Atmadharma magazine - Ank 090
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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भगवाने कहेलां नव तत्वो
[केवळज्ञान कल्याणकना प्रवचनमांथी]
भगवाने केवळज्ञानमां आखुं विश्व प्रत्यक्ष जोयुं, तेमां छ प्रकारना द्रव्यो जोया. एक जीव अने पांच
प्रकारना अजीव; जीव अने अजीव तत्त्व त्रिकाळी छे ने तेमना परस्पर संबंधथी बीजा सात तत्त्वो थाय छे. ते
क्षणिक छे. ए रीते कुल नवतत्त्वो छे–जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष.
जीव पोतानुं हित करवा मागे छे. हित कोनुं करवुं छे? –के पोताना आत्मानुं. जगतमां जे वस्तु सत्
होय तेनुं हित थाय, एटले के जेनुं हित करवुं छे एवो पोतानो आत्मा छे–एम पोताना आत्मानुं अस्तित्व
नक्की करवुं जोईए; तथा, जेमणे पोतानुं हित करी लीधुं छे एवा, तेमज जेमणे पोतानुं हित नथी कर्युं एवा,
पोताना सिवायना बीजा आत्माओ आ जगतमां छे–एम पण जाणवुं जोईए. पोते हित करवा मागे छे तेनो
अर्थ ए पण थयो के अत्यार सुधी अहित कर्युं छे. पोताना स्वभावना लक्षे अहित न थाय, पण स्वभावथी
विरुद्ध बीजी चीजना लक्षे अहित थयुं छे. एटले जीव सिवायनी बीजी अजीव वस्तुओ पण छे. जे चीजमां
जाणवानी शक्ति छे ते जीव छे, जे चीजमां जाणवानी शक्ति नथी ते अजीव छे. जीवनी पर्यायमां विकार थाय
तेमां अजीवकर्म निमित्त छे. जीवनी पर्यायमां मलिनताना चार प्रकार पडे छे–पुण्य, पाप, आस्रव अने बंध.
तेमां निमित्तरूप कर्ममां पण ए चार प्रकार छे. तथा पोताना स्वभावनुं भान करीने ते तरफ परिणमतां शुद्धता
थाय छे, ते शुद्धताना त्रण प्रकार छे–संवर, निर्जरा ने मोक्ष. तेमां कर्मनो अभाव निमित्तरूप छे. ए रीते जीव,
अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, अने मोक्ष एम कुल नव तत्त्वो भगवाने कह्या छे. एमांथी
एक पण तत्त्व ओछुं थई शके नहि, ने ए नव सिवाय बीजुं कोई दसमुं तत्त्व जगतमां होय नहि. जो आ नव
तत्त्वोने न मानो तो कांई पण वस्तुस्थिति ज साबित नहि थाय.
‘हे भाई! तुं जीव छे.’ एम कहेतां ज ‘तारा सिवाय बीजा अजीव पदार्थो छे, ते तुं नथी’–एवुं तेमां
आवी ज जाय छे, एटले ‘जीव छें एम कहेतां ज अनेकांतना बळे ‘अजीव’ पण साबित थई जाय छे.
‘अनेकांत’ ते भगवानना शासननो अमोघ मंत्र छे; ते अनेकांत वडे बधो वस्तुस्वभाव ओळखाय छे. घणा
लोको अनेकांतनुं यथार्थ स्वरूप समज्या विना अनेकांतना नामे गोटा वाळे छे. अनेकांत तो दरेक तत्त्वोनी
स्वतंत्रता बतावे छे, ने परथी पृथकता बतावीने स्वभाव तरफ लई जाय छे.
जीव अने अजीव ए बे मूळ द्रव्यो अनादि अनंत निज निज स्वरूपे जुदा जुदा छे. तेओ सर्वथा
नित्य नथी पण नित्य–अनित्य स्वरूपे छे, वस्तुपणे कायम टकीने पोतानी अवस्था बदले छे एटले के
उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप छे. तेमां जीव ज्यारे परना आश्रये ऊपजे छे त्यारे तेनी पर्यायमां पुण्य–पाप–
आस्रव ने बंधनी उत्पत्ति थाय छे, अने ज्यारे स्वभावनो आश्रय करीने ऊपजे छे त्यारे संवर–निर्जराने
मोक्षनी उत्पत्ति थाय छे. ए रीते जगतमां जीवादि नव तत्त्वो छे, भगवाने पूर्ण ज्ञानमां ते नव तत्त्वो
जोया, दिव्यध्वनि द्वारा ते नव तत्त्वो कहेवाया, अने यथार्थ श्रोताओ ते नव तत्त्वनुं स्वरूप समजीने
पोताना स्वभाव तरफ वळ्‌या; स्वभाव तरफ वळतां तेमनी पर्यायमांथी पुण्य–पाप–आस्रव ने बंधरूप
विकारी तत्त्वोनो स्वभाव थवा लाग्यो ने संवर–निर्जरा तथा मोक्षरूप निर्मळतत्त्वोनी उत्पत्ति थवा लागी.
–आनुं नाम धर्म छे ने आ ज हितनो उपाय छे.
आत्मा आनंदस्वभावथी भरेलो छे पण अज्ञानीने तेनुं भान नथी तेथी अवस्थामां मलिनता छे; ने ते
मलिनतामां पर वस्तु निमित्त छे. अवस्थामां थती मलिनताने अने पर वस्तुने जो न माने तो ते अभिप्राय
यथार्थ नथी. आ जगतमां एकलो अद्वैत आत्मा ज छे–एम जे माने तेने तो परथी अने विकारथी भेदज्ञान
करीने अंतरस्वभावमां ढळवानुं पण रहेतुं नथी. जो
(अनुसंधान टाईटल पान ३ उपर)