ્યા રાજથંભ..... રૂડા
કહાન ગુરુએ કાદવમાંથી કાઢિયા રે.....
ચડાવ્યા એ રાજમાર્ગ દ્વાર..... રૂડા
સીમંધરના નાદ કુંદ લાવીયા રે.....
રણશીંગા વગાડયા ભરતમાંય....રૂડા
ગુરુકહાને રણશીંગા સાંભળ્યા રે...
વગાડનાર એ છે કોણ..... રૂડા
ગુરુ કહાને એ કુંદકુંદ શોધિયા રે....
શોધી લીધો શાસનનો થંભ...રૂડા
ગુરુ કહાને ભરતને જગાડિયું રે.....
જાગો! જાગો! એ ઊંઘતા અંધ...રૂડા
ગુરુ કહાને ચિદાત્મ બતાવીઓ રે...
રોપ્યા છે મુક્તિકેરા થંભ..... રૂડા
એવા શાસનસ્તંભમારા નાથ છે રે.....
તેને જોઈ જોઈ અંતર ઊભરાય..... રૂડા
ગુરુ–હદયે જિનેશ્વર વસી રહ્યા રે.....
ગુરુના શિરે જિનેશ્વરનો હાથ..... રૂડા
પ્રભુ સેવક રત્નત્રય માગતા રે.....
એ તો લળી લળી લાગે પાય.....
રૂડા પર્યુષણ દિન આજ દીપતા રે