Page -31 of 642
PDF/HTML Page 2 of 675
single page version
Page -30 of 642
PDF/HTML Page 3 of 675
single page version
मुंबईकी ओरसे ५०
Page -28 of 642
PDF/HTML Page 5 of 675
single page version
Page -27 of 642
PDF/HTML Page 6 of 675
single page version
सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर! तें संजीवनी;
शोषाती देखी सरितने करुणाभीना हृदये करी,
मुनिकुंद संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी.
ग्रंथाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या.
मुमुक्षुने पाती अमृतरस अंजलि भरी भरी;
अनादिनी मूर्छा विष तणी त्वराथी उतरती,
विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोडे परिणति.
तुं प्रज्ञाछीणी ज्ञान ने उदयनी संधि सहु छेदवा;
साथी साधकनो, तुं भानु जगनो, संदेश महावीरनो,
विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तुं पंथ मुक्ति तणो.
जाण्ये तने हृदय ज्ञानी तणां जणाय;
तुं रुचतां जगतनी रुचि आळसे सौ,
तुं रीझतां सकलज्ञायकदेव रीझे.
तथापि कुंदसूत्रोनां अंकाये मूल्य ना कदी.
Page -26 of 642
PDF/HTML Page 7 of 675
single page version
प्रकाशकीय निवेदन
ग्रंथमाला’की ओरसे प्रकाशित किया गया था
समयसारके दर्शन किये
आया
Page -25 of 642
PDF/HTML Page 8 of 675
single page version
हुए अद्भुत निधान उनके सुपुत्र भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेवने सावधानीसे सुरक्षित रखे हुए उन्होंने
देखे
लाये !’
अध्यात्मरसिकताके साथ साथ इस परमागमके प्रति भक्ति एवं बहुमान भी बढ़ते गये
अवसर पर उसमें प्रशममूर्ति भगवती पूज्य बहिनश्री चम्पाबेनके पवित्र करकमलसे श्री समयसार
परमागमकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा
समितिने वि. सं. १९९७में इस परमागमका गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशन किया
सहित, श्री दिगम्बर जैन स्वाध्यायमन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़की ओरसे प्रकाशित की गई थी
Page -24 of 642
PDF/HTML Page 9 of 675
single page version
हाथमें लिया और उन्होंने यह अनुवाद-कार्य साँगोपाँग सम्पन्न किया
सज्जन हैं तथा कवि भी हैं
छन्दमें किया है; वह बहुत ही मधुर, स्पष्ट एवं सरल है और प्रत्येक गाथार्थके पहले वह छापा
गया है
परमेष्ठिदासजी जैन, ललितपुरने और इस प्रस्तुत संस्करणका मुद्रणसंशोधन-कार्य ब्र० चन्दूभाई
झोबालियाने तथा सुन्दर मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’, सोनगढ़के मालिक श्री ज्ञानचन्दजी जैनने
किया है
वह अनुभव ही प्रत्येक जिज्ञासु जीवका एकमात्र परम कर्तव्य है
Page -23 of 642
PDF/HTML Page 10 of 675
single page version
आत्माको स्वानुभवप्रत्यक्षसे प्रमाण करो
(विजयादशमी)
वि. सं. २०५५
आभार मानता है।
यह अंतरीक भावना सह.....
१२१वीं जन्मजयंती
ता. १५-०५-२०१०
Page -22 of 642
PDF/HTML Page 11 of 675
single page version
राष्ट्रभाषा-हिन्दीमें अनूदित करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है
ग्रन्थ भी हैं
ललितपुर
Page -21 of 642
PDF/HTML Page 12 of 675
single page version
एनी कुं दकुं द गूंथे माळ रे,
जेमां सार-समय शिरताज रे,
गूंथ्युं प्रवचनसार रे,
गूंथ्यो समयनो सार रे,
जिनजीनो ॐकारनाद रे,
वंदुं ए ॐकारनाद रे,
मारा ध्याने हजो जिनवाण रे,
वाजो मने दिनरात रे,
Page -20 of 642
PDF/HTML Page 13 of 675
single page version
जिस प्रकार जलमें नमक पिघल जाता है उसी प्रकार समयसारके रसमें
बुधपुरुष लीन हो जाते हैं, वह गुणकी गाँठ है (अर्थात् सम्यग्दर्शनादि गुणोंका
समूह है), मुक्तिका सुगम पंथ है और उसके (अपार) यशका वर्णन करनेमें
इन्द्र भी आकुलित हो जाता है। समयसाररूप पंखवाले (अथवा समयसारके
पक्षवाले) जीव ज्ञानगगनमें उड़ते हैं और समयसाररूप पंख रहित (अथवा
