
संबंधी गुरुदेव घणीवार युक्तिथी पण समजावे छे के–
महालतो होय छे, ए रीते पुण्यनां फळने भोगवी रह्यो छे; हवे वर्तमानमां करे छे तो
पाप, अने भोगवे छे पुण्यने; तो आ पापनुं फळ शुं तेने नहि आवे? आवशे ज; पूर्वे
कोई पुण्य करेला तेनुं फळ तेने अत्यारे देखाय छे. अने लाखो जीवोनी हिंसाना जे तीव्र
पापभाव अत्यारे सेवी रह्यो छे तेनुं फळ तो ते नरकस्थानमां भोगवशे. आपणी आ
पृथ्वीनी नीचे घणे दूर नरकनां सात स्थानो छे ने त्यां असंख्यातजीवो पापनुं फळ वेदी
रह्या छे. ने उपर देवलोकनां स्थानो छे. सूर्य–चंद्र–तारा वगेरे देखाय छे ते पण
ज्योतिषी नामनां देवोनां स्थानो ज छे. तेमां देवो रहे छे; मनुष्यो त्यां नथी रहेता.
पुण्यनुं फळ छे? ना; पूर्वे तेणे कोई पाप करेला तेनुं फळ छे, ने अत्यारे जे पुण्यभाव छे
तेनुं फळ तो स्वर्गमां आवशे.
कर्या होय, ने ते पकडाय, तो तेने पण एकवार फांसी आपे. (केमके कांई बे वार फांसी
नथी आपी शकाती!)–तो एक खून करनारने एटली सजा ने लाखो खून करनारने
पण एटली सजा,–एमां शुं कुदरतनो न्याय जळवाय छे?–ना; अहींनुं राज भले एना
गुनानी पूरी सजा न करी शके, पण कुदरतना न्यायमांथी ते छूटी नहि शके. (अहीं तो
कदाच हजारो खून करवा छतां निर्दोष पण छूटी जाय, पण कुदरतना कानुनमांथी ते
छटकी नहीं शके.) नरकमां जईने पोताना पापनी पूरी सजा ते भोगवशे.
वर्तमानमां आत्मज्ञान वगेरे द्वारा छेदी पण शकाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे
ज्यारे पाप अने पुण्य बंनेथी रहित दशा प्रगटे त्यारे जीव मुक्ति पामे छे एटले के
मोक्षदशा पामे छे, पोते भगवान थाय छे, परमात्मा थाय छे.