समयसारसे विपक्ष) जीव जगजालमें रुलते है। समयसारनाटक (अर्थात्
समयसार-परमागम कि जिसको श्री अमृतचंद्राचार्यदेवने नाटककी उपमा दी
है वह) शुद्ध सुवर्ण समान निर्मल है, विराट (ब्रह्माण्ड) समान उसका विस्तार
है और उसका श्रवण करने पर हृदयके कपाट खुल जाते हैं।
Page -19 of 642
PDF/HTML Page 14 of 675
single page version
पदार्थोंका स्वरूप प्रगट कर रहे थे
हैं
Page -18 of 642
PDF/HTML Page 15 of 675
single page version
हैं जिससे यह कथन निर्विवाद सिद्ध होता है
है
सच्चे मार्गको कैसे जानते ?’’ दूसरा एक उल्लेख देखिये, जिसमें कुन्दकुन्दाचार्यदेवको
कलिकालसर्वज्ञ कहा गया है : ‘‘पद्मनंदी, कुन्दकुन्दाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, ऐलाचार्य, गृध्रपिच्छाचार्य
इन पाँच नामोंसे विराजित, चार अंगुल ऊ पर आकाशमें गमन करनेकी जिनको ऋद्धि थी,
श्रुतज्ञानके द्वारा जिन्होंने भारतवर्षके भव्य जीवोंको प्रतिबोधित किया है, ऐसे जो श्री
जिनचन्द्रसूरिभट्टारकके पट्टके आभरणरूप कलिकालसर्वज्ञ (भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेव) उनके द्वारा
रचित इस षट्प्राभृत ग्रन्थमें........सूरीश्वर श्री श्रुतसागर द्वारा रचित मोक्षप्राभृतकी टीका समाप्त हुई
Page -17 of 642
PDF/HTML Page 16 of 675
single page version
वे अमृतभाजन वर्तमानमें भी अनेक आत्मार्थियोंको आत्म-जीवन अर्पण करते हैं
पर मालूम होता है
Page -16 of 642
PDF/HTML Page 17 of 675
single page version
हो और सर्व आगम भी पढ़ चुका हो
ज्ञायकभाव हूँ
और रागका भेद नहीं कर सकता, जैसे अलुब्ध मनुष्य शाकसे नमकका भिन्न स्वाद ले सकता
है उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि रागसे ज्ञानको भिन्न ही अनुभवता है
अनुभवांशपूर्वक समझमें आये ? आचार्य भगवान् उत्तर देते हैं कि
अन्य दूसरा कोई उपाय नहीं है
अभोक्तापना, अज्ञानीको रागद्वेषका कर्ताभोक्तापना, सांख्यदर्शनकी एकान्तिकता, गुणस्थान-
आरोहणमें भावका और द्रव्यका निमित्त-नैमित्तिकपना, विकाररूप परिणमन करनेमें अज्ञानीका
Page -15 of 642
PDF/HTML Page 18 of 675
single page version
बंधस्वरूपपना, मोक्षमार्गमें चरणानुयोग का स्थान
अर्थात् कुन्दकुन्द आचार्य कि जिन्होंने महातत्त्वसे भरे हुये प्राभृतरूपी पर्वतको बुद्धिरूपी सिर पर
उठाकर भव्य जीवोंको समर्पित किया है
है, कल्पवृक्ष है
वहाँ वे आठ दिन रहे थे यह बात यथातथ्य है, अक्षरशः सत्य है, प्रमाणसिद्ध है, इसमें लेशमात्र
भी शंकाके लिये स्थान नहीं है
आचार्य हैं
स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे हैं
असाधारण शक्ति और उत्तम काव्यशक्तिका पूरा ज्ञान हो जायेगा
ऐसा इस टीकाके पढ़नेवालोंको स्वभावतः ही निश्चय हुये बिना नहीं रह सकता
अमृतचन्द्राचार्यदेवने, मानों कि वे कुन्दकुन्दभगवान्के हृदयमें प्रवेश कर गये हों उस प्रकारसे उनके
Page -14 of 642
PDF/HTML Page 19 of 675
single page version
तत्त्वज्ञानसे और अध्यात्मरससे भरे हुए मधुर कलश, अध्यात्मरसिकोंके हृदयके तारको झनझना देते
हैं
टीका लिखी है
प्रकाशित हुआ
अल्पताका पूरा ज्ञान होनेसे और अनुवादकी सर्व शक्तिका मूल पूज्य श्री सद्गुरुदेव ही होनेसे मैं
तो बराबर समझता हूँ कि सद्गुरुदेवकी अमृतवाणीका प्रपात ही
उपकारी सद्गुरुदेवके चरणारविंदमें अति भक्तिभावसे वंदन करता हूँ
हस्तलिखित प्रतियोंका मिलान कर पाठान्तरोंको ढूंढ दिया है, शंका-स्थलोंका समाधान
पण्डितजनोंसे बुला दिया हैं
आभार मानता हूँ
Page -13 of 642
PDF/HTML Page 20 of 675
single page version
पुछवाने पर उन्होंने मेरेको हर समय बिनासंकोच प्रश्नोंके उत्तर दिये हैं; इसके लिये मैं उनका
अन्तःकरणपूर्वक आभार मानता हूँ
हूँ :
विचित्रतावाले, केवल एक ज्ञानात्मक भावको प्राप्त करके अग्र पदमें मुक्तिललनामें लीन होगा